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रुपया निकालेगा अब ऑयल कंपनियों का तेल

नई दिल्‍ली। अप्रैल 2013 में एक बैरल इंपोर्टेड क्रूड ऑयल का भारत का बिल 5,500 रुपए था, जो अगस्त में 27 फीसदी से भी ज्यादा बढ़कर 7,000 रुपए प्रति बैरल से भी ज्यादा हो गया।
रुपए में गिरावट और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों से भारत का इंपोर्ट ऑयल बिल 7,000 रुपए प्रति बैरल को पार कर गया है।जाहिर है कि पब्लिक सेक्टर ऑयल कंपनियों का नुकसान बढ़ना तय है। ऐसे में अगर डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं होती है, तो सरकार का बजट घाटा और बढ़ेगा, जो पहले से ही खतरनाक लेवल पर है। इंपोर्टेड क्रूड ऑयल के बिल में बढ़ोतरी की कई वजहें हैं। इस दौरान इंटरनेशनल क्रूड ऑयल की कीमत 7 फीसदी बढ़ी है। वहीं, डॉलर के मुकाबले रुपया 19 फीसदी तक गिरा है। इससे देश के करेंट एकाउंट डेफिसिट और फिस्कल डेफिसिट पर जबरदस्त प्रेशर बढ़ा है। देश में 80 फीसदी ऑयल इंपोर्ट किया जाता है और सरकार घरेलू तेल की कीमतों को कम करने के लिए सब्सिडी देती है। पब्लिक सेक्टर ऑयल कंपनियों के लिए हालात और खराब हैं। पिछले तीन फिस्कल ईयर में तीन ऑयल मार्केटिंग कंपनियों- इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल का लॉस 3.38 लाख करोड़ रुपए रहा। सरकार ने इसके दो-तिहाई हिस्से यानी तकरीबन 2.25 लाख करोड़ का भुगतान किया है। अप्रैल-जून 2013 तिमाही में तीन ऑयल मार्केटिंग कंपनियों का लॉस 27,638 करोड़ रुपए रहा। इस दौरान एवरेज क्रूड ऑयल इंपोर्ट प्राइस 5,665 रुपए प्रति बैरल रहा। अगर बाकी फिस्कल ईयर में क्रूड ऑयल की कीमत 7,000 रुपए प्रति बैरल बनी रहती है और बाकी चीजें पहले जैसी रहती हैं, तो फाइनेंशियल ईयर 2014 में अंडर-रिकवरी बिल 1,30,000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।