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खरी खरी - जनता के मुंह पे ताला, दलालों का हुआ बोलबाला

कानपुर 14 अगस्‍त 2017. भाई हम तो खरी खरी कहते हैं। आपको बुरी लगे तो मत सुनो, कोई जबरदस्ती तो है नहीं। कुछ भी कहने से पहले आपको मैं साफ-साफ बता देना चाहता हूं कि यह वृत्‍तांत जरा भी काल्‍पनिक नहीं है, इसका किसी जीवित अथवा मृत व्‍यक्ति से सम्‍बंध यदि आप निकाल सकते हो तो पडे निकालते रहना, मेरे ठेंगे से। 


मोदी जी मन की बात किये जा रहे हैं और योगी जी अब खालिस नेता बनते जा रहे हैं। दोनों के बीच में जनता नून, तेल लकडी के चक्‍कर में पिसी जा रही है। नहीं भाई हम राजनीति पर नहीं लिख रहे हैं। ये तो यूं ही ज्ञान बघार दिया था। हम तो अपने 2 फेवरेट विषयों पर कायम हैं और आगे भी बने रहेंगे, उनमें से पहला है पत्रकार एवं उनकी तथाकथित पत्रकारिता और दूसरा है पुलिस और उसके कारनामे। वैसे दोनों में बडी समानता पायी जाती है। दोनों भोकाली पेशे हैं। दोनों को समाज में जरा भी इज्‍जत की नजर से नहीं देखा जाता है। पुलिस वालों को ठुल्‍ला, पाण्‍डू तथा मामा जैसे उपनामों से बुलाया जाता है तो पत्रकारों को दलाल, डग्‍गेबाज, प्रेस्‍टीट्यूट जैसे अलंकारों से नवाजा जाता रहा है। दोनों से आम आदमी दूर ही रहना पसंद करता है। पर दोनों के बगैर पब्लिक का काम भी नहीं चलता है। मतलब कनवा को देखे मूर पिराये, कनवा के बिन रहा न जाये। 

आज का मामला एक पत्रकार बन्‍धु से जुड़ा है उनका नाम है मियां लफंटर। तो अपने मियां लफंटर परसों रात को जरीब चौकी पर टकरा गये। हमने पूछा भाई इतनी तेजी से कहां भागे जा रहे हो। वो बोले कि जरा थाने तक गये थे, अब जा रहे हैं खबर फ्लैश करनी है। बेहतरीन स्टिंग आपरेशन किया है, वही हेड आफिस भेजना है। हमने फिर से सवाल दाग दिया क्‍या मामला है गुरू, कोई बड़ा तीर मार लिये हो क्‍या। इस पर लफंटर मियां ने मसाला थूकते हुये कहा कि भाई जी आप न तो खुद खाते हो न किसी को खाता-पीता देख पाते हो। काहे पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हो, पढे लिखे वकील हो, जाओ वकालत करो। यहां आप जैसों का कुछ न हो पायेगा। हमने उनको मस्‍का लगाते हुये कहा कि गुस्‍सा काहे हो रहे हो श्रीमान, हम तो केवल मामला पूछ रहे हैं शायद हमारा भी कुछ भला हो जाये। लफंटर मियां बोले कि थाने गये थे एक रिश्‍तेदार के मामले को सुलटवाने पर ससुरे एसओ ने भाव ही नहीं दिया। हमारे मना करने के बाद भी उसने FIR लिख ली। रिश्‍तेदारों के सामने इज्‍जत का कचरा करा दिया। ससुरे की ऐसी स्टिंग करी है कि बस मजा आ जायेगी। 

हमारे कई दफे पूछने पर उन्‍होंने बताया कि थाने में दलालों का इतना आतंक है कि आम जनता थाने जाने में कतराती है। साल के 8 महीने बीतने के बाद भी अभी कुल सवा सौ मुकदमे नहीं लिखे जा सके हैं थाने में। कोई भी एप्‍लीकेशन आती है तो पहले दलाल महोदय पढ़ते हैं और वादी से सेटिंग गेटिंग करते हैं फिर जा कर मुकदमा दर्ज किया जाता है। थाने के गेट पर किसी पीडित के आते ही दलाल उस पर ऐसे झपटते हैं जैसे मांस पर चील। एसओ ने हमारा काम इसीलिये नहीं किया क्‍योंकि हम बगैर दलाल के डायरेक्‍ट पहुंच गये थे और आप तो जानते ही हो कि पत्रकार वैसे ही कंगले होते हैं। हमसे कुछ माल मिलने की भी उसको उम्‍मीद नहीं थी इसीलिये मामे ने हमारी बात मानने से इन्‍कार कर दिया और दूसरी पार्टी से माल ले कर एफआईआर लिख ली। थाने का हाल बहुत बुरा है, वहां जनता के मुंह पर ताला है और दलालों का बोलबाला है। यही नहीं पत्रकारों की भी वहां कोई नहीं सुनने वाला है। पुलिस कर्मियों की खुशामद कर अपनी पैठ होने का दावा करने वाले इन दलालों द्वारा अपनी फरियाद लेकर आने वाले फरियादियों का जमकर शोषण किया जा रहा है। मनमानी रिपोर्ट लिखा देने तथा विरोधी को सबक सिखाने के नाम पर रुपए ऐंठ रहे कथित दलालों की गतिविधियों से इन दिनों जनता बेहाल है। 

लफंटर महाराज की मिन्‍नतें करके हमने शेयरइट से स्टिंग आपरेशन की सभी वीडियो क्लिप मोबाइल में ले लीं और उनसे प्रामिस किया कि उनके चैनल पर प्रसारण होने के बाद ही हम अपनी खबर प्रकाशित करेंगे। घर आ कर सिटी केबल टीवी के सारे चैनल सर्च कर डाले पर पर लफंटर भाई का चैनल नहीं मिला। अगले दिन आफिस से डेन के सभी चैनल छान लिये पर उनका चैनल वहां भी नहीं मिला। फिर हमने सूचना प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर छानबीन की, पर चैनल वहां भी नहीं मिला। हमारे एक सहयोगी ने हंसते हुये हमको बताया कि चैनल इनविजिबल है और केवल लफंटर जी को दिखता है। हमने आश्‍चर्यचकित होते हुये पूछा कि लफंटर जी तो हर कार्यक्रम और पीसी में जाते हैं, जब खबर प्रसारित ही नहीं करनी तो कवर काहे करते हैं। सहयोगी ने बताया कि दुकान चलती रहे इसलिये दिखना जरूरी है। क्‍योंकि जो दिखता है वो ही बिकता है। इसके अलावा डग्‍गा लेने के लिये भी तो स्‍वयं ही जाना पडेगा न। 

खैर हमें क्‍या करना उनकी खबर चले या नहीं। हमको तो उन्‍होंने बढिया खबर बताई थी। हर थाने के बाहर लिखा होता है कि दलालों का प्रवेश वर्जित है। परन्‍तु इसका सही अर्थ होता है कि दलालों के बिना प्रवेश वर्जित है। उच्‍च अधिकारी मानते हैं कि अब तो IGRS का जमाना है जनता घर बैठे रिपोर्ट लिखवाती है। सब सुखी हैं, अपराधी प्रदेश छोड गये हैं, हर तरफ राम राज्‍य है। यही रिपोर्ट वो नेताओं को बतलाते हैं, इसीलिये नेता चुनाव में मुंह की खाते हैं। IGRS की जांच भी वही करते हैं जो दलालों के बिना बात ही नहीं करते हैं। इसलिये हमारा तो इतना कहना है कि, यदि आपको इस उत्‍तम प्रदेश में रहना है तो भ्रष्‍टाचार हर हाल में सहना है। क्‍योंकि इसका दूसरा आप्‍शन बडा कठिन है, सिस्‍टम से लड़ना पड़ता है। अंटी से पैसा और समय दोनों खर्चा करना पड़ता है। और जब खर्चा ही करना है बेहिसाब, तो पैसा फेंकिये और तमाशा देखिये लाजवाब। यदि आप कसमसा रहे हों, मन ही मन हमको गरिया रहे हों तो हमें फोन मत करियेगा जनाब। क्‍योंकि हम तो इसी तरह खरी खरी कहते रहेंगे, आपको बुरी लगे तो मत सुनो, कोई जबरदस्ती तो है नहीं .......