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रेल का खेल (5) - पार्सल में हो रहा जम कर घोटाला, RPF पोस्‍ट पर लगा दो ताला

कानपुर 17 दिसम्‍बर 2018 (सूरज वर्मा). पिछली कड़ी में हमने आपको बताया था कि किस प्रकार कानपुर में रेलवे के माध्यम से बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी हो रही है। इस टैक्‍स चोरी का एक बड़ा हिस्‍सा कानपुर के गम्मू खां के हाते में स्थित रेडीमेड गारमेंट्स, बच्चों के कपड़ों और होजरी के विशाल कारखानों से संचालित हो रहा है। ये सिलाई और रेडीमेड के कारखाने व शोरूम गम्मू खां के हाते और बांसमंडी स्थित हमराज कांप्लेक्स व उसके आसपास हैं।



सूत्रों के अनुसार इन इलाकों से निकलने वाले माल की पेटियां हाते की विभिन्न गलियों से ही सील पैक्ड होकर, रिक्शों, ट्राॅलियों व लोडरों में लदकर सीधे हरबंसमोहाल स्थित रेलवे के मुख्य मालगोदाम में रात 12 बजे के बाद से ही पहुंचना शुरू हो जाती हैं। इसके बाद सारा माल गोदाम से सीधे बिना किसी क्राॅस चेकिंग के सुरंगों के रास्ते प्लेटफार्म पर पहुंचा दिया जाता है। फिर ट्रेन आते ही पार्सल वैगन खोलकर उसमें सीधे लोड कर दिया जाता है।


सूत्रों की माने तो सबसे खतरनाक जानकारी ये है कि कानपुर से बनकर, पैक होकर देशभर में और कई पड़ोसी मुल्कों तक एक्सपोर्ट हो रहे इन बच्चों के कपड़ों और रेडीमेड गारमेंट्स के डिब्बों को पैक कराके पहुंचाने का जिम्मा ले रखा है जेल में बंद एक खतरनाक हिस्ट्रीशीटर और उसके भाई ने। इतना ही नहीं रेडीमेड कपड़ों के इन पार्सलों-डिब्बों में हवाले की मोटी रकम और दूसरी खतरनाक चीजें भेजी जा रही हैं। लेकिन आरोप है कि स्थानीय पुलिस, टैक्स डिपार्टमेंट और रेलवे सहित जिम्मेदार लोग ‘सुविधा शुल्‍क’ के कारण आंखें मीचे हैं। सेल्स टैक्स या एक्साइज आदि विभागों के पास तो रेडीमेड के इस एक्सपोर्ट का जैसे कोई हिसाब-किताब ही नहीं है।

स्टेशन पर इन रेडीमेड गार्मेंट्स के पहुंचने, पार्सल यानों में रेडीमेड या दूसरी चीजों को लोड किये जाते वक्त आसपास खड़े एक-दो आरपीएफ और जीआरपी के जवान दूर कहीं हंसी-ठिठोली में व्यस्त रहते हैं। चीफ पार्सल सुपरवाइजर, उनके सहायक या रेलवे विजलेंस का कोई अधिकारी तो आसपास कभी दिखता ही नहीं। जा रहे माल के लिये वैगन के लीज होल्डर या ठेकेदार द्वारा भरा गया मनमाना ‘डिक्लेरेशन’ तो पहले ही जमा हो चुका होता है। पीएमएस में या कोरियर में इनके बिल, बिल्टी या रसीदें कोई मांगता नहीं है, टैक्स बचाने के लिये ये कागज भी मनमाने तरीके से बनाकर लगा दिये जाते हैं।

कर्नलगंज से निकलने वाली रेडीमेड कपड़ों की पेटियां मूलत: दो प्रकार की हैं। पहली तो छोटी, यानि कि 80 एमएम और दूसरी 120 एमएम की। ये लकड़ी के बाॅक्सेज होते हैं, जो इलाके में ही लकड़ी के पुराने टालों पर बनते हैं। इनका वजन एक कुंटल से सवा कुंटल के बीच होता है। इनके अंदर भरा रहता है बेहद कीमती और महंगा कपड़ा, एक्सपोर्ट क्वालिटी वाले रेडीमेड गारमेंट्स। एक पेटी की कीमत एक लाख से डेढ़ लाख रुपये तक होती है।

सूत्र बताते है कि यूं तो सेंट्रल स्‍टेशन पर छुटभैया बहुत से दलाल हैं, लेकिन जो सरकार को बड़े स्तर पर टैक्स का चूना लगा रहे हैं और जिनकी रेडीमेड कपड़ों की ही कम से कम 100 पेटी सेंट्रल स्टेशन से रोज जाती हैं। इस तरह से दो कथित बड़े दलाल दिलीप कुमार गुप्ता उर्फ पप्पू मीठे तथा अंकल उर्फ वसी हैं। ये सभी दलाल थाना कर्नलगंज क्षेत्र में स्थित रेडीमेड के बड़े-बड़े कारखानों से रेडीमेड के करोड़ों रुपये मूल्य के डिब्बे पैक करवा के, लीज वाले पार्सल यानों में लदवा कर बिना फूटी पाई टैक्स दिये, सीधे गंतव्य तक पहुंचाते हैं, वो भी रेलवे के नाम पर बनाई गई फर्जी बिल-बिल्टि‍यों के सहारे।

अनवरगंज स्टेशन पर दिल्ली से आने वाली कालिंदी एक्सप्रेस से उतरने के बाद महंगी महीन तंबाकू, विदेशी एक्सपोर्ट की गई सिगरेट आदि तुरंत पीछे के गेटों से बाहर निकाल कर, लोडरों से अनवरगंज थानाक्षेत्र में पहुंचा दी जाती है। ये माल अनवरगंज थाने के एकदम बगल वाली, ‘पान दरीबा’ कहलाने वाली गली में पहुंचता है। जहां पर सिगरेट, पान मसाला, महंगी तंबाकू सहित कि‍राना के भी ढेरोंं स्टाकिस्‍टाें की दुकानें हैं। वहीं आसपास के गोदामों में इस कर अपवंचित माल को स्टोर कर लिया जाता हैं। सभी को जानकारी होने के बावजूद सेल्स टैक्स या एक्साइज विभाग कभी भी पान दरीबा के गोदामों या दुकानों पर छापा नहीं मारता।आखिर क्यों ?? ये राज की बात है।

लीज वाले पार्सल यान में भरे माल को चेक करने के नाम पर केवल दिखावा किया जा रहा है, जबकि पैसेंजर ट्रेन में ये माल लादे जाने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से सघन चेकिंग होनी चाहिये। जानकारी के अनुसार रेलवे सुरक्षा के लिये आरपीएफ की ‘सीआईबी’ जैसी शाखाओं पर निर्भर है। पर रेलवे में पीएमएस सहित लीज्ड यान में करापवंचित माल का हाल देखकर लगता है कि सीआईबी का भी भगवान मालिक है। बताते चलें कि सामान्य एसएलआर या पार्सल यान की केपेसिटी 3 से 4 टन होती है, इतना माल भेजना ही परमिटेड है। लेकिन लीज होल्डर, यानि ठेकेदार इन बोगियों में 5 से 7 टन तक माल भर डालते हैं। इससे रेलवे के वैगन बहुत जल्दी जर्जर होकर टूटने लगते हैं।

शेष अगले अंक में.....................