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बेटे के शहीद होने पर विचलित तो हूं लेकिन सीना गर्व से चौड़ा हो गया है

सम्भल 19 अक्टूबर (सुनील कुमार). राजौरी स्थित पाकिस्तान बार्डर पर भारत की सुरक्षा में तैनात सम्भल का शेर सुधीश पाकिस्तान सेना की फायरिंग में शहीद हो गया। इस जघन्य वारदात ने जम्मू व नई दिल्ली को ही नहीं बल्कि सम्भल को भी हिला कर रख दिया। पिता ब्रहमपाल ने कहा कि बेटे के शहीद होने पर विचलित तो हूं लेकिन सीना गर्व से चौड़ा हो गया है।

फोन द्वारा जब यह सूचना शहीद के गांव पनसुखा मिलक में पहुंची तो मानो कोहराम मच गया जिसने सुना वही स्तब्ध रह गया। पिता ब्रहमपाल भी बेटे के शहीद होने पर विचलित तो हुए लेकिन सीना गर्व से चौड़ा था। आंखों में आंसुओं की धार लिए बोले मुझे गर्व है कि मैं सुधीश का पिता हूं। हर दिन की तरह पनसुखा मिलक के इस मजरे की सुबह अलग थी। सूरज की पहली किरन जब सुधीश के आंगन में पड़ी तो यहां बच्ची की किलकारी नहीं गूंजी बल्कि रोती आंखों और पल पल में बेहोश होते हुए घर वालों का रूदन सामने था। हर कोई गम की चादर ओढ़े हुए बेसुध था। कोई पुरानी यादों को ताजा कर रो रहा था तो कोई ड्यूटी पर जाने से पहले मोबाइल फोन पर हुई बातचीत को बताते हुए बेसुध था।

980 की आबादी वाले इस गांव के हर परिवार का हर शख्स सुधीश के दरवाजे पर सांत्वना देने पहुंच चुका था। कोई पिता ब्रहमपाल को संभाल रहा था तो कोई भाई अनिल और सुनील को। राजपूताना रायफल के इस जांबाज जवान ने दुश्मनों के छक्के उस समय छुड़ाए थे जब सर्जिकल स्ट्राइक थी। पूरी मुस्तैदी के साथ ही साथी जवानों से कदमताल करते हुए सुधीश ने अपने मोर्चा को सुरक्षित रखा और दुश्मनों को पटखनी भी दी। राजपूताना रायफल के बेहतरीन जवानों में शुमार सुधीश जितना देश से प्रेम करते थे उतना ही अपने परिवार से भी। हर दिन अपनी मां का हाल चाल लेना, पिता से खेती की स्थिति, पत्नी से अपनी मासूम बेटी के पल पल की भी जानकारी लेते थे। अपने भरे पूरे परिवार के इकलौते कमाऊ शख्स सुधीश पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया भी।

परिवार से दूर थे लेकिन संचार क्रांति के जमाने में एकदम पास भी। किसी को उनकी दूरी का एहसास नहीं था लेकिन जब शनिवार की रात उनके न होने की सूचना राजपूताना रायफल से मिली तो सहसा यकीन भी नहीं हुआ। लगा मानो बज्रपात सा हो गया। घर के चौखट पर एक दो नहीं पूरे दर्जनों युवाओं की टोली थी जिनके लिए सुधीश एक आइडियल थे। सबकी आंखों से बहती अश्रुधारा अपने अग्रज के जाने के गम में थी। मन में एक टीस भी थी और गर्व भी। टीस प्रशासनिक अफसरों के खिलाफ थी, टीस प्रदेश सरकार के खिलाफ, टीस केंद्र के खिलाफ। देश के लिए शहीद होने वाले इस परिवार के घर दोपहर तक भी कोई नहीं पहुंचा था। युवाओं का गुस्सा इस कदर था कि वह बेहाल थे। बातचीत में शहीद के पिता ब्रह्मपाल कहते हैं कि अब तो मेरा बेटा नहीं रहा। हमें गम है उसके न होने का लेकिन एक सकून भी कि बेटे ने मेरा नाम कर दिया। हमारा गांव शहीद का गांव कहलाएगा। हमारा परिवार शहीद का परिवार। उनके न होने का गम जीवन भर रहेगा। मेरे परिवार में एक खाली जगह हो गई इसे भर पाना मुश्किल होगा लेकिन मैं खुद को भी संभालूंगा और अपने परिवार को भी।