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जनसुनवाई पोर्टल बना मजाक, मनमाने तरीके से किये जा रहे हैं निस्तारण

अल्हागंज 16 अक्टूबर 2018. देश की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा प्रदेश की जनता को सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से जनसुनवाई पोर्टल प्रारंभ कि‍या गया था। पर इन दिनों जनता को राहत देने की जगह विभागों द्वारा किये जा रहे मनमाने निस्तारणों से जनसुनवाई पोर्टल के प्रति जनता का विश्‍वास घटता जा रहा. आम जनता की शिकायतों का निस्तारण करने में असफल साबित हो रहा जनसुनवाई पोर्टल सिर्फ आला अधिकारियों का ऑफिस में बैठे-बैठे कागजी निस्तारण का जरिया बनता जा रहा है.


आईजीआरएस के मामलों की जांच करने में अधिकारी सभी नियमों को ताक पर रख देते हैं, यहां तक की पीडित के बयान लेना तक जरूरी नहीं समझा जाता है और मनमर्जी की रिपोर्ट लगा कर किसी तरह बवाल टाल दिया जाता है। जो आम जनता की सुनवाई के लिए बना पोर्टल आम जनता को ही कहीं ना कहीं मानसिक तौर पर और भी दुखी और परेशान करे जा रहा है।


बैंक आॅफ बडौदा के शिकायतकर्ता अरुण उपदेश का विश्वास जनसुनवाई पोर्टल से बिल्कुल ही उठ चुका है जहां मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश में जनता की समस्याओं का निस्तारण के लिए सीधा संवाद बना जनसुनवाई पोर्टल का निस्तारण का ढंग बिल्कुल ही बेढंगा साबित नजर आ रहा है. मुख्यमंत्री के आदेश को भी शाखा प्रबंधक और बड़े अधिकारीगण बिना मिले पीड़ित से कागजी खानापूर्ति कर निस्तारण जवाब पोर्टल पर अपडेट करा देते हैं वैसे भी इस पोर्टल से आम जनता का भला तो होना नहीं कम से कम आला अधिकारियों का ही भला मुख्यमंत्री जी के सामने हो जाए।
 
ताजा मामला नगर का है, जहाँ उक्त लोगों ने जनसुनवाई शिकायत निवारण प्रणाली पर शाखा प्रबंधक पर आरोप लगाते हुए बताया कि उनके द्वारा जनसुनवाई पोर्टल पर की गयी शिकायत संख्‍या  40015218051680 इत्यादि कई कई शिकायतों पर शाखा प्रबंधक व उनके अधिकारियों  द्वारा मनमाने तरीके से निस्तारण कर दिया गया। जिसे उन्होनें न मानते हुऐ फीडबैक दर्ज करा दिया। पर उनके द्वारा राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री जी को भी शिकायत भेजी गई है जिसका निस्तारण अभी बाक़ी है।

बताते चलें कि पिछली सरकार में तो इस पोर्टल पर मजाक चल ही रहा था। पर इस सरकार से लोगों की उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बढ़ गयीं थी। मुख्यमंत्री योगी भी लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों और मंत्रियों सभी को निर्देश दिए हैं कि कोई भी फाइल किसी भी टेबल पर तीन दिन से अधिक नहीं रुकनी चहिये। यह होने भी लगा। परन्तु अफसरशाही और लालफीता शाही को कौन दुरुस्त करे? यह आसान काम नहीं है। आखिर पुरानी व्यवस्थाओं में रचे बसे लोग इतनी जल्दी सुधरने का नाम तो ले नहीं सकते। जितनी भी जनसुनवाई पोर्टल पर जनता द्वारा शिकायत भेजी जाती है, अफसरों द्वारा उनमें कमी निकलने का भरपूर प्रयास किया जाता है।


जनता द्वारा भेजे गये आवेदन जनता से अधिकारी के आफिस और अधिकारी के आफिस से जनता के पास निस्तारित लिखकर वापस भेजे जा रहे हैं। निस्तारित का वास्तविक अर्थ यह होता है कि समस्‍या का समाधान हो चुका है। पर यहाँ (जनसुनवाई पोर्टल पर) निस्तारित का अर्थ है कि अधिकारी या सम्बंधित विभाग द्वारा उस आवेदन पर कोई न कोई बहाना बनाकर वापस जस का तस आवेदनकर्ता के पास भेज दिया गया है। कई बार तो आवेदन केवल सरसरी निगाह से ही पढ़े जाते हैं और उसमें क्या लिखा है यह भी सम्बंधित विभाग नहीं जानता। कुछ भी उल्टा-सीधा तर्क देकर वापस आवेदनकर्ता के पास निस्तारित लिखकर भेज दिया जाता है। पर आखिर कब तक जनता इस प्रकार बेवकूफ बनेगी ?