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पति की लम्‍बी आयु के लिये सुहागिनों ने की वट सावित्री पूजा

कानपुर. हिन्दू परम्‍परा के अनुसार स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए तमाम व्रत आदि का पालन करती हैं। इसी क्रम में वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्राप्ति करने के लिए स्त्रियों हेतु एक बड़ा व्रत माना जाता है. यह ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है.कुछ स्थानों पर यह ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को भी मनाया जाता है। .


बताते चलें कि जेठ मास की अमावस्या इस बार लॉकडाउन में होने के कारण, श्रद्धालुओं ने अपने-अपने तरीके से पूजा की तैयारी की है। सुहागिन महिलाओं के इस प्रमुख पूजा पर्व पर लॉकडाउन का पालन अहम चुनौती है। इन हालातों में पूजा का ऐसा तोड़ निकालने का प्रयास किया गया है कि लॉकडाउन का भी पालन हो और सुहागिनों की वट पूजा भी सफल हो जाए। कुछ शिक्षित महिलाओं ने घर में ऑनलाइन ऑडियो, वीडियो यूट्यूब से डाउनलोड कर उसी के सहारे पूजा करने का मन बनाया है।

जानकारी के अनुसार बरगदाही या वट सावित्री उत्तर भारत का एक प्रमुख पर्व है। यह एक महान महिला सावित्री की ईश्वर के प्रति निष्ठा व पतिव्रत धर्म की महान शक्ति का परिचायक है।.सावित्री की यमराज पर विजय का प्रतीक यह व्रत सुहागिन महिलायें अपने पति की दीर्घायु होने की कामना लेकर करती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्‍या को होता है। कुछ स्थानों पर यह ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को भी मनाया जाता है। .


जनश्रुति के अनुसार देवी सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही यमराज से अपने पति का जीवन वापस पाया था, तभी से वट वृक्ष का इस दिन से पूजन प्रारम्भ हुआ।.तात्विक दृष्टि से विचार करें तो वट के पूजन से हमें वृक्षों की उपयोगिता व उनके संरक्षण का सन्देश मिलता है। हिन्दू संस्कृति में वृक्षों को जीवंत देवताओं के तुल्य माना जाता है। मत्स्य पुराण में वृक्षों के बारे में कहा गया है कि दस कुओं को बनवाने पर मिलने वाला पुण्य एक तालाब बनवाने के बराबर, दस तालाब बनवाने पर मिलने वाला पुण्य एक झील बनवाने के बराबर और दस झीलों को बनवाने का पुण्य एक गुणवान पुत्र के बराबर और दस गुणवान पुत्रों का पुण्य एक वृक्ष लगाने मात्र से मिल जाता है। . 


पेड़ पौधे प्रकृति के वरदान हैं जो हमें हरियाली व फल फूल के साथ जीवन और बेहतर स्वास्थ्य भी देते हैं। कहते हैं कि पृथ्वी पर एक वट वृक्ष में तीनों देवों (ब्रह्मा ,विष्णु व महेश) की शक्तियां हैं।.वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी जाना जाता है। तार्किक दृष्टि से देखें तो यह वृक्ष ज्येष्ठ माह की तपती धूप से लोगों को बचाता रहा है, इसीलिए ज्येष्ठ माह में इसकी पूजा की परम्परा बन गयी। .  


 

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