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बिलासपुर - हरे भरे पेड़ों की कटाई के विरोध में उतरे सामाजिक कार्यकर्ता

बिलासपुर 01 जून 2017 (जावेद अख्तर). जगमल चौक से उसलापुर तक 238 पेड़ काटने के खिलाफ अभियान को बिलासपुर के अधिकांश निवासियों ने अपना समर्थन दिया है और राज्य सरकार की आलोचना करते हुए हरे भरे पेड़ों को काटने पर गुस्सा जाहिर किया है। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हरे भरे पेड़ों की कटाई के विरोध में प्रति पेड़ पांच मानव की हत्या करार दिया है। 


आमजन का कहना है कि बढ़ते प्रदूषण से पहले ही पूरा क्षेत्र त्रस्त है ऊपर से हरे पेड़ों की कटाई पूरे वायुमंडल और वातावरण को प्रभावित कर देगा। खगोलविद और पर्यावरणविदों द्वारा पहल ही चिंता जताई जा चुकी है मगर राज्य सरकार विकास में इस कदर अंधी और विक्षिप्त हो चुकी है कि पूरे प्रदेश में हरियाली की दुश्मन बन गई है। बीते साल भी कई सौ एकड़ जंगलों को काटना बताया गया है। उस समय सभी राजनीतिक दलों ने चिंता जताते हुए सरकार द्वारा पेड़ों के काटने की नीति पर आलोचना की थी। 

178 हरे पेड़ मुगेंली नाका से उसलापुर तक और 57 हरे पेड़ गांधी चौक से जगमल चौक तक के काटने का आदेश बिलासपुर कलेक्टर द्वारा जारी कर नगर निगम को पेड़ों को काटने का आदेश पत्र मिला। उक्त आदेश पत्र में कलेक्टर द्वारा अपने पेड़ों को काटने की अतार्किक नीति पर बचाव का रास्ता खोज कर बकायदा लिखा गया है कि 'एक पेड़ के बदले दस पेड़ लगायेंगे'। उक्त पंक्ति के लिखने मात्र से प्रशासन का पूरा बचाव होता है मगर प्रमुख प्रश्न ये है कि 'बिलासपुर में आज तक हजारों हरे भरे पेड़ काटे जा चुकें हैं तो उसके बदले कितने पेड़ पौधे कहां कहां पर लगाएं गए, पहले यह तो बतायें कलेक्टर महोदय। क्या इनमें से सौ पेड़ पौधे सुरक्षित हैं? यह तो अपना बचाव करने वाला निरीह प्रशासन खोज कर बता सकता है। शायद नहीं। क्योंकि ऐसी सैकड़ों वृक्षारोपण योजनाओं का हाल कैसा है यह सर्वविदित है।

बिलासपुर संभाग में वर्ष 2014-15 में एक वृक्षारोपण योजना के अंतर्गत मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों द्वारा लगभग साढ़े तीन सौ पेड़ पौधों की रोपणी की गई थी जिसका हाल इससे समझ सकते हैं कि उक्त चिन्हित स्थल पर साढ़े तीन सौ बोर्ड तो लगे हुए हैं मगर एक भी पेड़ पौधा जिंदा नहीं है। हां ये जरूर है कि बड़ी बड़ी घासों के बीच मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के नाम लगी बोर्ड आंख-मिचौली करती सी दिखाई देती है। ऐसे में कलेक्टर के दावे में कितना दम है यह समझा जा सकता है। निवासियों को शपथ पत्र लेना चाहिए ताकि अगले वर्ष न्यायालय में खड़ा किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी की ओर से हरे भरे पेड़ों की कटाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है मगर प्रदेश की राज्य सरकार इन आदेशों की कभी भी परवाह नहीं करती है। आदेश और नोटिस के बावजूद भी सरकार हरे भरे पेड़ों को काटने से पीछे नहीं हटी है, राज्य सरकार आदेशों की अवहेलना करने के लिए सदैव तत्पर रहती है और पूरी दृढ़ता के साथ अंजाम देती है। ऐसे इतने उदाहरण हैं कि सौ दो सौ पृष्ठ कम पड़ जाएंगे, फिलहाल इस पर फिर कभी।
मुंगेली नाका पर धरने में आम लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। 3 मई को नेहरु चौक से मंगला नाका और 4 मई को गांधी चौक से जगमल चौक तक मानव श्रृंखला बनाकर विरोध प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया है। बिलासपूर के जागरूक लोगों ने तय किया किसी भी कीमत पर एक भी पेड़ नहीं कटने देंगे। ठीक शाम साढ़े छ: बजे मुंगेली नाका धरना स्थल से लिया गया फोटो जिसमें पेड़ों की झुरमुटों में डूबता सूरज और पूरे दिन भर इन्हीं पेड़ों की छांव में बैठकर धरना प्रदर्शन किया जा रहा।


किसी ने सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी की जिसका उल्लेख आवश्यक हो जाता है कि 'हरे भरे पेड़ों को जो काटने आए वे सभी चिलचिलाती धूप से बचने के लिए हरे भरे पेड़ों की छत्रछाया में बैठे हुए हैं'। अब उन्हें कौन समझाए कि ये पेड़ नहीं बल्कि मानव जीवन का एक प्रमुख हिस्सा है। सरकारी तंत्र को आज यह भयावह तस्वीर दिखाई नहीं दे रही मगर उन्हें यह समझना होगा कि इन हरे भरे पेड़ों के बिना जीवन रेगिस्तान जैसा हो जाएगा जहां पर जीवन के लिए उपयोगी वस्तुओं का अभाव होगा। राज्य सरकार तो दिमाग से अंधी हो चुकी है कि उन्हें यह दिखाई नहीं दे रहा कि इससे पूरा समाज और जनहित प्रभावित हो रहा है।