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क्राइम फ्री कानपुर - कट्टा बन गया गृह उद्योग, पुलिस भी करती है सहयोग

कानपुर 16 जनवरी 2018 (सूरज वर्मा). अपराध जगत में अवैध असलहों की भूमिका बहुत अहम होती है, अवैध असलहा बनाने वालों का नेटवर्क तोड़ने से अपराधों पर नकेल लगाने में काफी आसानी हो सकती है। प्रदेश में कई इलाके ऐसे हैं जहां अवैध असलहे का धंधा गृह उद्योग की तरह संचालित होता है, परंतु पुलिस उन तक पहुंचने में अकसर ही 'नाकाम' रहती है।


सूत्रों की माने तो कानपुर जिला इन दिनों अवैध असलहों का हब बनता जा रहा है। पिछले तीन सालों में हुई हत्या की वारदातों में से ज्‍यादातर घटनाओं में कनपुरिया अवैध तमंचों का ही प्रयोग हुआ है। सूत्रों के अनुसार ग्रामीण अंचल में आत्मरक्षा के नाम पर किसान तक तमंचा रखते हैं। उरई, जालौन, दिबियापुर औरैया आदि इलाकों में तमंचे का धंधा लघु उद्योग की तरह किया जाता है। इन दिनों असलहों की डिमांड बढ़ने की वजह से रेट में भी बढ़ोत्तरी हो गई है। इस कारोबार से जुड़े लोग बताते हैं कि दो महीने पहले तक जो तमंचा ढाई हजार रुपये में बेचा जा रहा था, अब उसकी कीमत साढ़े तीन हजार रुपये तक पहुंच गई है। कारतूस आसानी से मिलने की वजह से 315 बोर और 12 बोर के तमंचों की डिमांड सबसे ज्यादा है। 

जानकारी के अनुसार तमंचे की मजबूती उसकी नाल के हिसाब से आंकी जाती है। सबसे मजबूत नाल मोटरसाइकिल के शॉकर और जीप की स्टेयरिंग राड से तैयार होती है। राड के इंतजाम की जिम्मेदारी तमंचा बनाने वाले कारीगर अपने गिरोह के दूसरे साथियों पर छोड़ देते हैं। पूरा कारोबार इतनी सफाई से चलता है कि पुलिस को इस गोरखधंधे से जुड़े लोगों की हवा तक नहीं मिल पाती है। घरों में तमंचा बनाने का कारखाना संचालित करना रिस्की होता है इस वजह से तमंचा बनाने काम अकसर खेतों में किया जाता है। बर्मा, पेंचकस, प्लास, लोहे को तराशने वाली रेती, काठ की लकड़ी जैसे साधारण औजार से तमाम कारीगर बेहतरीन से बेहतरीन तमंचा तैयार कर लेते हैं। एक तमंचा बनाने में कारीगर को एक हजार रुपये का मुनाफा होता है। बेचने का काम दूसरे सदस्य करते हैं। ग्राहक तक तमंचा पहुंचने में हुए मुनाफे में कई हिस्सेदार होते हैं। 

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि कई बार पुलिस वाले तक तमंचे का इंतजाम करने के लिए इस धंधे से जुड़े लोगों से मदद मांगते हैं। यहां तक पुलिसवाले इसके लिए पैसे तक खर्च करते हैं। आंकड़ों के अनुसार जब से तमंचे महंगे हुए हैं, पुलिस की निरोधात्मक कार्रवाई में तमंचा बरामदगी के मामले कम हुए हैं। आजकल छुरी लगाकर ही काम चलाया जा रहा है। तमंचे के कारोबार पर अंकुश के लिए पुलिस कभी गंभीर नहीं दिखी, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते काफी समय से प्रदेश में कोई असलहा फैक्ट्री नहीं पकड़ी गई है। जबकि इस बीच कारोबार इतना बढ़ गया है कि प्रदेश में बने तमंचे हमीरपुर, महोबा, झांसी के अलावा हरियाणा, पंजाब, राजस्‍थान और मध्य प्रदेश के जनपदों तक बिकने के लिए भेजे जा रहे हैं। 

सूत्रों की माने तो कानपुर में कई स्‍थानों पर कट्टा खरीद एवं बिक्री का कारोबार स्‍पीड से जारी है। नजीराबाद, चमनगंज, बेकनगंज, बादशाहीनाका, रेल बाजार, कलक्‍टरगंज, हरबंश मोहाल, चकेरी और कल्‍यानपुर आदि  इलाकों में विभिन्‍न कोडवर्ड की सहायता से  बाकायदा नेटवर्क बना कर अवैध असलहे का धंधा किया जा रहा है। हमारे विश्‍वस्‍त सूत्रों के अनुसार इस धन्‍धे में कई पुलिस वालों की संलिप्‍तता से भी इन्‍कार नहीं किया जा सकता है।