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कांवड यात्रा - बदल रहा है यात्रा का स्‍वरूप, शिव पार्वती के साथ अब युवा करते हैं नृत्य

अल्हागंज 11 जुलाई 2017. सावन के महीने में चारों तरफ़ फैली हरियाली और ठंडी हवा के झोंके के साथ पड़ती पानी की फुहारों के बीच हर-हर बम-बम का गूँजता उदघोष देवों के देव महादेव और उनके भक्तों को असीम शांति और प्रसन्नता प्रदान करता है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन के प्रथम सोमवार से शुरू हो चुकी कांवड यात्रा अनेकता में एकता का संदेश देती हुई पूरे वातावरण को शिवमय कर रही है। पर बदलते परिवेश में कांवड यात्रा का स्वरूप भी  बदल गया है।



पहले कांवड यात्रा में अपने पापों की मुक्ति और स्वर्ग  प्राप्त करने की लालसा लिए वृद्ध ही नंगे पैर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कांवड लेकर मन में शिव जी का ध्यान करते हुए चलते थे। लेकिन अब कांवड यात्रा में युवाओं की संख्या अधिक होती है। जिनका उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन करना होता है। इसके लिए वो डीजे और शिव, पार्वती, शुक्र, शनिचर का भेष रखने वाले कलाकारों को बुक करके कांवड यात्रा में शामिल करते हैं। उनके साथ फिल्मी धुनों पर बनाये गए भजनों की धुनों पर डांस करते हैं। इस दौरान अति उत्साहित युवक अज्ञानता के चलते नशा करने से बाज नहीं आते ।
पहले ऐसी थी कांवड यात्रा -
कांवड यात्रा में जा चुके 65 वर्षीय इन्द्रमोहन बाजपेयी बताते हैं कि उनके समय में वृद्ध लोग अपने पापों की मुक्ति और मोक्ष के वास्ते देवों के देव महादेव का ध्यान करते हुऐ गंगा जी से जल लेकर छोटी काशी गोला गोकर्णनाथ के लिए प्रस्थान करते थे। खाने के नाम पर संतू और चना चबेना होता था और एक कांवड के लिए दो लोगों की जिम्मेदारी होती थी। इस दौरान जहाँ भी रात्री विश्राम होता था। वहाँ एक शिव भक्त सोता था। तो दूसरा अपने कंधे पर कांवड रखकर भगवान शिव का मनन करता था। यात्रा के दौरान साखियाँ (दोहे) भी  कहे जाते थे
कांवड यात्रा का बदलता स्वरूप -
ग्राम चिलौआ निवासी सामाजिक कार्यकर्ता गुलाबचंद्र त्रिपाठी बताते है कि कांवड यात्रा  में जब से युवाओं की भागीदारी बढी है। तब से कांवड यात्रा तथा वातावरण का स्वरूप ही बदल गया है। युवाओं ने कांवड यात्रा  को पिकनिक में बदल दिया है। अब एक कांवड के साथ दस युवाओं का जत्था बाईक और कारों में बैठ कर चलता है। जो जगह जगह रुक कर श्रद्धालुओं द्वारा लगाये गए नाश्ता, खाना और फलों के स्टाल से जी भरकर खाते हैं। कोई कोई अति उत्साहित युवा गांजा, भांग, बियर, शराब तथा धूम्रपान का सेवन  भी  करते हैं। उनके मन में भगवान शिव के प्रति श्रद्धा भाव कम मनोरंजन की भावना का समावेश ज्यादा रहता है। ब्रह्मचर्य का अर्थ भी  उन्हें नहीं मालूम होता है। अधिकांश कांवड यात्रा के दौरान ट्रकों और ट्रेक्टर ट्रालियों में बड़े बड़े डीजे साउन्ड लगे पाये जाते है। मजदूरी पर लाये गए शिव पार्वती और उनके गणों के रुप धारण करने वाले कलाकारों के साथ जमकर डांस भी करते हैं। इन्हें देखने के लिए दर्शकों का भारी हजूम सड़कों पर इकट्ठा होता है। इस दौरान सड़क हादसा होने की बराबर आशंका बनी रहती है। यातायात के नियमों का पालन भी  नहीं होता है। न ही पुलिस बल के द्वारा जारी निर्देशों का पालन होता है।
कांवड और शिव भक्त हुए फैशनेबुल -
गंगा तट पांचलघाट (फरुँखाबाद) रेडीमेड कांवड बेचने वाले दुकानदार 70 वर्षीय रामलला बताते हैं कि पहले कांवड पद यात्री बाँस के डंडे में दो टोकरियाँ बाँध कर उसमें जल से भरी गंगा जली रखकर शिवधाम मंदिरों में जल चढाने जाते थे।  तब कांवडियों के पैरों में घुँघरू और कांवड में घंटिया बंधी होती थी। जो सुनसान रातों की नीरवता को भंग करती थी। लेकिन अब युवा रेडीमेड कांवर जिसमें रंगबिरंगे चमकदार फैन्सी कपड़े और झंडियाँ तथा प्लास्टिक की फूलपत्ती लगी कांवड ही ले जाना पंसद करते है।