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बंद हो आतंकवाद के नाम पर राजनीति - डॉ तारिक़ ज़की

कानपुर 17 फरवरी 2019 (महेश प्रताप सिंह). आल इण्डियन रिपोर्टर्स एसोसिएशन (आईरा) के चेयरमैन और वर्ल्ड ऐड आर्गेनाइजेशन फ़ॉर ह्यूमन राइट के सेक्रेटरी जनरल डॉ तारि‍क़ ज़की ने आज एक प्रेस  वार्ता में कहा कि जम्मू कश्मीर के पुलवामा में एक बार फिर आतंकवादी हमला हुआ और देश के 40 जवानो को अपनी कुर्बानी देनी पडी, पूरे देश में आक्रोश है हर भारतीय आहत है तथा आतंकवाद पर स्पष्ट और सीधी कार्यवाही चाहता है। हम शहीद सैनिकों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाने देंगे और आतंकवादियों को सबक सिखाया जायेगा।



डॉ तारि‍क़ ज़की ने कहा कि सरकार तो आतंकवाद को जड़ से मिटाने के दावे करती रही है, फिर क्यों समय समय पर देश की छाती आतंकवाद की घिनौनी साज़िशों से छलनी होती रही है। सरकार आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने के लिये क्यों नहीं सीधी और स्पष्ट कार्यवाही करती है। यदि निष्पक्ष भाव से विश्लेषण किया जाये तो आतंक के नाम पर भी देश में राजनिति होती दिखेगी तथा आतंकवाद को भी सरकार तथा राजनैतिक दल केवल एक मुद्दे के तौर पर लेते रहे हैं तथा इससे अधिक से अधिक राजनैतिक लाभ कमाने की कोशिश करते अधिक दिखते हैं, ठोस एवं निर्णायक कार्यवाही करते नहीं दिखते।


देशवासियों को यह बात भी पता होनी चाहिये कि पुलवामा की घटना को अंजाम देने वाले संगठन का मुखिया कभी भारत की जेल में चक्की पीसा करता था, किंतु एक "विमान अपहरण" की घटना में बदले के तौर पर तत्कालीन अटल सरकार ने ही इसे आजाद छोडा था। पुलवामा की घटना से पूरा देश ग़म और गुस्से में है, किंतु इस गुस्से को भी राजनेता अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिये भुनाने में लगे हैं तथा ऐसी क्रियाएँ होने लगी कि जैसे उक्त घटना के पीछे एक वर्ग विशेष का हाथ है। कुछ उत्साहित युवा कैंडिल मार्च आदि निकाल कर ऐसे ऐसे भडकाउ नारे लगा रहे हैं जिसमें एक वर्ग विशेष को टारगेट किया जा रहा है ।


उद्देश्य यह प्रतीत होता है कि क्रिया की प्रतिक्रिया हो और देश में हिंसा भड़के, जिससे राजनैतिक हित साधे जा सकें। सवाल उन युवाओं पर भी उठाना लाजिमी है जो मार्डन टैक्नालॉजी से लैस होने पर भी राजनैतिक स्टंटों से विचलित हो जाते हैं तथा यह नहीं सोचते की घर को जलाकर किसका भला कर रहे हैं। देश के किसी भी हिस्से में यदि किसी के भी जान माल को जरा भी क्षति पहुचंती है तो वो सीधे देश की ही छति होती है। एक छोटा सा सांप्रदायिक दंगा देश को बीसियों वर्ष पीछे धकेल देता है। स्वंय को देशभक्त प्रदर्शित करने से पहले इन बुनियादी चीजों का युवा वर्ग कब संज्ञान लेगा तथा देश की राजनीति की दिशा कब बदलेगा। समय का चक्र यह सवाल बार बार करता रहा है।