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छत्तीसगढ़ - जल संसाधन विभाग ने किया घटिया निर्माण, बैराज के टूटे गेट ने दे दिया भ्रष्टाचार का प्रमाण

छत्तीसगढ़ 19 सितम्‍बर 2015 (जावेद अख्तर). राजनांदगांव जिले के सूखा नाला बैराज के निर्माण में भ्रष्टाचार किया गया था जिसका प्रमाण भी राज्य सरकार व जल संसाधन विभाग को मिल चुका है। हालांकि जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने बैराज का गेट टूटने का कारण रख रखाव में लापरवाही बरतने को बताया था। इसी के चलते प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने जल संसाधन विभाग के तीन अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।

प्राप्‍त जानकारी के अनुसार जल संसाधन विभाग द्वारा राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव विकासखंड के सूखा नाला बैराज के निर्माण, गेट इरेक्शन, फैब्रिकेशन, संचालन और रखरखाव कार्य में घोर लापरवाही बरतने पर अनुविभागीय अधिकारी (सिविल) बीएल खोब्रागढ़े, तत्कालीन प्रभारी अनुविभागीय अधिकारी (विद्युत यांत्रिकी) बीआर यादव और उप अभियंता एमआर रामटेके को निलंबित कर दिया गया है। जल संसाधन विभाग द्वारा इन तीनों अधिकारियों के निलंबन आदेश जारी कर दिए गए हैं। निलंबन अवधि में इन सभी का मुख्यालय मुख्य अभियंता कार्यालय महानदी परियोजना जल संसाधन विभाग रायपुर निर्धारित किया गया है। छत्तीसगढ़ में जल संसाधन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की कहानी कोई नई नहीं है। इससे पहले भी कई बैराजों में जी भरकर भ्रष्टाचार किया गया, जिसका प्रमाण कई बार सामने आ चुका है बावजूद इसके राज्य सरकार आज भी पुरानी लकीर पीटती बैठी है क्योंकि इन बैराजों में भ्रष्टाचार मंत्री, सचिव से शुरू होते हुए मुख्य कार्यपालन अभियंता से लेकर ठेकेदारों तक पहुंचता है और प्रदेश के मुख्यमंत्री विभाग के उच्चाधिकारियों पर कार्रवाई करने की बजाए सिर्फ इंजीनियरों पर कार्रवाई करते हैं। अभी हाल में ही जल संसाधन विभाग के मुख्य कार्यालय शंकर नगर में आग लगने की घटना घटी थी जिसकी विभागीय जांच आज भी हो ही रही है, कोरबा में रतिजा एनिकेट घोटाले की विभागीय जांच चल ही रही है बल्कि रतिजा एनिकेट के मुख्य आरोपी को बहाली तक कर दी गई वो भी बिना न्यायालय की अनुमति के यानि कि इस बार भी कार्यवाही का ढोल पीटा जा रहा है और फिर विभागीय जांच होगी जो कि बीरबल की खिचड़ी के सामान ही होगी और साल बदलता जाएगा मगर विभागीय जांच शायद ही कभी पूरी हो पाएगी और फिर कुछ महीनों के बाद इन तीनों निलंबित इंजीनियरों की भी बहाली कर दी जाएगी जैसा कि सरकार पिछले पांच सालों से लगातार करती ही आ रही है। सूखा नाला बैराज निर्माण के समय से विवादस्पद था क्योंकि उस समय निर्माण के दौरान ही बैराज में दरारें पड़ गई थी। जिसका समाचार जावेद अख्तर, पत्रकार रायपुर द्वारा प्रकाशित भी किया गया था मगर विभाग के उच्चाधिकारियों ने निर्माण में भ्रष्टाचार की बात को सिरे से नकार दिया था।

समाचार के प्रकाशन के पश्चात जो दरारें पड़ी थी उन्हें छुपाने के लिए रंगों का उपयोग किया गया था। आसपास के ग्रामीणों ने भी उस समय बैराज के निर्माण में भ्रष्टाचार व घोटाले की शिकायत भी विभाग में की गई थी मगर विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों को उस समय सूखा नाला बैराज में भ्रष्टाचार दिखाई नहीं दिया था। उस समय की अनदेखी और मनमानी का ही नतीजा है कि 109 करोड़ रुपये की भारी लागत से बने बैराज का गेट पूरी तरह टूट कर निकल गया। अगर रख रखाव में लापरवाही होती तो बैराज का गेट क्षतिग्रस्त होता न कि टूट कर ही निकल जाता। कम से कम इतनी समझ जल संसाधन विभाग के उच्चाधिकारियों व अधिकारियों को तो होनी ही चाहिए। कि टूट कर निकल जाने और क्षतिग्रस्त होने में कितना अंतर होता है खासतौर पर एनिकेट व बैराजों के मामले में। बहरहाल उल्लेखनीय है कि डोंगरगांव इलाके के 30 से अधिक गांवों में सिंचाई सुविधा के लिए सूखानाला बैराज का निर्माण किया गया था। एक गेट पानी के तेज दबाव की वजह से टूट गया जबकि बैरॉज का निर्माण 109 करोड़ रुपए की लागत से किया गया था। इस बैरॉज में कुल 7 गेट हैं, जिनमें से आखिरी गेट टूट गया। जल संसाधन विभाग के सचिव डॉ बी.एल. तिवारी ने कार्रवाई की जानकारी दी।