कानपुर सेंट्रल - अवैध वेंडरों द्वारा धड़ल्ले से बेचा जा रहा है दूषित खाना
कानपुर 04 November 2018. कानपुर
सेंट्रल में यात्रियों को दूषित खानपान सामग्री बेचे जाने की शिकायत अक्सर
की जाती रही है, मगर कभी भी अवैध वेंडरों के खिलाफ कोई सख्त कानूनी
कार्यवाही नहीं होती। ये अवैध वेन्डर स्टेशन की सुरक्षा के लिये भी
गम्भीर खतरा हो सकते हैं क्योंकि इनका कोई रिकार्ड प्रशासन के पास
उपलब्ध नहीं है। यही नहीं इन वेन्डरों की आते जाते समय कभी भी तलाशी नहीं
होती है जोकि कभी भी किसी बड़े हादसे का सबब बन सकता है।
सूत्रों के अनुसार प्लेटफार्म पर कई अवैध वेंडरों के द्वारा रेल यात्रियों
को खाना बेचा जाता है, जिसकी शिकायत करने के बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों
का ढुलमुल रवैया शंका उत्पन्न करता है। आखिर क्या वजह है की जिम्मेदार
अधिकारी इन फर्जी वेंडरों पर अंकुश लगाने में फेल हो रहे हैं ?
सूत्रों की माने तो कानपुर सेन्ट्रल स्टेशन के पास के घरों में ही रेल
यात्रियों को बेचा जाने वाला खाना बनाया जाता है, जहां पर भीषण गंदगी के
बीच खाने का सामान तैयार किया जाता है। सब्जी में कैमिकल रंगों का इस्तेमाल
किया जाता है, समोसा बनाने में इस्तेमाल किया जाने वाला आलू सड़ा हुआ होता
है, सब्जी बनाने में भी घटिया केमिकल युक्त तेल व मसालों का प्रयोग किया
जाता है। खाद्य सामग्री तैयार करके रेलवे (उत्तर मध्य रेलवे) के नाम का ही
फर्जी डब्बा छपवा कर पूड़ी सब्जी आदि भर कर बेचा जा रहा है, जो कि स्वास्थ
के लिये काफी हानिकारक होते हैं। यहां डिब्बों की अच्छी पैकिंग करके उसमें
खराब खाना परोस कर मासूम जनता को बेच दिया जाता है और भूखा होने के कारण
यात्री खराब सामान खरीदने पर मजबूर होते हैं।
बताते चलें कि स्टेशन पर ट्रेनें कुछ ही समय के लिये रूकती हैं और इसी बीच
अवैध वेंडर अपना खराब माल मजबूर यात्रियों को बेच कर मनचाही रकम वसूल लेते
हैं। खाने की सामग्री का तो आलम यह रहता है की बासी होने के साथ साथ कई
बार सब्जी में फफूंदी भी लगी होती है। जब रेल यात्री डिब्बा खोल कर खाना
खाने की कोशिश करते हैं तब पता चलता है की खाना बासी के साथ साथ सडा और
बदबूदार है, मगर बेचारे यात्री कुछ नहीं कर पाते हैं क्योंकि ट्रेन
प्लेटफार्म से निकल चुकी होती है।
इसी तरह की शिकायतों के चलते कुछ समय पहले अवैध वैन्डरों के प्रमुख
ठेकेदार चिरौंजी लाल के यहां छापेमारी हुई थी, उस छापेमारी में मानकविहीन
खाना भी पाया गया था। इसके बावजूद चिरौंजी लाल अभी भी स्टेशन में कार्यरत
है और उसी तरीके से अपना माल बेच रहा है।
विभागीय सूत्रों की माने तो जीआरपी और आरपीएफ की मिली भगत से यहां लाखों रुपये के वारे न्यारे हो रहे हैं। शिफ्ट वाइज अवैध वेंडरों से वसूली की जाती है। मौका पड़ने पर कोटा पूरा करने के लिये पकड़ कर जेल भी भेज दिया जाता है। प्रत्येक वेंडर को प्रतिमाह फिक्स रुपये देने पड़ते हैं। बताया जाता है कि दोनों प्रभावशाली विभागों को शिफ्टवाइज चार्ज देना पड़ता है। सूत्रों के अनुसार प्रत्येक वेंडर से मिले पैसों का दोनों विभागों के बीच बंटवारा होता है। एक वेंडर ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कभी-कभी उन लोगों को जेल की यात्रा भी करनी पड़ती है। इस प्रकार का अभियान यदाकदा दिखावे के तौर पर चलाया जाता है, उसने बताया कि अधिकारी का एक खास व्यक्ति होता है जो स्टेशन पर घूम-घूम कर रोजाना की वसूली करता है। वेंडर ने बताया कि पकड़े जाने पर जमानत पर छूटने का खर्चा भी तकरीबन ₹3000 आ जाता है, इसलिये हर महिने रिश्वत दे देने का हिसाब ठीक रहता है ।
सूत्र तो ये भी बताते हैं कि इस तरह की जनहित की खबरें प्रसारित होने से
रोकने के लिए कई तथाकथित पत्रकारों को सुविधा शुल्क भी दिया जा रहा है।
बीते दिनों इलाके में चर्चा का विषय था कि एक विवादित पत्रकार ने स्टेशन
के खिलाफ खबरें प्रसारित होने से रोकने के लिये बाकायदा ठेका ले रखा है। ये
जनाब स्टेशन के खिलाफ निगेटिव खबरें रोकने के लिये पत्रकारों को धमकाते
हुये आम देखे जा सकते हैं।