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जगन्नाथ पुरी- आस्था नहीं पंडों की कमाई का गढ़

हिन्दुओं की आस्था का एक केन्द्र भगवान जगन्नाथ की जगन्नाथ पुरी। 10वीं शताब्दी में निर्मित यह प्राचीन मन्दिर चार धामों में से एक धाम है। इस मंदिर में आने वाले लोगों के अंदर भगवान जगन्‍नाथ के प्रति अटूट आस्था देखी जाती है, लेकिन मंदिर के अंदर व आस-पास रहने वाले लोग इस आस्‍था पर हावी होकर गाढ़ी कमाई का खेल खेल रहे हैं।

सच पूछिये तो जगन्नाथ मन्दिर आज पंडों के व्यवसाय का एक माध्यम बनकर रह गया है। देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आते हैं लेकिन यहां आकर वह खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। कदम-कदम पर लूट और पण्डों द्वारा पैसों की मांग, मांग नहीं वसूली अधिक लगती है जो भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही है। आश्चर्य तो इस बात का है कि भगवान जगन्नाथ पर चढ़ाया जाने वाला महाप्रसाद भी बजार में बिक रहा है। पुरी रेलवे स्टेशन से मात्र छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित भगवान जगन्नाथ के इस मन्दिर में सिर्फ और सिर्फ हिन्दू ही प्रवेश कर सकते हैं। ऐसा क्यों है इसका जवाब जगन्नाथ जी मंदिर सूचना केन्द्र के पास भी नहीं हालांकि पंडे जरूर अपने-अपने तरीके से इस प्रश्न का उत्तर दे देते हैं। भगवान जगन्नाथ विष्णु के अवतार यानि कृष्ण स्वरूप हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ सुभद्रा व बलभद्र भी मन्दिर के गर्भगृह में विराजमान हैं। तीनों में से किसी के भी हाथ व पैर नहीं है इसके लिए भी तमाम कथाएं पण्डों के मुख से सुनायी देती हैं।

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