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आतंक की राजनीति …..


मुम्बई पर फिर से आतंकी हमला हुआ और हमारे हुक्मरान २६/११ हमले के वक्त जारी अपनी गीदड़ भभकियों को भूल गए……. फिर से ऐसा हमला हुआ तो हम आर पार की लड़ाई लडेंगे ? उल्टा हमारे ‘राजकुमार ‘ फरमा रहे हैं कि ऐसे हमले रोके नहीं जा सकते . सुरक्षा एजेंसियों को शाबाशी भी दे डाली और कहा कि बस एक प्रतिशत ही रह गए हैं आतंकी हमले. ‘राजकुमार’ के गुरूजी ‘दिग्गी मियां’ तो और भी दो कदम आगे बढ़ गए और बोले कि पाकिस्तान के मुकाबले तो हमारे यहाँ आतंक बहुत मामूली है- लगे हाथ आर. एस.एस व् हिन्दू संगठनों पर भी उंगली तान दी. इसे कहते हैं आतंक की राजनीति …. लोग मरते हैं, मरते रहे…. वोट बैंक फलता फूलता रहे !

हमारा पडोसी हमारे खिलाफ ‘ परोक्ष युद्ध ‘ छेड़े हुए है.. और हम अमन के कबूतर उड़ा रहे हैं. वे देश की वाणिज्य राजधानी पर ‘हमला ‘ कर हमारी अर्थ व्यवस्था को तहसनहस करने की फिराक में है और हम वार्ता का राग अलाप रहे हैं. पाक हमारे विरुद्ध मुसलसल जेहाद छेड़े हुए है. इस्लामिक स्टेट का मुख्य उदेश्य ‘ शरियत के अनुसार तब तक जेहाद जारी रखना है , जब तक निजाम ए मुस्तफा कायम न हो जाए. अर्थात इस्लाम का राज्य कायम हो जाए ! पश्चमी देशों ने इस तथ्य को भली भांति समझ लिया और ‘जेहादी तत्वों’ पर सख्त निगरानी की नीति अपना ली. अमेरीका पर ९/११ के बाद दूसरा जिहादी हमला सफल नहीं हो पाया.

जापान विश्व का एक मात्र देश है जहाँ ‘ कोई जेहादी परिंदा पर भी नहीं मार सकता ‘ जापानियों को पूरा विशवास है ! जापान ने ‘जेहादियों ‘ पर अपने देश में पूर्ण प्ररिबंध लगा रक्खा है. जापान में इस्लाम के प्रचार प्रसार पर कड़ा प्रतिबन्ध है.जापान में अब किसी मुसलमान को स्थाई रूप से रहने की इज़ाज़त नहीं दी जाती. जापान में मात्र २ लाख मुसलमान हैं जिन्हें नागरिकता दी गई है और वे जापानी भाषा में ही अपने मज़हबी कार्य करते हैं. इनमें भी अधिकाश विदेशी कंपनियों के कर्मचारी है. किन्तु आज कोई भी कंपनी किसी मुसलमान को यदि जापान भेजती है तो उसे इज़ाज़त नहीं दी जाती यहाँ कोई इस्लामी मदरसा नहीं खोला जा सकता. कारन ! जापानी मानते हैं की मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय हैं. जापान में ‘पर्सनल ला ‘ जैसा कोई शगूफा नहीं. यदि कोई जापानी महिला किसी मुसलमान से शादी कर ले तो उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाता है.

टोकियो विश्व विद्यालय के विदेश अध्ययन के अध्यक्ष कोमिको यागी के अनुसार …जापानियों की यह मान्यता है कि इस्लाम संकीर्ण सोच का मज़हब है.

इसे कहते हैं ‘ आतंक के खिलाफ जीरो टालरेंस ‘ हमारे यहाँ सब इसका उल्टा है. मुसलमानों के लिए ‘शरिया’ के अनुसार अलग से ‘ पर्सनल ला’ हैं. मदरसों को खुले दिल से सरकारी सहायता दी जाती है जहाँ ‘ जेहाद ‘का पाठ पढाया जाता है. यदि कोई आतंकी मुसलमान पकड़ा जाता है तो हमारे दिग्गी मियां जैसे सेकुलर शैतान ‘भगवा आतंक ‘ का राग अलापने लगते हैं .. वैसे भी हमारे ‘सिंह साहेब’ तो देश की सभी सुख सुविधाओं पर मुसलमानों का पहला हक़ मानते हैं…. मुंबई के ७/१३ के हमले के बाद तो ऐसा प्रतीत होता है कि हमारी नपुंसक सरकार ने आतंकी तत्वों के आगे हथियार ही डाल दिए हैं. जब पिछले पकडे गए सजा याफ्ता आतंकियों को सजा / फांसी पर चढाने की हिम्मत नहीं तब ये सेकुलर शैतान सरकार और आतंकी पकड़ कर क्या उनका अचार डालेगी ?

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