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26 आदिवासियों को जबरिया थाने में बैठाया, तीसरे दिन उनमें से 13 नक्सली हो गये ??

रायपुर 23 मई 2018 (जावेद अख्तर). आदिवासियों को नक्सलवाद का आरोपी बना देना इतना भी आसान हो सकता है, कोई सोच भी नहीं सकता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ये बेहद आसान है। एक घटना को देखें और समझें कि क्या वास्तविक रूप में ये आदिवासी नक्सली हैं या नहीं.?

घटनाक्रम कुछ यूं है कि कल बीजापुर पुलिस ने 13 आदिवासियों को नक्सली बताकर बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी की है, ये वही कथित नक्सली हैं जिनको लेकर विगत चार दिनों से सोशल मीडिया एवं अखबारों में खबरें प्रकाशित हो रही थीं कि 'बारात में गये 26 आदिवासियों को जबरन पुलिस ने थाना में बैठा रखा है' वहीं एसपी साहब 20 मई 2018 को पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर ऐसी कोई जानकारी नहीं होना बता रहे थे। कमाल देखिए कि 21 तारीख को बाकायदा प्रेस के सामने, उन 26 आदिवासियों में से ही 13 आदिवासी को नक्सली का जामा पहनाकर पेश कर दिया गया।

यानि कि 26 में से कथित तौर पर 13 आदिवासी को नक्सल का आरोपी बना दिए गए। शेष 13 आदिवासियों का अभी तक कुछ अता पता नहीं है। संभवतः एकाध दो दिन में शेष सभी या कुछेक आदिवासियों को भी बतौर नक्सली बताकर पेश किए जाने अथवा मुठभेड़ में ढेर कर दिए जाने का प्लाट तैयार किया जा रहा होगा.? लेकिन आप सभी बिल्कुल भी चिंतित नहीं होइए और अपने कामों में मस्त रहिए क्योंकि ये सभी जंगल में रहने वाले आदिवासी जो हैं, छग में आदिवासियों को हक व अधिकार की मांग एवं जल जंगल जमीन की सुरक्षा करने का कुछ तो पुरस्कार मिलना ही चाहिए, इसीलिए सरकार पुरस्कार स्वरूप नक्सली का ताज पहना रही है या मुठभेड़ों के जरिए मौत दे रही है। आदिवासी होने का दंश तो झेलना ही होगा, ऊपर से तुर्रा ये कि जल जंगल जमीन की रक्षा व सुरक्षा के लिए पूंजीपतियों उद्योगपतियों व सरकार की खिलाफत करने की हिमाकत भी करते हैं।

पुलिस अधीक्षक से जिन नामों के बारे में सवाल किया गया था, उन्हीं नाम को दो दिन बाद नक्सली बना दिया जाना स्पष्ट करता है कि सरकार जल्द से जल्द आदिवासियों का सफाया करना चाहती है और इसके लिए कथित 'नक्सली जामा' कुतर्क व धोखाधड़ी व वाचाल रूपी गुप्त शस्त्र है, हालांकि गुप्त शस्त्र पहले था अब तो प्रत्यक्ष अथवा साक्षात शस्त्र है जिसे मानवाधिकार, संविधान और कानून तीनों की सुनने, देखने, समझने और महसूस करने की सभी नाड़ियों को काटकर अलग कर दिया है। वैसे भी मानवाधिकार तो बड़े रईस नेताओं व मंत्रियों के होते हैं, गरीबों के लिए पुलिस की लाठी और जेल ही सबसे बड़ा मानवाधिकार है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार जिस तरह से पूंजीपतियों के लिए समर्पित होकर मूल निवासियों का सर्वनाश करने पर आमादा रही है, वो तो सबके सामने है ही, किंतु फिलहाल विगत छः महीने में अचानक अघोषित रूप से आदिवासियों की सफाई में तेज़ी आ गई है, पिछले छः महीने के आंकड़े देखकर तो यही प्रतीत होता है। इस तेज़ी आने का कारण, निकट आता चुनाव है। चूंकि इस बार रमन सरकार के हाथों से सत्ता की कुर्सी सरकती प्रतीत हो रही, ऐसे में मंशा यही होगी कि जो भी समय है उसका सदुपयोग करते हुए ज्यादा से ज्यादा आदिवासियों को निपटा दें ताकि सत्ता अगर इस बार ना भी मिले' तब भी पूंजीपतियों व उद्योगपतियों एवं माफियाओं का सहयोग व समर्थन बना रहे। इसीलिए इस तरह की फर्जी गिरफ्तारियां एवं मुठभेड़ अधिक होती जा रही हैं। इस बीच में वास्तविक नक्सली मौका पाकर जवानों को मार दे रहे हैं, सरकार चाहती भी ऐसा ही है ताकि जवाबी कारवाई के नाम पर आदिवासियों को ढेर किया जा सके। देश के नागरिकों का एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों को अपराधी व अभिशाप के रूप में देखता है। जब तथाकथित मानसिक विकारी नागरिक इन्हें मानव ही नहीं मानते अथवा समझते तो फिर काहे का मानवाधिकार।


घटना के बारे में एक बाराती का बयान -
फुल्लोड़ के एक ग्रामीण युवक ने बताया कि बारात भैरमगढ़ थाने के पास तकरीबन 10 बजे पहुंची थी, जहां बारातियों को उतार कर उनका मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया। लगभग 2 बजे के आसपास वर-वधु को छोड़ दिया गया। बाराती लगभग 50 की संख्या में थे बाकी लोग को छोड़ कर लगभग 26 बारातियों को थाने में ही रख लिया गया। जिसमें अधिकतर युवतियां शामिल हैं। ग्रामीण बारातियों को पकड़े जाने की खबर का बीजापुर पुलिस अधीक्षक मोहित गर्ग ने अफवाह बताते इस प्रकार की किसी भी घटना से इंकार कर दिया है। गर्ग कहते हैं कि किसी भी बाराती को पकड़ कर थाने में नहीं रखा गया है। 


19 मई 2018 हिमांशु कुमार की फेसबुक वाल से -
दो दिन पहले एक बारात शादी करने गदापाल गांव गई थी, कल सुबह बारात दुल्हन के साथ वापिस लौट रही थी। रास्ते में पुलिस ने बारात की गाड़ियों को रोक लिया। पुलिस ने छब्बीस बारातियों को पकड़ रखा है, इनमें 8 अविवाहित लड़कियां भी हैं। रात भर इन सब को थाने में सिपाहियों के कब्जे में रखा गया है। यह सभी लोग आदिवासी हैं, इनके गांव का नाम फुल्लोड़ हैं। इन्हें भैरमगढ़ थाने में कल सुबह 10 बजे पकड़ा गया था, रात भर इन्हें बीजापुर थाने में रखा गया है। हो सकता है आपको बताया जाये कि पुलिस ने बड़ी बहादुरी के साथ हथियारबन्द माओवादियों को एक भयंकर मुठभेड़ में ढेर कर दिया, या मेरे लिखने के बाद मारना तो संभव ना हो तो खबर बनाई जा सकती है कि पुलिस ने बड़ी वीरता का परिचय देते हुए माओवादियों के एक बड़े ग्रुप को गिरफ्तार किया है। आजकल पुलिस वालों को इस तरह की फर्जी मुठभेड़ों और फर्जी गिरफ्तारियों पर बहुत बड़ा इनाम मिलता है।

इससे तो ये ही प्रतीत हो रहा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार पूरी तरह से पूंजीपतियों के लिए समर्पित होकर मूल निवासियों का सर्वनाश करने पर आमादा है।