दलित-ब्राह्मण के प्रेम विवाह को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी
नई दिल्ली। प्यार अगर सच्चा हो और लड़कर जीतने का जज्बा हो तो आपको अपने प्यार को पाने से कोई रोक नहीं सकता। इसकी मिसाल सुप्रीम कोर्ट तक लडकर मुकदमा जीते इस प्रेमी जोडे को देख कर मिलती है । एक दलित बालिग युवक और एक नाबालिग ब्राह्मण युवती में प्यार हो गया।
बात शादी तक जा पहुंची। दोनों के परिवारों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। वजह थी अलग-अलग जाति का होना। ऐसे में दोनों ने घर बसाने का निर्णय किया और 2011 में मंदिर में शादी कर ली। युवती के परिवार वालों ने शादी के लगभग एक महीने बाद युवक के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया। पुलिस ने युवक को हिरासत में ले लिया। कई महीने जेल में बिताने के बाद युवक को जमानत मिली, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुकदमा निरस्त करने से इनकार कर दिया। अब तक लडकी बालिग हो गयी थी और अपने फैसले पर कायम थी। युवक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में युवक के खिलाफ चल रहे मुकदमे पर रोक लगा दी और घर वालों की प्रताडऩा से बचाने के लिए लड़की को लखनऊ के नारी निकेतन भेजने का आदेश दिया। इसके बाद न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 20 जनवरी को युवक को सज-धज कर कोर्ट आने को कहा। कोर्ट ने युवक से पूछा कि क्या वह लड़की को हमेशा खुश रखेगा, कभी उसे परेशान तो नहीं करेगा? इस पर हामी भरने पर कोर्ट ने दोनों की शादी को मंजूरी दे दी और युवक के खिलाफ चल रहे मुकदमे को भी निरस्त कर दिया।