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खरी खरी - मान्यता तो एक बहाना है, हमें तो सरकारी माल खाना है

कानपुर 27 जून 2017. भाई हम तो खरी खरी कहते हैं। आपको बुरी लगे तो मत सुनो, कोई जबरदस्ती तो है नहीं। कुछ कहने से पहले आपको मैं साफ-साफ बता देना चाहता हूं कि यह वृत्‍तांत जरा भी काल्‍पनिक नहीं है, इसका किसी जीवित अथवा मृत व्‍यक्ति से सम्‍बंध यदि आप निकाल सकते हो तो पडे निकालते रहना, मेरे ठेंगे से।

कल रात को मोहल्‍ले के वरिष्‍ठ नेता श्री धुरन्‍धर जी से मुलाकात हो गई। पूछने लगे भाई मेरे, तुमको इस लाइन में कितने साल हो गए। हमने बताया कि धुरन्‍धर जी पिछले 19 सालों से कलम घिस रहे हैं। धुरन्‍धर जी ने तत्काल सवाल फेंका लेकिन क्या तुम मान्यता युक्‍त हो । मैंने कहा कि अभी तक मैं निष्पक्ष हूं, स्वतंत्र हूं और मेरी आत्मा अभी भी जीवित है इसलिए मेरी मान्यता अभी भी लंबित है। इस पर धुरन्‍धर जी बोले बगैर मान्यता के जीना भी कोई जीना है लल्लू। मैंने कहा मान्यता युक्त हो या मान्यता से मुक्त हो। क्या फर्क पड़ता है। काम तो अपना कलम घसीटने का है, तो घसीटे जा रहे हैं। वह बोले फर्क है, और वही फर्क है जो मारुति 800 और BMW में होता है। मान्यता युक्‍त BMW होता है और मान्यता मुक्त मारुति 800। अब दोनों में फर्क तो पता है, या वो भी हम ही बतायें।

हमने कहा कि हम मारुति 800 बन कर ही खुश हैं, हमें नहीं बनना BMW. कानपुर में वैसे भी ट्रैफिक और पार्किंग की बहुत समस्‍या है, ऐसे में मारूती 800 ही काम आती है। BMW तो हर गली में अटक जाती है। धुरन्‍धर जी कहां हार मानने वाले थे। तत्‍काल उन्‍होंने शब्‍दों का बाण बनाया, होंठों के धनुष पर चढाया और निशाना तान कर हमारे ऊपर छोड दिया – भइया जी अंगूर खट्टे हैं, आप को मान्‍यता मिली नहीं है इसीलिये दूसरों को बुरा-भला कह कर अपनी भडास निकाल रहे हैं। हमने कहा चलिये ऐसे ही सही। पर बता दें कि कई मान्‍यता युक्‍त रोज हमें टकराते हैं। उनमें से कई तो चार लाइन की एप्‍लीकेशन तक लिख नहीं पाते हैं। आपको पता है कि रणछोड दास ने कहा था कि बेटा काबिल बनो सफलता झक मार कर पीछे आयेगी। इसलिये मान्‍यता युक्‍त होने से काबिलियत युक्‍त होना हमारी नज़र में बेहतर है।

धुरन्‍धर जी ने अपना चश्‍मा ऊपर सरकाया, पान का बीडा मुंह में दबाया और हिकारत भरी नजरों से हमें घूरते हुये बोले कि तुम न सुधरना। अभी 20 साल और कलम घसीटते रहोगे फिर भी बंगला, गाडी, आईफोन, विदेश यात्रा जैसे सुखों से वंचित ही रहोगे। हमने आगे बढते हुये उनसे कहा कि श्रीमान इस देश को लूटने के लिये जो पहले से लाइन में लगे हैं वो ही पर्याप्‍त हैं, हम कलम घसीट‍क हैं हमें वो ही बना रहने दीजिये। इन प्रलोभनों से हमारे जमीर को ललचाने का प्रयास मत कीजिये। हमारे सर पर किसी ने इन भौतिक सुखों का पानी नहीं डाला है, इसीलिये हमारा पेन आग उगलने वाला है।

धुरन्‍धर जी तो अपने रास्‍ते चले गये पर हम सोच में पड गये, कि क्‍या वास्‍तव में मान्‍यता युक्‍त होना इतना जरूरी है कि उसके बिना जिन्‍दगी अधूरी है। आप को कुछ सूझे तो हमें भी बताइयेगा। और यदि आप मन ही मन हमको गरिया रहे हों तो एक रोटी हमारी तरफ से ज्‍यादा खाइयेगा। हम तो इसी तरह खरी खरी कहते रहेंगे, आपको बुरी लगे तो मत सुनो, कोई जबरदस्ती तो है नहीं ।