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आखिर सब स्‍पीक एशिया के पीछे ही क्‍यों पडे हैं ?


भारतीय जनता पार्टी जितने वर्षो देश व विभिन्न प्रदेशों में सत्ता में रही है। संभवत: अब तक के अपने तमाम कार्यकाल में इस देश भर के तमाम नेताओं ने इतने लोगों को रोजगार नहीं दिया होगा जितनों का रोजगार इस पार्टी के एक कपूत नेता किरीट सोमइया ने सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए छीन लिया। किरीट ने इन्वेस्टर फोरम के मंच का इस्तेमाल कर 20 लाख लोगों से जुड़े उनके परिजनों जो कुल संख्या 1 करोड़ से भी अधिक पहुंचती है को सड़क पर ला दिया। वाह नेता जी। सुना था नेता जनता के लिए लड़ते हैं, आपने तो अपने ही देश वासियों के पेट पर लात मार कर अपनी नेतागिरी का नायाब उदाहरण पेश किया है। 1 करोड़ से अधिक स्पीक एशियन आपकी पार्टी के इस उपकार को ताउम्र नहीं भुला पाएंगे। नेता जी, स्पीक एशिया हर आम हिंदुस्तानी के सपनों में रंग भर रही थी। यह कंपनी 12 मई तक के अपने तमाम भुगतान क्लीयर कर चुकी थी। लोगों का पैसा रोकना कंपनी का मकसद नहीं था इसी लिए कंपनी अंत तक मीडिया से लड़ती रही। आरबीआई ने कंपनी के लेनदेन पर प्रतिबंध लगाया तब जाकर कंपनी का लेनदेन रूका अन्यथा इस कंपनी की भांति लेन-देन में पारदर्शिता भारत में क्या विश्व में कहीं आज तक देखने सुनने में नहीं आई। किरीट जी आप फक्र महसूस करते हैं अपने किए पर किंतु 1 करोड़ लोगों की बददुआएं संभवतयः अब आपके बचे दिनों में आपको चैन से न रहने दें। किरीट जी आप नेता हैं और हम आम जनता हैं। सिर्फ अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं, किंतु आपको कुछ बिंदुओं पर विचार करना चाहिए। पहला कि देश में असंवेदनशीलता की तमाम हदें पार करते मीडिया का भौंपू बनते हुए आपको लज्जा नहीं आई़? क्या आपने सोचा कि हमारी एजेंसियां स्पीक एशिया का क्या बिगाड़ पाएंगी? क्या चैनल समेत आप सभी के प्रयासों से इस प्रकरण में कुछ हाथ लगेगा? संभवतयः नहीं। देश की तमाम एजेंसियां भी स्पीक एशिया का कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी क्योंकि उसने सभी कुछ नियमों के दायरे में किया। हिंदुस्तान में सिर्फ पंजीकरण की एक औपचारिकता की दोषी स्पीक एशिया को अंततः ठहराया जा सकेगा क्योंकि इससे अधिक दोष स्पीक एशिया पर साबित करने का कोई आधार कोई भी एजेंसी साबित नहीं कर पाएगी। बेहतर होता कि हमारे नेता व एजेंसियां संवेदनशीलता का परिचय देते हुए कंपनी के आग्रह के मुताबिक उसका बिजनेस माड्यूल देखती यदि कोई गैर कानूनी कार्य हुआ था तो पहले कंपनी से जुड़े 20 लाख लोगों का पैसा सुरक्षित करवाती और फिर देश के कानूनों से बांध कर कंपनी को सशर्त काम करने की अनुमति देती। ताकि कंपनी के पास विदेशों में पड़ा देश का पैसा भी लौट आता और देश के 1 करोड़ लोगों का रोजगार भी न छिनता। सरकारी अमले को यह तो समझना चाहिए था कि यदि स्पीक एशिया भागना ही चाहती तो वह इस कदर खुल कर सामने क्यूं आती, क्यों हर मंच पर हर जांच में पूरा सहयोग देने की बात करती। मीडिया वालों व नेताओं को यह बात भली भांति समझ लेनी चाहिए कि स्पीक एशिया से जुड़े पैनलिस्ट बालिग थे। वह अपना भला बुरा भली भांति समझते हैं कौन उन्हें गुमराह कर रहा है और कौन सच बोल रहा है सब सभी कुछ भली भांति समझते हैं। मीडिया का दुरूपयोग कैसे होता है यह भी भली भांति जानते हैं। मीडिया कैसे राजनेताओं व जांच एजेंसियों को इस्तेमाल करता है यह बात भी अब पर्दे की नहीं रही। कोई बात नहीं चुनाव आने को हैं जनता भी जवाब देना जानती है।

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