30 साल बाद खोजी गई नई एंटीबायोटिक दवा
लंदन। एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए वैज्ञानिकों ने करीब 30 साल बाद पहली नई एंटीबायोटिक दवा तैयार की है। इस दवा का नाम टेक्सोबैक्टिन है, जिसका कई आम बैक्टीरियल इंफेक्शन वाली बीमारियों जैसे टीबी, सेप्टिसीमिया और सीडिफ में उपयोग किया जा सकेगा।
यह खोज ऐसे समय में हुई है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी थी कि मानवता पोस्ट-एंटीबायोटिक दौर की ओर बढ़ रही है, जिसमें आम संक्रमण का भी इलाज नहीं होगा। नॉर्थ ईस्टर्न यूनिवसिर्टी के प्रोफेसर किम लिविस ने इस नई एंटीबायोटिक की खोज की घोषणा की है जो किसी भी ज्ञात प्रतिरोध का सामना किए बिना रोगजनकों को खत्म करती हैं। वे इस पर कार्य कर रहे हैं। पहली एंटीबायोटिक दवा पेनिसिलिन की खोज एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1928 में की थी। 1987 के बाद से अब-तक कोई नई क्लास नहीं मिली थी। एंटीबायोटिक दवाएं जादू की गोली की तरह दशकों से काम करती रही हैं लेकिन उनके बेतरतीब इस्तेमाल से अधिकांश बैक्टीरिया ने उसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली। इससे इंसानों पर दवाओं का असर नहीं होता है। टेक्सोबैक्टिन नाम की इस दवा की खासियत यह है कि ये दोहरी क्षमता से बैक्टीरिया पर प्रहार कर उसकी कोशिका की दीवार पर हमला करती है। यही इस दवा की विशेषता है और इसके कारण नई पीढ़ी की एंटीबायोटिक दवाओं के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा। जानकारों का कहना है कि यह दवा अगले पांच वर्ष में बाजार में उपलब्ध होगी। अभी इस पर कई तरह के टेस्ट होने बाकी हैं।