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छग में कर्ज से लगातार किसान कर रहे आत्महत्या, सरकार कर्ज माफी के पक्ष में नहीं

रायपुर 25 जून 2017 (जावेद अख्तर). छग राज्य में एक बार फिर से कर्ज के बोझ, सरकारी नाकामी, वादाखिलाफी और बैंकों के बढ़ते दबाव के कारण किसानों ने आत्महत्या करना शुरू कर दिया है। एक सप्ताह के दौरान अलग-अलग क्षेत्रों में पांच किसानों द्वारा खुदकुशी करने से पूरा प्रदेश सिहर गया है। तमाम किसान व सामाजिक संगठनों, कार्यकर्ताओं और किसानों द्वारा आंदोलन करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है।


मंदसौर में किसानों की गोली मार हत्या करने को लेकर बीते सोमवार को रायपुर में बड़ा आंदोलन किया गया। ऐसे समय में फिर से बड़ा आंदोलन रमन सरकार के लिये नुकसानदायक होगा। रमन सिंह और उनके मंत्री विकास और खुशहाल किसान का कितना भी तुनतुना बजाते रहें, मगर जमीनी स्तर की असलियत भयावह है। रमन सरकार आज भी आंखों पर सत्ता का चश्मा लगा कर प्रदेश के किसानों के लिए सिर्फ कागजों में बाजीगरी कर रही है, और चिड़िया की टांग पर अटकी हुई है। जबकि छग में लगातार किसान आत्महत्या कर रहे हैं। 

आत्महत्या करने वाले किसान - 
- 12 जून को दुर्ग के पुलगांव थाना के बघेरा गांव के किसान कुलेश्वर देवांगतन ने कुएं में कूदकर जान दे दी थी। 
- 16 जून को राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ ब्लाॅक के सिंगारपुर पंचायत के आश्रित ग्राम गोपालपुर के युवा किसान भूषण गायकवाड़ ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली थी। 
- 18 जून को कवर्धा जिले के वीरेंद्रनगर इलाके के किसान रामझूल साहू ने फांसी लगा कर आत्महत्या की थी। 
- बीते गुरूवार को बागबाहरा ब्लाॅक के मोखा गांव के किसान मंथिर सिंह ध्रुव ने घर के कोठार में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। 
- 25 जून महासमुंद जिले के बागबाहरा थाना के तहत 10 किमी दूर स्थित ग्राम जामगांव के 45 वर्षीय किसान हीराधर निषाद ने कीटनाशक पीकर खेत में बनाई झोंपडी में जान दे दी। 

रमन सरकार नाकामी छिपाने कर रही लीपापोती - 
किसान आत्महत्या की सूचना मिलते ही छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संयोजक मण्डल का दल रूपन चन्द्राकर, पारसनाथ साहू, श्रवण चन्द्राकर और लक्ष्मीनारायण चन्द्राकर के नेतृत्व में जामगांव, बागबाहरा रवाना हो गया। महासंघ को आशंका थी कि कहीं किसान आत्महत्या के मामले में शासन-प्रशासन लीपापोती ना करने लगे। बागबाहरा के ही ग्राम मोखा में महासंघ के तत्काल पहुंच जाने से तहसीलदार की लीपापोती रुकवायी गयी और कर्ज, आर्थिक संकट की वजह से आत्महत्या करने का स्व. मन्थीर सिंह ध्रुव के बेटे मोहन का वास्तविक बयान द्वारा दर्ज करवाया जा सका। महासंघ के सदस्य स्व. हीराधर निषाद की पत्नी और परिवार के सदस्यों से मिले और अपनी गहन संवेदना व्यक्त की।

कर्ज से था परेशान किसान - 
हीराधर के परिजनों से मिली जानकारी के अनुसार उसके पास लगभग 4 एकड़ जमीन थी, जिसमे से 2.5 एकड़ में वह धान की खेती करता था, शेष भूमि परती है। उसने खेत में कर्ज लेकर सिंचाई हेतु बोर करवा रखा था लेकिन बिजली कनेक्शन अस्थायी था। स्थायी कनेक्शन नहीं होने की वजह से प्रति माह रुपये 3000 का भारी भरकम बिल उसे पटाना पड़ रहा था। गरीबी रेखा के नीचे रहने के बावजूद उसके घर का बिजली बिल भी रुपये 1000 आ रहा था। उसने खेती के लिये रुपये 21000 का कर्ज ले रखा था। लेकिन फसल गत वर्ष बर्बाद हो जाने की वजह से उसे भारी घाटा हुआ। दूसरी ओर उसे फसल बीमा का कोई मुआवजा भी नहीं मिला। कर्ज ना पटा सकने के कारण बैंक की ओर से उसे नोटिस मिला हुआ था। बैंक के अधिकारी उसके घर कर्ज वसूली के लिये लगातार आ रहे थे। कर्ज पटा ना सकने की अपनी विवशता देख आज सुबह 10 बजे कीटनाशक का सेवन कर आत्महत्या कर ली।

हालात बद से बदतर हो रहे - 
जामगांव में किसान के आत्महत्या करने की खबर उस वक्त आई है, जब बीजेपी संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल मृतक किसान मंथिर सिंह ध्रुव के परिजनों से मिलने पहुंचा हुआ है। जिस वक्त प्रतिनिधिमंडल मंथिर सिंह ध्रुव से मुलाकात कर रहा था, ठीक उस वक्त बागबाहरा ब्लाॅक से ही किसान की आत्महत्या की खबर आ गई। 

सरकार और विभागों की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहा किसान - 
किसान महासंघ ने आत्महत्या करने वाले खैरागढ़ कवर्धा और मोखा के किसानों के मामले भी शासन के बिजली कम्पनी की लापरवाही, फसल बीमा योजना की असफलता और इनके परिणामस्वरूप कर्ज नहीं पटा सकने की विवशता को दोषी पाया। अतः छत्तीसगढ़ किसान महासंघ के संयोजक मण्डल सदस्यों ने मांग की है कि राज्य सरकार किसानों को बोनस का वायदा पूरा करते हुए किसानों का कर्जा माफ़ करें नहीं तो किसानों के आत्महत्या का दुखद सिलसिला थमने वाला नहीं है। किसान महासंघ ने प्रदेश मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह से प्रश्न किया है कि जब उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, महाराष्ट्र की सरकारों ने किसानों का कर्जा माफ़ कर दिया तो फिर उन्हें कर्जमाफ़ी की घोषणा से किसने रोक रखा है?

संवेदनशील मंत्रियों के बयान आत्महत्या से भी ज्यादा शर्मनाक - 
छग किसानों की आत्महत्या के मामले में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से काफी बड़े राज्यों से आगे है। यह हैरानी भरा तथ्य है जिसे नाकाम छग की रमन सरकार स्वीकारने को तैयार नहीं है बल्कि ऊलजलूल बयानबाजी कर पीड़ित किसान परिजनों के जख्मों पर नमक व मिर्च रगड़ना है। परंतु संवेदनशील सरकार की सारी संवेदनशीलता चोर बेईमान भ्रष्टाचारी भू माफियाओं और अवैध खनन माफियाओं के लिए है। आम जनता सतनामी समाज और आदिवासी समुदाय हासिए पर है और बुरी तरह संकटों से जूझ रहा है। वहीं रमन सरकार के एक और संवेदनशील मंत्री ने कह दिया कि छग के किसान साधन संपन्न है यानि गरीबी का दुखड़ा सिर्फ दिखावे के लिए कर रहे और आत्महत्या शौकिया तौर पर कर रहे। धन्य है सरकार और सरकार के मंत्री।

धान का कटोरा कहे जाने वाले प्रदेश की हकीकत यही है। वहीं केंद्रीय मंत्री तो इन सबसे भी बड़े वाले निकले और उन्होंने कह दिया कर्ज माफी और आत्महत्या फैशन बन गया है। क्या बात है नायडू जी आपको छत्तीसगढ़ी मृतक किसान परिजनों की ओर से सलामी, क्योंकि बहुत से बड़बोले देखे मगर आप सा नहीं देखा। तो नायडू जी फैशन में मरने वालों किसानों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिए फैशनेबल नाइट डिनर विथ डिस्को वाला जश्न भी मना लीजिए। ताकि आपके मुताबिक फैशन में मरने वालों किसानों की आत्‍मायें संतुष्ट होकर मोह-माया से मुक्त हो सके। 

किसान आत्महत्या के मामले में आंध्र व तमिलनाडु से आगे छत्तीसगढ़ - 
किसान आत्महत्या के मामले में आंध्र और तमिलनाडु से आगे छग राज्य है और राज्य सरकार किसानों की आत्महत्या को लगातार झुठलाने का प्रयास करती रही है। पिछले एक सप्ताह में पांच किसानों की आत्महत्या के बाद फिर से छग में किसानों की खुदकुशी का सवाल बहस के केंद्र में आ गया है। शनिवार को राजनांदगांव ज़िले के किसान भूषण गायकवाड़ ने अपनी जान दे दी थी, उसके बाद रविवार को कबीरधाम ज़िले के रामझुल साहू ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली। महासमुंद जिले के बागबाहरा में दो किसानों ने खुदकुशी कर ली। अलग राज्य बनने के बाद के आंकड़े बता रहे कि किसान आत्महत्या की भयावह स्थिति है।

छग में 2006 से 2010 के बीच हर साल औसतन 1,555 किसानों ने आत्महत्याएं की और हालत ये है कि भारत सरकार के आंकड़ों के ही अनुसार 2009 में राज्य में किसानों की आत्महत्या के 1,802 मामले दर्ज किये गये। लेकिन जब इन आंकड़ों को लेकर सवाल उठने लगे तो सरकार ने आत्महत्या के कारणों को जानने या उन्हें दूर करने की बजाए आंकड़ों को ही छुपाना शुरु कर दिया। सरकार अपनी इस कोशिश में कामयाब भी रही और 2011 में भारत सरकार के एनसीआरबी ने जो आंकड़े जारी किये, उसमें छग के आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या शून्य पर आ गई। कहां तो एक साल पहले तक हर दिन लगभग चार किसानों की आत्महत्या के आंकड़े सामने आये थे और कहां एक भी किसान की आत्महत्या का नहीं होना, चकित करने वाला आंकड़ा था। अगले साल यानी 2012 में यह आंकड़ा 04 पर आया लेकिन 2013 में फिर से राज्य सरकार ने बताया कि राज्य में किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है।

सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचते ही छग सरकार की पोल खुल गई - 
हालांकि जब मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचा तो छग सरकार का सुर बदल गया। केंद्र सरकार ने इस साल किसानों से संबंधित एक याचिका की सुनवाई के समय जो आंकड़े पेश किये, उसके अनुसार देश भर में किसानों की आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पांचवें नंबर पर है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की पीठ को अपनी रिपोर्ट में बताया कि छत्तीसगढ़ में पिछले साल वर्ष 2012-13 में कुल 954 किसानों ने आत्महत्या की है। यह रिपोर्ट छग शासन द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में 4291 किसानों की आत्महत्या के कारण 1 नंबर पर, कर्नाटक में 1569 किसानों की आत्महत्या के कारण 2 नंबर पर, तेलंगाना में 1400 किसानों की आत्महत्या के कारण 3 नंबर पर, मध्यप्रदेश में 1290 किसानों की आत्महत्या के कारण 4 नंबर पर और छत्तीसगढ़ में 940 किसानों की आत्महत्या के कारण 5 नंबर पर था। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने दूसरे राज्यों की तरह न तो केंद्र से इस मद में कभी मदद मांगी और ना ही अपने ही आंकड़ों को स्वीकार करते हुये उसे सुलझाने की कोशिश की। 

प्रदेश के किसान खुशहाल, आत्महत्या का तो कोई सवाल ही नहीं उठता : सीएम छग
यह जानकारी बाहर आते ही पूरा प्रदेश सनामन हो गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने के पहले तक छग प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने छग में किसानों की आत्महत्या को मानने से साफ साफ इंकार करते हुए कहा कि छग प्रदेश के किसान साधन संपन्न और खुशहाल है आत्महत्या करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। उन्होंने विपक्ष को निशाने पर लेकर कहा कि प्रदेश के किसानों की उन्नति और प्रगति विपक्ष से देखी नहीं जा रही इसीलिए प्रदेश में कोई भी आत्महत्या करता है तो विपक्ष उसे किसान बताने लगता है। परंतु वास्तविकता ये है इस वर्ष एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है कर्ज़ या बैंकों के दबाव के कारण। 

कांग्रेस ने भी बनाई जांच कमेटी -
जामगांव के किसान हीराधर निषाद के आत्महत्या किए जाने के मामले की जांच के लिए कांग्रेस ने जांच कमेटी का गठन किया है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल के निर्देश पर जांच कमेटी बनाई गई है। कमेटी में पूर्व विधायक अग्नि चंद्राकर, पूर्व विधायक देवेन्द्र बहादुर सिंह, छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी पिछड़ा वर्ग विभाग अध्यक्ष महेन्द्र चंद्राकर, जिला महामंत्री हरदेव ढ़िल्लो, रवि निषाद, ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष अंकित बागबाहरा और किसान कांग्रेस जिला अध्यक्ष लक्ष्मण पटेल शामिल किए गए है। जांच कमेटी को कहा गया है कि संबंधित ग्राम का दौरा कर मृतक किसान के परिजनों एवं ग्रामवासियों से मिलकर वस्तुस्थिति से अवगत होकर जांच रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस को सौंपा जाए। 

* किसान महासंघ किसानों की मांगे पूरी नहीं होने पर भाजपा के जनप्रतिनिधियों के घेराव की तैयारी कर रहा है और इसके लिये गांव गांव में बोनस बइठका का दौर जारी है। - डॉ संकेत ठाकुर, रूपन चन्द्राकर, पारसनाथ साहू, द्वारिका साहू - संयोजक मण्डल सदस्य, छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ