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प्रदूषण है आर्थराइटिस का कारण

नई दिल्ली. भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण मरीजों में आर्थराइटिस (गठिया) होने का खतरा बढ़ता जा रहा है और अब इस रोग की चपेट में बूढे लोग ही नहीं बल्कि जवान लोग भी आने लगे हैं, पर देश में इसके योग्य डाक्टरों की संख्या पचास से भी अधिक नहीं है. जबकि मरीजों की संख्या एक करोड़ तक पहुचं गई है. विश्व में 30 लाख लोग हर साल इस रोग से मरते हैं. यह कहना है भारतीय रिमोटोलाजी एसोसिएशन के अध्यक्ष मेजर जनरल डॉ. वेद चतुर्वेदी और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में
रिमोटॉलजी की प्रमुख डॉ. उमा कुमार का. विश्व आर्थराइटिस दिवस की पूर्व संध्या पर इन दोनों डॉक्टरों ने बताया कि आर्थराइटिस अब बूढों का नहीं बल्कि जवान लोगों का रोग हो गया है तथा प्रदूषण के कारण इस रोग का खतरा बढता जा रहा है विशेषकर डेंगू एवं चिकन गुनिया के बाद इस रोग का खतरा अधिक होता जा रहा है. मेजर जनरल डॉ. वेद चतुर्वेदी ने बताया कि आमतौर पर आर्थराइटिस होने पर लोग हड्डी के डॉक्टरों के पास जाते हैं, जबकि उन्हें रिमोटोलाजी के डॉक्टर के पास इलाज कराना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से देश के छह अस्पतालों में ही रिमोटोलाजी विभाग है और मुश्किल से 50 योग्य डाक्टर हैं, जिन्होंने रिमोटोलाजी में एम.बी.बी.एस किया हैं अन्यथा फिजिशयन और हड्डी के डॉक्टर ही इसका इलाज कर रहे हैं.   डॉ.चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह हर राज्य के कम से कम एक सरकारी अस्पताल में रिमोटोलाजी विभाग खोले तथा प्रत्येक सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रिमोटोलाजी के टीचर नियुक्त करें ताकि इस मेडिकल कॉलेजों में छात्र इस विषय को पढ़ सकें. उन्होंने कहा कि सरकार को यह भी चाहिए कि वह देश में एक रिमोटोलाजी शोध संस्थान भी स्थापित करे ताकि इस क्षेत्र में अनुसंधान हो सके. हृदय रोग एवं मधुमेह के बाद सबसे ज्यादा मरीज जोड़ों एवं मांसपेसियों के दर्द से परेशान हैं. एम्स में रिमोटोलाजी की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉक्टर उमा कुमार का कहना है कि प्रदूषण के कारण इस रोग के बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है. अमेरिका में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि जो इलाका प्रदूषित है. वहां रहने वाले लोगों को इस रोग से अधिक खतरा है. अपने देश में भी औद्योगिकरण और शहरीकरण से प्रदूषण बढ़ा है. सरकार को चाहिए कि वह इस संबंध में एक राष्ट्रीय अध्ययन कराए ताकि पता चल सके कि इस रोग का कितना खतरा है. उन्होंने कहा कि आज देश की 0.75 प्रतिशत आबादी यानी करीब एक करोड़ की आबादी इस रोग से पीड़ित हैं. इस रोग से मरीज की उम्र करीब दस वर्ष घट जाती है. सबसे पहले तो मरीजों को पता नहीं चलता कि वे जोड़ों के दर्द का इलाज किससे कराएं, क्योंकि वे आमतौर पर इसे हड्डी का रोग समझते है, जबकि यह रिमोटोलाजी से जुड़ा है तथा उनके आस पास कोई रिमोटोलाजी डॉक्टर भी नहीं मिलता. उन्होंने कहा कि 1974 में एम्स में रिमोटोलाजी क्लिनिक खुला पर आज तक इसका स्वतंत्र विभाग नहीं है और यह मेडिकल विभाग का ही हिस्सा है. उन्होंने बताया करीब 37 साल बाद एम्स में आर्थराइटिस मरीजों के लिए डे केयर सेंटर खुल पाया है. आर्थराइटिस मरीजों के लिए जन जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए.

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