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चिटफंड का फैलता मकड़जाल, छत्तीसगढ़ की जनता हुई बेहाल

छत्तीसगढ़ 28 जून 2016 (जावेद अख्तर). प्रदेश में चिटफंड कंपनियों द्वारा तकरीबन 12 हज़ार करोड़ तक का फ्राड किया गया है वो भी मात्र विगत चार वर्षों में। इससे सहस कयास लगाया जा सकता है कि परिस्थिति कैसी बन चुकी है हालांकि शासन प्रशासन ने भी काफी सराहनीय कार्य किया और कई बड़ी चिटफंड कंपनियों पर कार्यवाही की।
चिटफंड कंपनियों पर चार साल में 199 एफआईआर, 333 आरोपी गिरफ्तार किए गए बावजूद इसके प्रदेश में आज भी लगभग दो सौ से भी अधिक चिटफंड कंपनियां व्यापार कर रही है। छत्तीसगढ़ में सरकार ने लोगों से अवैध रूप से रकम जमा कराने वाली चिटफंड कंपनियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इस प्रकार की कंपनियों के खिलाफ पिछले चार साल में 199 एफआईआर दर्ज कर 333 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। मुख्य सचिव विवेक ढांड की अध्यक्षता में मंत्रालय (महानदी भवन) में गुरुवार को आयोजित गैर-बैंकिग क्षेत्र की गतिविधियों पर निगरानी के लिए गठित राज्य स्तरीय समन्वय समिति की बैठक में यह जानकारी दी गई।

बैठक में मुख्य सचिव ने 'छत्तीसगढ़ निक्षेपको के हितों के संरक्षण अधिनियम, 2005' के तहत गैरकानूनी ढंग से रुपयों के लेन-देन में लगी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने कहा। उन्होंने पुलिस विभाग, रजिस्ट्रॉर ऑफ कंपनीज और भारतीय रिजर्व बैंक को इस तरह की अवैध गतिविधियों में शामिल कंपनियों पर लगातार नजर रखने के निर्देश भी दिए। मुख्य सचिव ने अधिकारियों से कहा कि वे ऐसे मामलों का संज्ञान लेकर दोषी व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें, जिससे कि जनता की अमानत की सुरक्षा हो और अवैध धन संग्रहण पर लगाम लगाया जा सके।
वित्त सचिव अमित अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश में लोगों से अवैध रूप से रकम जमा कराने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। गृह विभाग के ओएसडी पीएन तिवारी ने बताया कि पिछले चार साल में की गई कार्रवाई का ब्यौरा दिया।

जिला स्तर पर समिति गठित -
अधिकारियों ने बताया कि गैर-कानूनी ढंग से रकम जमा लेने वाली कंपनियों व अन्य वित्तीय संस्थाओं की गतिविधियों के निरीक्षण, शिकायतों की समीक्षा व कार्रवाई के लिए जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति गठित की गई है। सूचना दिए बगैर डिपॉजिट लेने वाली कंपनियों पर तीन माह के कारावास के दंडनीय अपराध का प्रावधान किया गया है। असंज्ञेय अपराध होने के कारण शिकायत या सूचना मिलने पर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है।

अधिनियम के तहत डिपॉजिट के भुगतान नहीं करने पर वित्तीय संस्था की संपत्ति कुर्क की जा सकती है। साथ ही पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने का भी प्रावधान है। इसमें अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। बैठक में डीजीपी एएन उपाध्याय, प्रमुख सचिव एके सामंतरे व बीव्हीआर सुब्रमण्यम, सचिव अरुण देव गौतम, संचालक संस्थागत वित्त डॉ. कमलप्रीत सिंह, सहकारी संस्थाओं के पंजीयक जेपी पाठक व भारतीय रिजर्व बैंक की क्षेत्रीय निदेशक सरस्वती एस. सहि अन्य अफसर मौजूद थे।