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कानपुर - नोट बंदी का हुआ असर, गिरा हरी मिर्च का भाव

कानपुर 07 दिसम्बर 2016 (मोहित गुप्ता). नोट बंदी का असर हर क्षेत्र और हर व्यापार पर देखा जा सकता है। अभी स्थिति संभलने में कुछ और समय लग सकता है लेकिन बाजार में जारी गिरावट से छोटे व्यापारियों के साथ किसानों को परेशानी का सामना करना पड रहा है। सर्दी के मौसम में हरी मिर्च की पैदावार करने वाले किसान इन दिनों खासकर परेशान हैं।

किसानों की माने तो बाहर की मण्डियों से उन्हें पैसा नहीं मिल रहा है और न ही माल मंगाया जा रहा है। ऐसे में जहां किसान मिर्च की तुडायी नहीं कर रहे थे तो अब उनको सर्दी और ओस की चिंता भी सताने लगी है। किसानों के अनुसार ज्यादा समय तक मिर्च पेडों से नहीं तोडी गयी तो वह खराब होने लगेगी। इन मजबूरियों के चलते थोक और फुटकर मण्डी में कम बिक्री होने के कारण मिर्च की कीमते आधे से भी कम हो रही है।
 
बताते चले कि कानपुर के सरसौल बाजार में हरी मिर्च की बडी मण्डी है और यहां से पूरे प्रदेश के साथ ही दिल्ली, पंजाब, गोरखपुर आदि अन्य जनपदों में मिर्च भेजी जाती है। वहीं किसानों की माने तो सरसौल, महराजपुर, नर्वल, नागापुर, महुआगांव, पतारी, डोमनपुर आदि गांवों में मिर्ची की पैदावार अच्छी होती है। वहीं जब फसल तैयार है तो नोटबंदी ने हरी मिर्च की बिक्री पर खासा प्रभाव डाला है। आलम यह कि मांग न होने के कारण मिर्च के दाम आधे से भी कम हो गये हैं। 12 से 15 रू0 किलो थोक बाजार में खुलने वाले रेट अब घटकर 5 से 7 रू0 तक हो चुके हैं। किसानों का कहना है कि नोटबंदी के चलते बाहरी व्यापारियों से कैश नहीं आ पा रहा है। शहर में होने वाली खपत से उत्पादन अधिक है और ऐसे में उन्हें मजबूर होकर कम भाव में मिर्च बेचनी पड रही है। यही नहीं सर्दी के कारण उन्हें पेडों से मिर्ची तोडनी पड रही है जिसकी खपत न होने से दाम घट रहे हैं। किसानों ने बताया कि सर्दी के कारण अब ज्यादा समय तक पेडों में मिर्च नहीं लगी रह सकती।

गेंहू व बीजों पर भी पडा असर -
नोट बंदी के साथ ही किसानों की परेशानी बढने लगी है। विशेष तौर पर समय के अनुसार बुआई होने वाली रवी की मुख्य फसल गेहूं के प्रति किसान चिंतित हैं। कानपुर चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौधेागिकी विश्वविद्यालय में जहां पिछले वर्ष इस समय बीज लेने वालों का तांता लगा रहता था वहीं इस बार किसान नहीं आ रहे हैं। वहीं जो किसान आ भी रहे हैं वह बीजों के बारे में जानकारी मात्र ही ले रहे हैं। इक्का-दुक्का किसान बीज खरीद लेते हैं। बताया जाता है पुराने नोट न लिये जाने के कारण किसान के सामने मजबूरी है और इससे गेंहू की फसल पर भी प्रभाव पडने के आसान नजर आ रहे हैं। पिछले वर्षो में बीज बिक्री का आंकडा जहां 90 कुंटल तक पहुंचता था वहीं इस बार अभी तक 30 कुंटल तक ही बीज की बिक्री हो पाई है। माना जा रहा है कि यदि जल्द ही नोटबंदी संकट से बाहर नहीं निकला गया तो कई और फसलों पर इसका प्रभाव पड सकता है।