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Bithoor के सिद्ध पीठ काली जी के मन्दिर की कहानी, सरदार परमजीत सिंह के जुबानी

कानपुर 4 जून 2016 (रोशनी चौरसिया). उत्‍तर प्रदेश के कानपुर जिले के बिठूर इलाके में गंगा के पास स्थित है सिद्ध पीठ काली जी की मंदिर। कहते हैं कि इसकी मूर्ति सैकड़ों साल पुरानी है। यह मूर्ति सैकड़ों सालों से यहां पर रेत में दबी हुई थी। जिस स्‍थान पर वह मूर्ति है वहां पर बहुत पहले गंगा प्रवाहित होती थी। स्‍थानीय निवासी सरदार परमजीत सिंह ने सपने में एक काली माता जी की मूर्ति दिखाई दीं।

जो कि उन्‍हें ऐसा अनुभव करा रही थी, कि उस मूर्ति को खोज कर उसे विराजित कर अराधना और पूजा करें। जब सरदार परमजीत सिंह जी को यह स्‍वप्‍न अत्‍यधिक आने लगा तो उन्‍होंने गुरूद्वारे जाकर बाबा जी से अर्जी लगाई कि ‘’हे वाहे गुरू जो स्‍वप्‍न मुझे आता है, अगर वह सच है तो मेरे सामने आये। नहीं तो यह स्‍वप्‍न मुझे आने ही बंद हो जाये’’ परन्‍तु उन्‍हें यह स्‍वप्‍न आता रहा। तब सरदार परमजीत सिंह जी ने अपने मित्र किशोर शुक्‍ला जी के साथ इस मूर्ति की खोज बिठूर में शुरू कर दी। काफी समय तक मूर्ति की खोज करने पर उन्‍हें यह मूर्ती गंगा के पास रेत में दबी मिली। जैसा उन्‍होंने सपने में देखा था, वैसी ही मूर्ति उन्‍हें वहां पर मिली। उन्‍होंने उस मूर्ति को वहीं पर विराजित किया। सन् 1993 में वहां काली मन्दिर की स्‍थापना की। जिस स्‍थान पर काली जी की मूर्ति हैं, उसी के पीछे शिव पार्वती की भी प्रतिमा विराजित है। 

कहा जाता है कि उस शिव पार्वती की प्रतिमा के पास दो सांपों का जोड़ा भी रहता है। उस मन्दिर के पास गंगा जी का पानी भी बहता था, कहते हैं कि कभी माता के चरणों के उपर से नीर की धारा भी बहती थी। सरदार परमजीत सिंह जी ने मन्दिर का निर्माण बड़े सुन्‍दर तरीके से कराया और सिद्ध पीठ काली जी के मन्दिर की पूजा अराधना भी कराई। आज काली माता की पूजा करने दूर-दूर से भक्‍तगण आते हैं, और माता की पूजा करते हैं। प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु काली माता के दर्शन करने आते हैं और बड़ी श्रद्धा के साथ माता की पूजा अर्चना करते हैं। बिठूर में स्थित इस मन्दिर की बहुत मान्‍यता है। इस मन्दिर को आज भी लोग बहुत ही श्रद्धा के साथ मानते हैं, और पूजा करते हैं। सरदार परमजीत सिंह ने इस मन्दिर की स्‍थापना अपने पिता सन्‍तोख सिंह अरोड़ा के नाम पर की और इस मन्दिर के लिए बहुत योगदान भी दिया है। आज इस मन्दिर के सेवक अंगद सिंह अरोड़ा जी है। 

काली जी के प्राचीन मन्दिर और पुरानी मूर्ति के अलावा वहां पर बहुत बड़ा और सुन्‍दर शिव जी का मन्दिर भी है। उस मन्दिर में एक काफी बड़ा और बह़त पुराना शिवलिंग है। यह मन्दिर भी अत्‍यधिक सुन्‍दर है और मन्दिर को रामेश्‍वर धाम कहते हैं। रामेश्‍वर धाम मन्दिर बिठूर में गंगा के किनारे स्थित यह मन्दिर अत्‍यधिक सुन्‍दर और मनभावन हैं। जिसे देखने और दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं। इसके अलावा यहां पास ही में मध्‍य तोताद्रि मठ श्‍याम मन्दिर है इस मन्दिर का निर्माण स्‍वामी नारायण रामानुजदास जी के द्वारा हुआ था। एक अन्‍य प्रसिद्ध मंदिर टिकैतराय शिव मन्दिर भी समीप ही है। जब कभी आप बिठूर आयें तो इसके दर्शन अवश्‍य करें।यह मन्दिर भी बिठूर की धार्मिक, सांस्‍कृति एवं पौराणिक विरासत को सम्‍भाले है। 

विभिन्‍न राजाओं के द्वारा यहां मन्दिर भवन निर्मित कराने की परम्‍परा रही है। राजा टिकैत राय अवध के नवाब गाजी उद्दीन हैदर (1814-1827 ई0) के मंत्री थे। इनके द्वारा बनवाया यह मंदिर लाल बलुए पत्‍थरों से निर्मित है एवं तत्‍कालीन वास्‍तुकला का एक अच्‍छा उदाहरण हैं। शिव मन्दिर से सटी बरादरी का निर्माण भी 19 वीं सदी में राजा टिकैत राय ने श्रद्धालुओं के एवं दर्शनार्थियों के निवास हेतु बनवाया था। इसी कडी में पास ही श्री गंगा आश्रम बरादरी भी है। यह बरादरी लगभग 200 वर्ष प्राचीन हैं। इसका निर्माण उस समय हुआ था जबकि तीर्थ यात्रियों को कोई भी सार्वजनिक निवास स्‍थान ब्रम्‍हावर्त में उपलब्‍ध नहीं था। यह भवन बहुत काल से जीर्ण अवस्‍था में पड़ा हुआ था। सन् 1955 में इसे उत्‍तर प्रदेश सरकार ने 2000 रूपये का अनुदान प्रदान करके इसका जर्णोद्वार कराया। इन मन्दिरों की पूजा के लिए दूर-दूर से लोग आते है। और यहां सावन मास में बहुत बड़ा मेला भी लगता है। हजारों की संख्‍या में भक्‍त गंगा में स्‍नान करने आते हैं और सभी नये पुराने मन्दिरों के दर्शन करते हैं। पतित पावन गंगा में स्‍नान करने के बाद भक्‍त गंगा मां की पूजा और आरती भी करते है। गंगा के पवित्र जल से स्‍नान कर सभी मन्दिरों के दर्शन करते है और वहां घूमते फिरते हैं। 

तो आप क्‍या सोच रहे हैं, चले आइये बिठूर......................