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छत्‍तीसगढ में पराकाष्‍ठा हो गयी है भ्रष्‍टाचार की, खेतों में बनवा दी पुलिया देखो 40 लाख की

अंबिकापुर 20 जुलाई 2017 (जावेद अख्तर). छग के बहुचर्चित व प्रमुख पर्यटन स्थल मैनपाट के परपटिया इलाके में बीच जंगल में 40 लाख रुपए की लागत से 8 नग पुलिया का निर्माण खेतों में, बिना सड़क मार्ग के, करवा दिया गया है। आठ पुलिया के निर्माण ने वन विभाग की कार्यशैली को स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार व घोटाले करने के लिए अफसर किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं।


छग में भ्रष्टाचार के विकास का स्तर दिन प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा है और अधिकारी अपनी भ्रष्ट कार्यप्रणाली व कार्यशैली एवं मरियल कार्यगति से तौबा करने को तैयार नहीं और न ही कुशासन पर नियंत्रण के लिए प्रयास कर रहे हैं। इसका बड़ा उदाहरण खेतों में बनाई गई आठ पुलिया हैं। 

पूर्व में भी किया गया घोटाला - 
प्रमुख पर्यटन स्थल मैनपाट के वन क्षेत्रों में पुनः हरियाली लाकर जन-सुविधा विस्तार के कार्यों को कमाई का बड़ा जरिया बना लिया गया, 90 के दशक में कराए गए सागौन के सघन वृक्षारोपण अपना अस्तित्व बचाने संघर्षरत हैं। हर वर्ष पौधरोपण के नाम पर वन विभाग पानी की तरह पैसा बहा रहा है, मगर 8-10 साल बीतने के बाद भी नतीजा शून्य है। वहीं वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2016 तक में लगभग 7 लाख पौधों की रोपणी करने में भी बड़ी हेराफेरी की जा चुकी है, वहीं 30-40 रुपये प्रति पौधा मिलने वाले पौधों के लिए 300 रूपये प्रति पौधे के हिसाब से भुगतान किया गया है। इससे भी बड़ी हैरानी की बात है कि इन पौधों में खाद्य व पानी के नाम पर प्रतिवर्ष 4-5 लाख का खर्च अलग से दिखाया गया है। 

खेतों में बना दी 8 पुलिया वो भी गुणवत्ता-विहीन निर्माण - 
मैनपाट में विभागीय मद से वन विभाग द्वारा अनाप-शनाप राशि खर्च की जा रही है। मैनपाट के परपटिया से हर्राढोढ़ी होते सुपलगा जाते जंगल के पगडंडीनुमा इलाके में कुछ स्थानों पर 10-10, 12-12 घरों की छोटे-छोटे टोले हैं। इन टोलों तक पहुंचने के लिए आज तक सड़क का निर्माण नहीं कराया गया है, जंगल के पगडंडीयों से ग्रामीण आना-जाना करते हैं। आश्चर्य यह है कि बिना सड़क के बीच जंगल में वन विभाग द्वारा पांच-पांच लाख रूपए की लागत से आठ नग पुलिया का निर्माण करा दिया गया है। 40 लाख रुपए की लागत से बनी पुलिया किसी भी काम की नहीं है। चूंकि सड़क ही नहीं है तो जंगल के बीच उबड़खाबड़ व खुले स्थान में दिखावे के लिए घटिया पुलिया बनाकर शासकीय राशि का बंदरबाट किया गया है। पुलिया का निर्माण मानक के विपरित स्तरहीन और गुणवत्ता विहीन किया गया है। वन विभाग के इस निर्माण कार्यों में सबसे मजेदार तथ्य है कि इसमें तकनीकी अधिकारियों को शामिल नहीं किया जाता है और न ही तकनीकी विभाग से मूल्यांकन की ही प्रक्रिया है। 

बताते चलें कि पैंसठ सचिव व आईएएस स्तर के खिलाफ भ्रष्टाचार व घोटालों की शिकायतें सबूत के साथ करने के बाद भी आज तक मामले पर कोई सुनवाई नहीं हुई और न ही जवाब तलब किया गया। प्रतीत होता है कि प्रत्येक शासकीय विभागों के अधिकारी भ्रष्टाचार और घोटाले करने से हिचकते नहीं हैं। बगैर सड़क पुलिया निर्माण शासकीय राशि के बंदर बांट का जीवंत प्रमाण है।