पुलिस के नाम पर दे दे बाबा...
स्थान : गोविंदपुरी रेलवे स्टेशन कानपुर
समय : सुबह ११ बजे
दृश्य एक : छुक-छुक करती ट्रेन आई। भीड़ का आलम। सबको जल्दी, किसी को ट्रेन से उतरने की तो किसी को चढऩे की। स्टेशन पर कुछ सवारियां कैरियर की तरह माल ढोने वाली थीं। सहसा एक १२-१३ साल का किशोर तेजी से लपकता हुआ प्लेटफार्म पर आया। बेतरतीब बाल, आंखों में कीचड़, फटे पुराने कपड़े, हाथ में एक डिब्बा। पहली नजर में ही भिखारी लग रहा था।
दृश्य दो : लडक़ा फुर्ती से दूध वालों, वेण्डरों व ट्रेन में सामान बेचने वालों के पास जाता और वे लोग दस-बीस के नोट डालते गए। ट्रेन से उतरने वाले कैरियर (माल लाने-ले जाने वाले) मुस्करा कर उसके डिब्बे में नोट डालते निकल लेते। सामने खड़े मुच्छड़ जीआरनपी वालों की आंखों की चमक बढ़ती जा रही थी। दस मिनट में लडक़े ने ४००-५०० रुपये समेट लिए होंगे। दृश्य तीन : एक सेठ जी काफी सामान लिए उतरे। लडक़ा पास गया। सेठ ने हिकारत की नजरों से देखा। सोचा कोई भिखारी होगा। लडक़े ने कान में कुछ कहा तो सेठ ने डपट दिया। लडक़े ने अपने आका को पुकारा। दो खादीपोश तुरंत प्रकट हुए। सिपाहियों ने व्यापारी की जैसे ही तलाशी लेनी शुरू की, बेचारा सरेण्डर हो गया। पहली बार फंसा था, सो पूरा एक खजूर छाप देना पड़ा। फुटकर १० का अलग से लडक़े को देना पड़ा। विजयी मुद्रा में किशोर आगे बढ़ गया। ट्रेन जा चुकी थी। मेरी ट्रेन लेट थी। भीड़ छंट चुकी थी। डिब्बे वाले लडक़े के प्रति मेरी दिलचस्पी बढ़ गयी। क्योंकि वह भिखारी नहीं था। सालिड रकम बिना रिरियाए व गिड़गिड़ाए मिल रही थी। एक रुपया अठन्नी को देते आदमी बुदबुदाता है। मैंने लपक कर उससे पूछा बेटा ये कौन सा गोरखधंधा है? तुम अपने बारे में बताओ। अंकल, क्यों धंधा खोटी कर रहे हो, अपना रास्ता नापो मेरे पीछे सीआईडी करोगे तो निपट जाओगे। बड़ी धृष्टता से उसने जवाब दिया। मैं भी हार मानने वाला नही था। पीछे पड़ ही गया। तो उसने बताया यहां दो नम्बर का माल उतरता है, अवैध तरीके से वेण्डर सामान बेचते हैं। दूध वाले पानी मिलाते हैं। भला जब अकेले ही कमाकर माल जीम रहे हैं, बिना दद्दा (जीआरपी) को समझे कैसे धंधा कर पाओगे? कभी आप भी माल लाना, हम मामला सुलटवा देंगे। अपुन की भी रंगबाजी है, लालू कहते हैं हमें, एक रेल का मंत्री तो मैं रेल से वसूलने का मंत्री। तभी सिपाही आए, डिब्बे के रुपये गिने। २० रुपये लालू को दिए। लालू ने मसाला फाड़ा, मुंह में डाला। थोड़ी देर बाद सिगरेट के छल्ले निकाल वह कानून को धुएं में उड़ाता दिखा। दूसरी गाड़ी के इंतजार में उसकी आंखें दूर तक निगहबानी करती दिखीं। पुलिस वसूली के इस नायाब तरीके पर चिंतन कर ही रहा था कि ट्रेन ने तन्द्रा तोड़ दी।
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