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350 वर्ष से ज्यादा पुराना है पनकी का नागेश्वर मंदिर और कछुआ तालाब

कानपुर 24 अगस्‍त 2019 (महेश प्रताप सिंह). पनकी डी ब्लाक में हनुमान मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर बाबा नागेश्वर का प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक कछुआ तालाब स्थित है। यह मंदिर अपने सुंदर तालाब व उसमें घूमते बुध ग्रह के स्वामी कश्‍यप महाराज (कछुआ) के कारण सारे शहर में प्रसिद्ध है। यहां बुद्ध ग्रह को शान्‍त एवं अनुकूल करने के इच्‍छुक लोगों का मेला लगा रहता है।


जानकारी के अनुसार 350 वर्ष पहले सिंध हैदराबाद जो कि अब पाकिस्तान में है, वहां से पलायन करके आने वाला पाठक परिवार समुद्री रास्ते से गुजरात पहुंचा। रास्ते में उन्होंने 12 ज्योतिर्लिंग में एक ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर के दर्शन के दौरान नर्मदा नदी में स्नान किया तभी उन्हें एक अदभुत पत्थर मिला, जो देखने में नागेश्वर की तरह था। पाठक परिवार ने यह अदभुत पत्थर अपने साथ रख लिया और उसे इस मंदिर में लाकर रखा तथा यह लोग पनकी के निवासी बन गए। जब लोगों को इस परिवार ने शिवलिंग के बारे में बताया तो सभी लोगों ने प्राण प्रतिष्ठा कर इस शिवलिंग की स्थापना कराई, तभी से यह मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है। 


इस मंदिर में टी सीरीज के गुलशन कुमार भगवान नागेश्वर की महत्ता सुनकर दर्शन करने आ चुके हैं। मन्दिर की महत्वता दिनों दिन कछुआ तालाब की वजह से बढ़ती जा रही है।  खुलासा टीवी के संवाददाता जब वहां पहुंचे तो वहां काफी लोग कछुओं को पनीर और ब्रेड खिला रहे थे। वहीं मंदिर में उपस्थित लोगों ने बताया कि आसपास जिस किसी को शारीरिक समस्या होती है तो वह नागेश्वर मंदिर की शरण में ही आता है और उसकी सभी कामनाएं पूरी होती हैं। वैसे मन्दिर और तालाब को लेकर कई प्राचीन कथाएं भी लोगों के बीच में आस्था की अलख जगाये हुए हैं। इस तालाब की कहानी है कि पाठक परिवार के पूर्वजों ने इसको खुदवाया था। इसके बाद इसमें मछलियाँ डाली गयीं। कछुए इस तालाब में कहां से आये किसी को नहीं मालूम लेकिन इन कछुओं की संख्या अब सैकड़ों में हो गयी है। जिसके चलते एक अच्छा पर्यटन स्थल पनकी में बन गया है। 


क्षेत्रीय लोगों की मांग पर कमिश्नर व डीएम ने कछुआ तालाब का निरीक्षण किया था। जिसके बाद प्रशासन द्वारा तालाब का सुन्दरीकरण कराने का निर्णय लिया और यहां प्रशासन द्वारा सुन्दरीकरण का काम चालू करा दिया गया है। मंदिर के महंत एवं संरक्षक देवीदयाल पाठक ने बताया कि यह मंदिर लगभग 350 साल से ज्यादा प्राचीन है। उसके सामने ऐतिहासिक कछुआ तालाब है जिसमें बड़े-बड़े कछुए जिनका वजन 50-60 किलो के आस-पास है जिसकी पीठ का कवच ढाई से तीन फुट होता है एवं मछलियां भी निवास करती हैं। ऐसी मानता है कि बाबा के दर्शन के उपरांत कछुओं को दाना खिलाने से बुध ग्रह शांत होता है। जिसके फलस्वरूप भक्तों के बिगड़े काम बनते हैं। आत्मा को शांति मिलती है, इसी आस्था के साथ यहां भक्तों का मेला लगा रहता है।


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