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छत्तीसगढ़ - गरियाबन्‍द की सड़कें आज भी हैं बदहाल, नेताओं की वादाखिलाफी से लोगों में गुस्से का ऊबाल

गरियाबंद/छत्तीसगढ़ 1 अगस्‍त 2015(जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ सरकार जिलों और ग्रामीण इलाकों में पक्की सड़कों का बखान करती है और सम्पूर्ण विकास का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ हकीकत में जितने भी दावे हैं सब पूरी तरह खोखले हैं। ग्रामीण व सुदूर आंचलिक क्षेत्रों में स्थिति पहले की ही तरह बदहाल और खस्ताहाल बनी हुई है। एैसा ही एक मामला गरियाबन्‍द के ग्राम पंचायत कुल्हाडी का है। यहां जिस सड़क के नवनिर्माण के नाम पर वोट मांगा गया, जीतने के बाद वह सड़क आज भी नेताओं की वादाखिलाफी के चलते बदहाल है।

बताते चलें कि छत्तीसगढ़  में खासतौर पर नक्सल क्षेत्रों में जितनी भी विकास की बातें हैं वह सभी बेमानी हैं और मात्र कागजों तक ही सीमित हैं। वास्तविकता देखने के लिए हमने नक्सल क्षेत्रों का दौरा किया, उनमें यह तथ्य खुलकर सामने आया है की नक्सल प्रभावितों तक केन्द्र शासन व राज्य शासन की योजनाओं में से 50 फीसदी तक का लाभ भी नहीं पहुंच पाया है। जबकि शासकीय अधिकारियों व कर्मचारियों ने कागजों में प्रस्तावित राशि का उपयोग प्रभावितों तक पहुंचाने का रिकार्ड दर्ज किया है। प्रश्न यह है कि आखिरकार इतनी भारी भरकम राशि का लाभ प्रभावितों तक नहीं पहुंच रहा है तो फिर इन राशियों के खर्च को सदुपयोग कैसे माना जा सकता है? सरकार व आला अधिकारियों को मामले की पूरी जानकारी होने के बावजूद भी ऐसी लूटमारी और धांधलीबाजी कई वर्षों से चल रही है, मगर इन समस्याओं पर शासन 1 प्रतिशत भी गंभीर नहीं है।
इससे समझ आता है कि राज्य सरकार की नीतियां किसको लाभान्वित करने की है और इनका ध्येय क्या है। शासन व अधिकारियों के इन क्रियाकलापों का एक स्पष्ट प्रमाण और उदाहरण है कुल्हाडी ग्राम की मरियल सड़क। शासन के दावों के उलट आज भी ग्रामीण क्षेत्र विकास से कोसों दूर है। कुल्हाड़ी से किलारगोदी तक का रास्ता अत्यधिक जर्जर है। जो कि मुख्यमार्ग बांधा बाजार जाता है। इस सड़क से गुजरकर प्रतिदिन हजारों की संख्या में छात्र-छात्राएं अध्ययन के लिये आते जाते हैं व हजारों लोग अपने कामकाज के लिए आना जाना करते हैं। बारिश के चलते हफ्ते भर में इस सड़क पर फिसलकर गिरने से 25 से अधिक लोगों को गंभीर रूप से चोटें आई है। इसी डर के कारण बरसात के दिन विधार्थी पढ़ाई करने के नहीं जा पा रहे हैं। इस सड़क पर पैदल चलना भी दूर्लभ हो गया है। अक्तू राम कोमरे, जीवन भंडारी, नीलकंठ कोमरे, गिरधर सोनवानी, मुकेश देशलहरे, राधा मरकाम, विष्णु व अन्य ये सभी ग्रामीण पीड़ित हैं इस सड़क के, जिनको काफी चोटें आईं हैं। कुछ छात्राएं इसलिए भी आनाजाना नहीं करती है क्योंकि अत्यधिक कीचड़ जमाव के कारण कोई भी दोपहिया या चारपहिया वाहन के निकलने के दौरान कीचड़ छात्राओं की ड्रेस पर पड़ जाती है। आसपास के पचासों ग्रामीणों ने बताया कि 10 बार से भी अधिक मर्तबा शिकायत की जा चुकी है मगर शासन व अधिकारियों ने इस बदहाल सड़क की ओर ध्यान नहीं दिया है। 

आवाजाही करने वाले तमाम राहगीरों ने इस पर सख्त नाराजगी जताई और कहा, कि सरकार कई सौ करोड़ रुपये इधर उधर और नई राजधानी के नाम पर खर्च कर रही है मगर इस एक सड़क की वजह से तीन हजार से भी अधिक लोग प्रभावित हुए और हलाकान है, मगर इस सड़क के लिए शासन के पास बजट नहीं है क्या? स्‍थानीय लोग विभाग व स्थानीय नेताओं से कह कह कर थक चुके हैं मगर आज तक सुनवाई नहीं हुई है। सड़क मार्ग के आसपास के ग्रामीण तमतमाए हुए थे, उन्होंने कहा कि अब अगर चुनाव के दौरान कोई भी नेता वोट मांगने आया तो इसी कच्ची व ऊबड़ खाबड़ सड़क पर नंगे पैर दौड़ा जाएगा और उसके बाद ही उन नेताओं की कोई भी बात सुनी जाएगी। लगभग बारह गांव के लोग इस बार इकठ्ठा हो गए हैं और सभी शासन व नेताओं पर भड़के हुए हैं। राज्य सरकार व मंत्रियों के बारे में कहा कि जब चुनाव था तब आए थे और कहा था कि अगर इस बार फिर से हमारी सरकार बनेगी तो हम इस सड़क को सबसे पहले बनवाएंगे। सरकार भी बन गई और मंत्री भी, मगर इन नेताओं का "सबसे पहले वाला" कथन आज तक नहीं आया है। 

ग्रामीणों ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि इस बार चुनाव के दौरान राज्य सरकार की ओर से कोई भी नेता इस क्षेत्र में न आने की सलाह दी है अन्यथा पुराना वादाखिलाफी करने के चलते उनके लिए अच्छा नहीं होगा। ग्रामीणों के गुस्से को देखते हुए समझा जा सकता है कि अब चुनाव के दौरान जाने से पहले सड़क बन गई तब तो ठीक है अन्यथा इस बार नेताओं के लिए बुरा अनुभव होने से कोई नहीं रोक सकता। राजनीतिज्ञों के लिए इतिहास गवाह है कि जनता ही माई बाप है और जनार्दन भी है। अब राज्य शासन व स्थानीय नेता इस पर क्या कार्रवाई करते हैं यह तो आने वाले समय में दिखाई देगा। वैसे आशा करते हैं कि शासन इतने अधिक ग्रामीणों की परेशानी को समझेगा और जल्द ही इस बदहाल सड़क का नवनिर्माण कराएगा। क्योंकि राज्य सरकार को चुनाव के दौरान फिर से वोट के लिए इनके समक्ष जाना ही पड़ेगा।