मसरत की रिहाई में मुफ्ती मोहम्मद का हाथ नहीं ?
श्रीनगर। अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई मामले में एक नया मोड़ आता दिख रहा है। खबर है कि मसरत के खिलाफ नए आरोप दर्ज न किए जाने का फैसला मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार सत्ता में आने से एक हफ्ते पहले ही ले लिया गया था।
जाहिर है यह विवादित फैसला जम्मू-कश्मीर में 49 दिनों के राज्यपाल शासन के दौरान ही ले लिया गया था।
सूत्रों के मुताबिक, फरवरी में गृह राज्य मंत्री सुरेश कुमार ने जम्मू के जिला मैजिस्ट्रेट को चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी में कहा गया था आलम के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट के तहत लगे आरोप खारिज हो चुके हैं इसलिए उन्हें कैद में नहीं रखा जा सकता।
चिट्ठी के मुताबिक पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट के तहत आलम के खिलाफ लगे आरोपों को गृह राज्य मंत्रालय ने 12 दिनों के भीतर कंफर्म नहीं किया था। इस तरह के आरोपों को गृह राज्य मंत्रालय द्वारा 12 दिनों के भीतर कंफर्म किया जाना अनिवार्य होता है। इस मामले को एडवाइजरी बोर्ड ने भी तय अवधि के भीतर अप्रूव नहीं किया था। मिली जानकारी के मुताबिक, जिला मैजिस्ट्रेट ने होम डिपार्टमेंट से कहा था कि आलम के खिलाफ कोई नए आरोप नहीं हैं। इस तरह आलम के खिलाफ केस बंद हो गया।
मसरत आलम की रिहाई ने पीडीपी-बीजेपी गठबंधन में सियासी तूफान ला दिया है। आलम पर साल 2010 के चुनाव के दौरान लोगों को भड़काने का आरोप है जिसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे। पिछले चार सालों से मसरत आलम को पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट के तहत बार-बार डिटेन किया जाता रहा है।
(IMNB)