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रमन सरकार के मुंह पर तमाचा, ग्रामीणों ने अपने खर्च पर बना डाला पुल

छत्तीसगढ़ 11 जुलाई 2016 (जावेद अख्तर). रमन सरकार तीसरी बार सत्ता हाथ में आते ही अहंकारी हो गई और गरीब प्रदेशवासियों की मुसीबतों से मुंह मोड़ कर सिर्फ गबन और घोटाले करने में ही मशगूल है। सरकार व मंत्री इस कदर लापरवाह हो चुके हैं कि उन्हें प्रदेशवासियों की आवाज़ सुनाई ही नहीं दे रही है और न ही दिक्कतें दिखाई दे रही हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण है यह पुल। जिसे विकास का दावा करने वाली सरकार ने नहीं बनाया है बल्कि सरकार से गुहार लगा लगा कर चुके ग्रामीणों ने मिलकर बनाया है।

जानकारी के अनुसार पुटपुरा, घिरघोल और दौनाझार तीन गांव जिला मुख्यालय की तरफ जाने वाले मुख्य मार्ग से अलग-थलक कटे हुए थे। बारिश के दिनों में पुटपुरा नाला पूरी तरह भर जाता था और इन तीनों गांव के लोगों का यहां से बाहर निकलना दूभर हो जाता था। नाले के उस पार बने स्कूल तक पहुंचने में बच्चों को तकलीफ होती थी। पुटपुरा, घिरघोल और दौनाझार गांवों के ग्रामीणों ने अपनी समस्या से शासन प्रशासन को कई दफे अवगत कराया। वे इस परेशानी को लेकर विधानसभा अध्यक्ष व स्थानीय विधायक गौरीशंकर अग्रवाल के पास भी गए, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।

रमन सरकार के विकास की असलियत -
रमन सरकार तीसरी बार सत्ता हाथ में आते ही अहंकारी हो गई और जितनी भी योजनाओं का क्रियान्वयन विगत चार वर्ष में किया गया उन सभी में शत प्रतिशत भ्रष्टाचार अपनाया गया है। रमन सरकार के सभी मंत्रियों का विकास सिर्फ कागज़ों में ही दिखाई देता है। सरकार व मंत्री इस कदर लापरवाह हो चुके हैं कि उन्हें प्रदेशवासियों की आवाज़ चार साल से सुनाई नहीं दे रही है और न ही दिक्कतें दिखाई दे रही हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण है यह पुल। इसमें सरकारी अनुदान का एक भी रूपया नहीं लगा है। चार सालों से हजारों ग्रामीण त्रस्त व हलाकान थे और सरकार मंत्री संत्री सबसे गुहार लगाते रहे मगर सभी ने कानों में रूई के बंडल ठूंस रखे थे और आंखों पर अहंकार का चश्मा। हलकान, मुसीबतों व जान जोखिम में डालने से बचने के लिए सभी ग्रामीणों ने मिलकर अपने खर्चे पर पुल का निर्माण कर डाला।
 
गांव वालों ने मिलकर रच दिया इतिहास -
गांव वालों ने तय किया कि करीब 95 फुट लंबी पुलिया का निर्माण वे आपसी सहयोग से राशि इकठ्ठा कर व श्रमदान कर करेंगे। मजबूत इच्छाशक्ति के साथ शुरू किया गया और देखते ही देखते पुल बनकर तैयार हो गया। अब पुल बन गया तो बात आई इसके लोकार्पण की। इस बार लोगों ने तय किया कि किसी नेता के हाथ इसका लोकार्पण कराने की बजाए गांव के आम मजदूर और किसान के हाथ इसका लोकार्पण कराया गया। इस बार की बारिश में बच्चों का स्कूल जाना बंद नहीं हुआ है। इस पुल की मदद से वे अब आसानी से स्कूल जा सकते हैं, लेकिन पैसों की कमी की वजह से पुल के किनारे सुरक्षा दीवार नहीं बन पाई है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने नहीं सुनी तो हमने खुद ही रास्ता तलाश लिया। आने वाले समय में अधूरा काम भी श्रमदान और आपसी सहयोग से पूरा कर लिया जाएगा। सही मायने में इसे कहते हैं, विकास के नाम पर अपना गुणगान करने वाली सरकार को आईना दिखाना।

पुटपुरा, घिरघोल और दौनाझार गांवों के लोगों ने क्षेत्र के विधायक गौरीशंकर अग्रवाल और जिले के आला अधिकारियों से पुटपुरा नाले पर पुल बनवाने को लेकर कई बार गुहार लगाई, लेकिन किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया. बच्चों को स्कूल आने-जाने में हो रही परेशानी को देखते हुए ग्रामीणों ने पुल निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री जुटाकर पुल का निर्माण कर लिया। जिससे अब आसानी से बच्चे स्कूल तक आ-जा रहे हैं। वहीं स्कूली बच्चे व ग्रामीण पुल बनने से खासे उत्साहित हैं। ग्रामीणों ने पुटपुरा नाले पर पुल बना लिया है लेकिन पुल के किनारों पर बाउंड्री अभी नहीं की गई है। बारिश के चलते बाउंड्री का काम रोक दिया गया है बारिश के थमते ही बाऊंड्री भी बना ली जाएगी।
  
ऐसे गांववालों ने मिलकर बना डाला पुल -
– लोगों ने श्रमदान और चंदे के पैसे से 60-70 फीट चौड़ी नदी पर पुल भी बना दिया। जबकि यहां पर पुल न होने के कारण बारिश में पिछले वर्ष 2 ग्रामीणों की मौत हो गई थी।
– जिस नदी पर सड़क बनाई गई है बरसात में वहां 15 से 20 फीट पानी रहता है।
– सड़क-पुलिया बनाने में अहम रोल अदा करने वाले त्रिलोकी ने बताया कि चार वर्ष में 6 ग्रामीणों की मौत हो चुकी है।
– इसके बाद से ही सैकड़ों ग्रामीणों ने पुल बनाने की मांग कर रहे थे लेकिन राज्य सरकार, मंत्री व नेताओं की ओर से सिर्फ आश्वासन ही मिलता था।
– आखिरकार गांव वाले चंदे और श्रमदान से यहां पुल बनाने के लिए राजी हुए।
– इस काम को करने के लिए 250 लोगों ने लगातार 70 दिनों तक काम किया।
– इस पुल से 5 से ज्यादा गांवों को फायदा मिलेगा।
– काम के लिए दो पोकलेन, पांच हाइवा, हाइड्रा व जेसीबी तक किराये पर लिया गया।
– एक बड़ा पुल और दो पुलिया बनाने का काम 25 मई 2016 से शुरू किया गया था। पुल बनाने के लिए 85 पीस ह्यूूम पाइप लाने में दो दिन टेलर चला।
– 600 बैग सीमेंट, 20 ट्रैक्टर छरी (गिट्टी), 6 हाईवा बोल्डर, मेटल 45 ट्रैक्टर और 90 ट्रैक्टर बालू से सड़क और पुल बनाया।

सवाल पर मुखिया व मंत्री छिपा रहे मुंह -
गौरतलब है कि एक ओर जहां छत्तीसगढ, सरकार और उसके विधायक व सांसद प्रदेश में हो रहे विकास कार्यों को लेकर अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते हैं, वहीं ऐसे में इन ग्रामीणों ने खुद ही पुल का निर्माण और लोकार्पण कर उन्हें हकीकत का आईना दिखा दिया है। पुल पर जैसे ही मुख्यमंत्री व मंत्रियों से पूछा गया सभी अपना अपना कलंकित मुंह छिपाने लगे और किसी ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। इसी से समझ सकते हैं कि राज्य सरकार के विकास के दावों में कितना सच है और विगत चार सालों में विकास और विस्तार किसका हुआ है।

रमन सरकार से सीखें संपत्ति बढ़ाने के गुर -
वैसे विगत चार सालों में सरकार के मंत्रियों, संत्रियों, अफसरों, चमचे और चाटुकारिता करने वालों की फुल ऐश है और सभी साईकिल से चार पहिया वाहन तक पहुंच सके हैं। आम जनता के रूपयों का सदुपयोग निजीहित में कैसे किया जाता है इसके लिए सरकार से टिप्स लेना काफी लाभप्रद हो सकता है। जहां तीन गांव के ग्रामीणों ने इस पुल के निर्माण को पूरा करने में 15 लाख रूपये के खर्च में पूरा कर लिया है। अभी लगभग 5-6 लाख रूपये का कार्य बचा हुआ है मात्र दीवार उठाना।
   
राज्य सरकार का विकास -
वर्ष 2015 में इतना ही बड़ा पुल बस्तर में राज्य सरकार ने 2.5 करोड़ रुपए खर्च कर निर्माण कराया है और 8 माह बाद पुल में दरारें पड़ गई एवं एक हिस्सा दरक कर गिर भी चुका है जबकि उच्च शिक्षित इंजीनियर व अधिकारी ऐसे सड़े व कमज़ोर पुल बनाने के लिए योजना बनाते है। आम जनता के धन को राज्य सरकार व अधिकारी मिलकर खुलेआम लूट रहे हैं और इसी को सरकार विकास बताती है।