दिल्ली में राष्ट्रपति शासन के प्रबल आसार
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभार के परिणामों के बाद त्रिशंकु स्थिति और प्रमुख राजनीतिक
दलों की एक दूसरे को समर्थन नहीं देने की घोषणा के बाद राजधानी में
राष्ट्रपति शासन लागू होने के आसार बनने लगे हैं।
दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा के इतिहास में पहला मौका है जब त्रिशंकु सदन
की स्थिति सामने आई है। भारतीय जनता पार्टी 31 सीटों के साथ सबसे बड़ी
पार्टी के रुप में उभरी है। उसके सहयोगी अकाली दल को एक सीट मिली है। इस
प्रकार भाजपा के पास 32 विधायक हैं, लेकिन बहुमत के लिए कम से कम 36 के
आंकडें की जरुरत है। सामाजिक आंदोलन के बाद एक साल पहले बनी आम आदमी पार्टी ने 28 सीटें हासिल कर
दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा के सभी समीकरणों को बिखेर कर रख दिया।
कांग्रेस आठ सीटों पर सिमट गई। एक निर्दलीय और एक सीट जनता दल (यू) के खाते
में गई है। आप लगाता यह कह रही है कि वह न तो किसी भी दल को समर्थन देगी और न ही किसी
से सहयोग लेकर सरकार बनायेगी। परिणामों के बाद आप ने कहा है कि जनता ने
उसे विपक्ष में बैठने का आदेश दिया है। इसलिए सरकार बनाने के लिये किसी
प्रकार का गठजोड़ नहीं करेगी और रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभायेगी। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 17 दिसम्बर को समाप्त हो रहा है। ऐसे में अगले
नौ दिनों के दौरान अगर कोई पार्टी सरकार बनाने में सफल नहीं होती, तो
उपराज्यपाल नजीब जंग के पास राष्ट्रपति शासन लगाने के अलावा और कोई चारा
नहीं बचेगा। परंपरा के अनुसार उपराज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का न्यौता दे
सकते हैं। सबसे बडी पार्टी भाजपा है और वर्तमान में जो हालात है, उसमें
दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है कि वह बहुमत जुटा पायेगी। ऐसे में भाजपा के
मना करने पर जंग दूसरी बड़ी पार्टी को भी आमंत्रित कर सकते हैं। इस स्थिति
में आप का नंबर आता है और उसके 28 सदस्य है। यदि कांग्रेस उसे समर्थन दे
दे, तो सरकार बन सकती है। लेकिन आप पहले ही मना कर चुकी है कि वह सरकार
बनाने के लिए न तो किसी को सहयोग देगी और न ही किसी से समर्थन लेगी। मौजूदा परिस्थितियों को देखकर ऐसा नजर आ रहा है कि 17 दिसम्बर तक सरकार
बनना मुश्किल है और 18 दिसम्बर से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगना
अपरिहार्य दिख रहा है।