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पान मसाले की पन्‍नी से निकलने वाला धुंआ बन रहा है बीमारियों का कारण

कानपुर (गुड्डू सिंह). शहर की मसाला फैक्ट्रियों से निकलने वाले हानिकारक पाउच रैपर को नगर निगम के कुछ कर्मचारी पैसों के लालच में घरेलू कूड़े के साथ साथ पनकी स्थित एटूजेड प्लांट में डलवा रहे हैं। मसाले की फैक्ट्री से निकलने वाला स्‍क्रैप रैपर पाउच न गलने वाली पन्नियों को कहा जाता है, आरोप है कि उनको कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से कूड़े के ढेर में छिपा दिया जाता है और बदले में मसाले की फैक्ट्री वाले से सुविधा शुल्‍क लिया जाता है।

 

रैपर पाउच के निस्‍तारण के लिए कानपुर देहात में दो प्लांट बने हुए हैं। इन कंपनियों से जो रैपर पाउच माल निकलता है उस मटेरियल को डिस्ट्रॉय करने के लिए इन प्लांट का उपयोग होना चाहिये। इसके लिये प्‍लांट संचालक 10 से 15 रुपए किलो के रेट से शुल्‍क लेते हैं। आरोप है कि मसाला फैक्ट्री वाले भाड़ा बचाने और डिस्ट्रॉय का पैसा बचाने के लिए एटूजेड के कर्मचारियों की मिली भगत से सारे मेटेरियल को एटूजेड में भिजवा देते हैं, जिसको कूड़े में दबा कर आग लगा दी जाती है। इस प्रक्रिया में मसाला फैक्ट्री वाले का खर्चा काफी कम आता है और भागदौड़ भी बचती है। पनकी क्षेत्र में चलने वाली एसएनके पान मसाला फैक्ट्री का भी यही हाल है। हमारे संवाददाता को एटूजेड प्‍लांट के कूड़े में एसएनके पान मसाले के लाखों स्‍क्रैप पाउच मिले जो जलाये जाने के लिये एकत्र किये गये थे।

 

आपको बता दे कि केवल घरेलू कूड़े को ही नगर निगम की गाड़ियां पनकी में बने प्लांट में ले जाती हैं। एटूजेड प्लांट को घरों से निकलने वाले कूड़े को जैविक खाद बनाने के लिए निर्मित किया गया था, लेकिन ये प्लांट चल नहीं पाया था। फिर नगर निगम ने इसे टेकओवर कर लिया। अब नगर निगम के कुछ कर्मचारी अपनी मनमानी के चलते फ़ैक्टरियों से घूस ले कर वहां से निकलने वाले जहरीले अवशिष्ट पदार्थों को भी यहाँ लाकर डाल देते हैं। सूत्रों की माने तो महीने में लाखों रुपये का काला कारोबार कुछ कर्मचारियों की मिली भगत से यहां चल रहा है। 

 

कूड़े से निकलने वाला धुंआ बन रहा है बीमारियों का कारण -

एटूजेड प्‍लांट के आस पास बसे गांव के लोग कई बीमारियों से जूझ रहे हैं। कोई अधिकारी इन की सुध लेने वाला नहीं है। केमिकल युक्त अवशिष्ट पदार्थों को जलाने पर धुंआ निकलता है। जिससे टीबी, सांस के रोग, फेफड़ों का गलना जैसी बीमारियां उत्पन होती हैं। इस सबको लेकर स्‍थानीय ग्रामीणों में भारी आक्रोश व्‍याप्‍त है।

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