धूमधाम से मनाई गई संविधान निर्माता डा० भीम राव अंबेडकर की जयंती
अल्हागंज 15 अप्रैल 2017 (अमित बाजपेयी). संविधान के निर्माता डा० भीमराव अंबेडकर की जयंती आज क्षेत्र मे बडी धूमधाम से मनाई गई। उ०मा० विद्यालय समापुर में आयोजित कार्यक्रम में ग्राम प्रधान जसवन्त सिंह ने डा० भीमराव अंबेडकर को माला पहनाकर उनको नमन किया। विदित हो कि अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था।
इसी प्रकार ग्राम पंचायत केवल रामपुर चिलौआ के ग्राम प्रधान सुनीता मिश्रा ने आयोजित कार्यक्रम में डा० भीम राव अंबेडकर के चित्र को माला पहनाकर कार्यक्रम की शुरूआत की। ग्राम पंचायत इस्लामगंज की महिला प्रधान ओमा देवी ने माल्यार्पण कर बच्चों को मिष्टान्न वितरण किया। इसी प्रकार ग्राम पंचायत चौरासी के प्रधान मनोज गुप्ता ने माल्यार्पण कर बच्चों को फल वितरण किऐ। इसी प्रकार ग्राम पंचायत भरथौली के प्रधान राममुरारी शुक्ला व ग्राम पंचायत विचौला की महिला प्रधान शान्ती देवी ने डा० भीम राव अंबेडकर को माल्यार्पण कर बच्चों को मिठाईयाँ बांटी। सभी ग्राम पंचायतों के कार्यक्रम में बच्चों के साथ-साथ युवक व बुजुर्ग मौजूद रहे। और सभी को मिठाईयाँ बाटी गई। कार्यक्रम में ग्राम प्रधानों ने बच्चों व सभी उपस्थित ग्रामीणों को संविधान के निर्माता डा० भीम राव अंबेडकर के बारे बताया।
प्रधानो ने बताया कि भारत को संविधान देने वाले महान नेता डा. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव अम्बेडकर जन्मजात प्रतिभा संपन्न थे। भीमराव अंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे। बचपन में भीमराव अंबेडकर (Dr. B.R Ambedkar) के परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम रामजी सकपाल था. अंबेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे. भीमराव के पिता हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे।
1894 में भीमराव अंबेडकर जी के पिता सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो साल बाद, अंबेडकर की मां की मृत्यु हो गई. बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाए। अपने भाइयों और बहनों मे केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुये। अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित था।
8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है। अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने अंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया।
14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अंबेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। अंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया। 1948 से अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे. जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे। 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी की मृत्यु हो गई।