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खुलेआम धमकी देते घूम रहे हैं पत्रकार के हमलावर

कानपुर 27 मार्च 2019. सूबे में पत्रकारों पर आये दिन हो रहे हमले लोकतन्‍त्र को गर्त की तरफ धकेलने का काम कर रहे हैं. इस बात को हम झुठला नहीं सकते कि अगर ऐसे ही पत्रकारों पर हमले होते रहे तो एक दिन लोकतंत्र खतरे में होगा, साथ ही अत्याचार और भ्रष्टाचार बहुत आसानी से फल फूल रहा होगा। सवाल यह उठता है कि बिना किसी राजनैतिक या प्रशासनिक शह के ये लोग ऐसे काम को अंजाम कभी नहीं दे सकते, दरअसल पत्रकारों पर हमले वही लोग करते या करवाते हैं जो बुराइयों में गले तक डूबे हुये हैं.
ताजा मामला कानपुर के जूही थानाक्षेत्र का है यहां एक स्‍थानीय अखबार के छायाकार पप्‍पू यादव पर बीते माह इलाके के दबंग भूमाफिया दिलशाद खान ने साथियों समेत हमला कर दिया था। काफी दबाव एवं हंगामे के बाद स्‍थानीय जूही थाने की पुलिस ने मामले की रिपोर्ट तो लिखी पर धाराओं में खेल कर दिया। लूट के बजाये चोरी की धाराओं में मुकदमा लिखा गया और उस पर भी कोई उल्‍लेखनीय कार्यवाही आज तक नहीं की गयी। दबंगों के हौसले इतने बुलन्‍द हैं कि वो लोग आते जाते पप्‍पू यादव को मुकदमा वापस लेने को धमकाते हैं और गाली गलौज करते हैं। थाने से ले कर एसपी तक पीडित पत्रकार ने सबके चक्‍कर लगाये पर कहीं से मदद हासिल नहीं हुयी।

पीडित पत्रकार पप्‍पू यादव ने बताया कि उनके ऊपर जूही थाना क्षेत्र में विगत 27 फरवरी 2019 को जानलेवा हमला हुआ था, उनका कैमरा भी लूट लिया गया था। लेकिन जूही पुलिस ने खानापूरी करके धाराओं में हेरफेर कर दिया और मात्र कैमरा चोरी का मुकदमा दर्ज किया। आज उन पर हमला हुये एक महीना हो गया इस बीच उन्‍होंने सभी अधिकारियों से हाथ जोड़कर कई बार उचित कार्यवाही करने के लिये निवेदन किया कि लेकिन पुलिस ने प्रभावशाली भूमाफिया दिलशाद खान के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं की। श्री यादव ने बताया कि उनके ऊपर जूही पुलिस और भूमाफिया लगातार समझौता करने का दबाव बना रहे और न करने पर गम्‍भीर अंजाम भुगतने की धमकी देते हैं। 
विदित हो कि पत्रकारिता अगर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है तो पत्रकार इसका एक सजग प्रहरी है। देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली पत्रकारिता आज़ादी के बाद भी अलग-अलग परिदृश्यों में अपनी सार्थक जिम्मदारियों को निभा रही है। लेकिन मौजूदा दौर में पत्रकारिता दिनों दिन मुश्किल बनती जा रही है। जैसे-जैसे समाज में अत्याचार, भ्रष्टाचार, दुराचार और अपराध बढ़ रहा है, पत्रकारों पर हमले की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। दरअसल, मीडिया और पत्रकारों पर हमला वही करते हैं या करवाते हैं जो इन बुराइयों में डूबे हुए हैं। ऐसे लोग दोहरा चरित्र जीते हैं, ऊपर से सफेदपोश और भीतर से काले-कलुषित। इनके धन-बल, सत्ता-बल और कथित सफल जीवन से आम जनता चकित रहती है। वो इन्हें सिर-माथे पर बिठा लेती है, लेकिन मीडिया जब इनके काले कारनामों की पोल खोलने लगता है तो ये बौखला जाते हैं और पत्रकारों पर हमले करवाते हैं। पुलिस और शासन तंत्र भी इन्हीं का साथ देते हैं। बल्कि कई बार तो मिले हुए भी नजर आते हैं। दिखावे के तौर पर ज़रूर मामले दर्ज कर लिये जाते हैं, लेकिन होता कुछ नहीं। पप्‍पू यादव का मामला भी इसी दिशा में जाता प्रतीत हो रहा है।

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