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ऑस्कर, क्षेत्रीय फिल्मों की घोर उपेक्षा : रितुपर्णो घोष

मुम्बई. प्रसिद्ध बंगाली फिल्म निर्माता रितुपर्णो घोष इस बात को लेकर भले ही आश्वस्त न हों कि ऑस्कर पुरस्कारों की सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म श्रेणी के लिए भारतीय आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में 'बर्फी!' का चयन सही है या नहीं, लेकिन उन्होंने इस तरह के सम्मानों के लिए क्षेत्रीय सिनेमा को नजरअंदाज करने के लिए अफसोस जताया है. घोष ने मंगलवार सुबह अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, "मैंने 'बर्फी!' नहीं देखी है. इसलिए मैं ऑस्कर के लिए उसके चयन पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. मैं इस बात की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगा कि ऑस्कर के सभी भारतीय नामांकन बॉलीवुड से होते हैं. ऐसा भेदभाव क्यों?" बीते पांच वर्षो में केवल दो क्षेत्रीय फिल्में- मराठी फिल्म 'हरीशचंद्राची फैक्टरी' (2009) और मलयालम फिल्म 'अदामिंटे मकेन अबु' (2011) सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म श्रेणी के लिए भारतीय आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में ऑस्कर गई हैं. घोष ने लिखा, "भारत में क्षेत्रीय सिनेमा की मजबूत समृद्ध परम्परा है, और क्षेत्रीय फिल्में पूरे देश में बन रही हैं. लेकिन इसके बावजूद ऑस्कर के लिए लगातार बॉलीवुड को प्रमुखता क्यों दी जाती है?" घोष को अपनी 'दहन', 'उत्सव', 'चोखेर बाली', 'रेनकोट', 'दोसोर', 'द लास्ट लेएर', 'शोब चारित्रों कल्पोनिक' जैसी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मों के लिए जाना जाता है.

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