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रायपुर - 2-4 रूपए बचाने के लिये चीन को दे रहे शक्ति, कहां गयी हमारी देशभक्ति

रायपुर 14 अगस्‍त 2015(जावेद अख्तर). भारत देश में हर कोई देशभक्ति, देशप्रेम, वतनपरस्ती, देश पर कुर्बान, और सरहद पर शहादत आदि जज्बातों को जब तब दिखाता ही रहता है। खासतौर पर सोशल मीडिया पर हर कोई खुद को शहीद भगत सिंह, शहीद अशफ़ाक उल्ला खां, शहीद बटुकेश्वर दत्त, शहीद राजगुरु व अन्य शहीद क्रांतिकारियों के समकक्ष ही बताने और जताने पर तुला रहता है। पर क्‍या आपको पता है कि हम देशभक्‍त भारतीय चीन की आर्थिक वृद्धि में अपना सहयोग प्रदान कर रहें है। आइये जानते हैं कैसे - 

ज्‍यादातर भारतीय देशभक्ति का प्रदर्शन वर्ष में दो या तीन बार ही दिखाते हैं, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती और काफी हद तक हिन्दुस्तान पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के दौरान। भारत का फौजी ही एक ऐसा होता है जिसके अंदर साल के 12 महीने और 365 दिन देश पर मर मिटने का जज्बा दिखाई देता है। यानी कि फौज या सेना को छोड़कर अन्य लोगों के लिए एक वर्ष में देशभक्ति का जज्‍बा चार या पांच दिनों को छोड़कर बाकी के 360 दिनों तक कहीं गायब सा हो जाता है, पर कोई भारतवासी अगर पांच दिनों को छोड़कर बाकी के दिनों में देशभक्ति का प्रदर्शन नहीं करता तो भी वह देश से गद्दारी भी नहीं करता है। शायद ही कोई ऐसा होगा जो इन बातों से सहमत नहीं होगा? लेकिन अगर हम अपने पड़ोसी देशों पर एक नज़र डाले तो कुछ ऐसी बातें हैं जिनको देश से वफादारी तो कत्तई नहीं माना जा सकता है। 

एक बात पर जरा गौर करें कि "चीन अगर अपने विटो पावर का प्रयोग कर आतंकी लखवी को बचा सकता हैं, येन केन प्रकारेण पाकिस्तान की तरफदारी और आर्थिक मदद पंहुचा सकता है, तो सिर्फ इसलिए क्योंकि पाकिस्तान भारत का शत्रु राष्ट्र है और पिछले 67 वर्षों से भारत की खिलाफत करता आ रहा है और किसी न किसी रूप में भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता रहता है। तो आखिरकार चीन, पाकिस्तान की क्यों मदद करता है। वो सिर्फ इसी उद्देश्य के तहत पाकिस्तान की तरफदारी करता है क्योंकि पाकिस्तान की वजह से भारत की 35 फीसदी फौज उस ओर की सरहद पर लगाई गई है और भारत पाकिस्तान की शत्रुता का लाभ चीन वर्षों से उठाता चला आ रहा है और धीरे धीरे करके भारत की काफी जमीन पर अपना अवैध कब्ज़ा जमा लिया है क्योंकि चीन की नीति विस्तारवादी है और वह किसी भी हद तक जाकर अपनी नीतियों का दायरा भारत के क्षेत्र में बढ़ाता ही जा रहा है जिसका उदाहरण लेह लद्दाख क्षेत्र की कई सौ एकड़ भूमि पर चीन ने अपना नापाक कदम रखा और अपना बेजा कब्जा भी कर लिया फिर उसने इस हिस्से को अपने देश के नक्शे में शामिल कर दर्शा भी दिया है। 

वर्तमान युग तकनीक का युग है। इंटरनेट, 3जी, 4जी का जमाना आ गया है, और भारत तेज़ी से प्रत्येक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुआ है। इस युग में हरेक समाचार की पुष्टि करने में पांच से दस मिनट लगता है इसलिए इस बात की पुष्टि करना चाहें, तो कर लें। एक ओर पाकिस्तान अपनी बदनीयती का मुजाहिरा करता ही रहता है और दूसरी ओर है चीन, जो कि काफी वर्षों से भारत पर अपनी बद नज़रें गड़ाए बैठा है। जैसे ही हल्का सा मौका मिलता है वह अपने नापाक कदम और आगे बढ़ा देता है, ऐसी हरकत वो बीते 60 वर्षों से भी अधिक समय से करता आ रहा है और अभी भी ऐसी हरकत करने से बाज़ नहीं आ रहा है। और एैसे देश की आर्थिक मदद में भारतीय भी सहयोग दे रहे हैं? सुनकर बड़ा ही अटपटा लगता है कि भला कोई अपने देश के दुश्मन की आर्थिक व्यवस्था में सहयोग क्यों करेगा? पूरे भारत देश में पूछा जाए तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस को स्वीकार करेगा? 

इसके लिए रायपुर व आसपास के जिलों के हजारों लोगों से "चीन के आर्थिक विकास में भारतवासियों का सहयोग" पर चर्चा की गई। मगर चार हज़ार से भी अधिक लोगों में एक व्यक्ति भी ऐसा नहीं मिल सका जिसने स्वीकार किया हो कि हां, हम चीन की आर्थिक वृद्धि में अपना सहयोग प्रदान कर रहें हैं बल्कि उल्टा लोग भड़क जाते हैं कि यह कैसा बेहूदा सवाल पूछ रहे हो। हम भारतीय हैं तो चीन के आर्थिक विकास में सहयोग क्यों करेंगे, जबकि हमें पता है कि चीन की नियत व नजर भारत व भारतीयों के प्रति कितनी बद व खराब है। सब कुछ जानते बूझते हुए क्यों, ऐसे देश की मदद करेंगे, जो की भारतीयों को अपना गुलाम बनाने की मंशा व योजना रखता है। हमने 75 फीसदी शहरों में रहने वाले व 25 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से राय मशविरा व सवाल जवाब किया गया। लगभग 80 फीसदी साक्षर लोग, जिनमें से 45 फीसदी हायर एजुकेटेड और बाकी के साधारण पढ़े लिखे लोग थे। 20 फीसदी जो निरक्षर थे। फिर जब तर्क रखा गया कि जब आप चीन के बारे में हरेक बात भलीभांति जानते हैं तो फिर आप लोग मेड इन चाइना (चीन) सामान बाजार से क्यों खरीदते हैं? उपयोग क्यों करते हैं? तर्क देने के बाद अधिकांश साक्षर लोग निरूत्तर हो गए और निकल लिए या बहाना बनाकर खिसक गए। बहुत सारे लोगों ने कहा कि जब दैनिक जीवन उपयोग की वस्तुएं 2-4 रूपए सस्ती मिलती हैं तो हम क्यों नहीं खरीदें। और हमारे एक से क्या हो जाएगा। और भी लोग खरीद रहें हैं उनसे तो कोई नहीं पूछता? आदि आदि ऐसी बातें सामने आई। 

सबसे आश्चर्यचकित करने वाली बात है कि अधिकांश साक्षर, उच्च शिक्षित वर्ग मेड इन चाइना (चीन) का बना सामान उपयोग कर रहा है और चीन को चाहे अनचाहे जरिए से आर्थिक विकास पंहुचाने में सहयोग कर रहा है। क्या वर्तमान में कोई ऐसा साक्षर भारतीय है जो चीन की इन हरकतों से वाकिफ़ न होगा बावजूद इसके साक्षर भारतीय चीन के बने सामानों का उपयोग करते हैं और दूसरों को भी खरीदने की सलाह देते हैं। जबकि सभी भारतवासियों को एक साथ मिलकर चाइना बाजार का बहिष्कार करना चाहिए। मेड इन चाइना प्रोडक्ट का बहिष्कार कर आप अपने देश के प्रति वफादारी निभाने का प्रयास करें न कि शत्रु देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान प्रदान करें। हरेक भारतीय को चाहिए कि स्वदेशी वस्तुओं के लिए थोड़ा सा सहयोग प्रदान करे ताकि भारतीय कुटीर उद्योग जिंदा रह सके और उनका परिवार भी।