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क्राइम फाइल - सट्टे का मटका, दे रहा लाखों का झटका

कानपुर 19 दिसम्‍बर 2018 (सूरज वर्मा). 'अपने पे भरोसा है तो एक दांव लगा ले' गुजरे जमाने का यह सदाबहार गीत इन दिनों शहर में धड़ल्ले से चल रहे पर्ची वाले सट्टे पर सटीक बैठता है।आसानी से ज्‍यादा पैसे कमाने के लालच में लोग अपनी गाढ़ी कमाई गंवा रहे हैं। ऐसा नहीं कि क्षेत्रीय पुलिस यह सब नहीं जानती लेकिन सवाल ये है कि सब जानते हुये भी कुछ करती क्‍यों नहीं ??

सूत्र बताते हैं कि बीते कुछ सालों से पाइप के अन्‍दर बह रही नहर पर बनी प्रसिद्ध पुलिया के समीप सट्टे का काला कारोबार चालू है। कई बार तो इलाकाई पुलिस ने इन सट्टा माफियाओं को जेल भी भेजा, लेकिन इनका काम बदस्तूर जारी रहा। थक हार कर पुलिस भी अब इनके नेटवर्क में शामिल हो चुकी है, इसलिए इनके सट्टे के ठीये पर कोई हाथ डालने की हिम्‍मत नहीं करता है। क्षेत्रीय लोगों की माने तो एक भगवाधारी नेता के कथित संरक्षण में सट्टे का ये कारोबार चलाया जा रहा है।


बताते चलें कि कमोडिटी और शेयर मार्केट के बाद आजकल शहर में पर्ची वाला सट्टा खूब चर्चित है। शहर के कई हिस्सों में यह धंधा तेजी से फल फूल रहा है। दरअसल इस धंधे की मुख्य जड़ें कानपुर के बाहर स्थित हैं। शहर में इस कारोबार को एजेंट कमीशन पर चलाते हैं। इसमें 1 से लेकर 10 तक नंबर निकाला जाता है। एक दिन में  सुबह और शाम 2 बार नम्बर निकाले जाते हैं। एक सुबह 12  बजे तो दूसरा रात 10 बजे। इसके लिए एजेंट रात में ओवरटाइम भी करते हैं। धंधे से हुई कमाई का बंदरबाट बेहद ईमानदारी से होता है, इसीलिए लोगों को लाखों का चूना लगाने वाला यह धंधा शहर में अपनी गहरी जड़ें जमा चुका है।


पर्ची  का गणित -
बेइमानी का यह काम फुल ईमानदारी से होता है। पर्ची पर दांव लगाने वाले कार्बन लिखी दो पर्ची पर रुपये, नाम और नंबर लिखकर एजेंटों को देते हैं। उसमें से एक खुद रखते हैं। मूल रकम पर कई गुना ज्यादा मिलने वाली ईनाम की धनराशि के चक्कर में लोग अपनी गाढ़ी कमाई गवां बैठते हैं।


ऐसे खुलता है नंबर -
रात में 10 बजे आने वाले नंबर के लिए दांव लगाने वालों से शाम 8 बजे तक पर्ची ली जाती है और इसे कंप्यूटर, फोन और रजिस्टर पर दर्ज किया जाता है। इस दो घंटे के अंतराल में शहर में फैले एजेंट लोगों से लिया गया पैसा और रजिस्टर शहर में सट्टा माफियाओं तक पहुंचाते हैं। यहां तय होता है कि कौन सा नंबर आना है। सुबह आने वाले नंबर के लिए रात दो बजे तक पर्ची ली जाती है। 
आप इसे बुरा कहें या भला परंतु होता यह सब बहुत करीने से है। चाहे मामला ग्राहक के भुगतान का हो या पुलिस की एक्‍जाई का। सट्टे से जुड़े कारोबारियों के मुताबिक, उनकी विश्वसनीयता की बात करें तो इस कारोबार में हस्ताक्षर या किसी सिक्योरिटी की कोई आवश्यकता नहीं है। इसमें सट्टा कारोबारी द्वारा सटोरिये को दी जाने वाली पर्ची ही काफी है। जिस पर हस्ताक्षर भी नहीं होते। यह पर्ची देखकर ही सुबह सटोरिये का पेमेंट भी कर दिया जाता है।

स्‍थानीय पुलिस की भूमिका इस सट्टा कारोबार में सराहनीय है। यदि उच्चाधिकारी ने कभी भूले से भी किसी कार्यवाही की बात कह दी तो कुछ स्‍थानीय पुलिसकर्मी सट्टा माफियाओं को तत्‍काल सूचना पहुंचा देते हैं, और यह सूचना कोई फ्री में नहीं दी जाती, उसकी भी मोटी रकम वसूली जाती है। जो भी हो इस सट्टा कारोबार से जनपद में न जाने कितने मजदूर व गरीबों के बच्चों को भूखे पेट ही सोना पड़ता है और अधिकारी हाथ पर हाथ रखकर उनकी बर्बादी का जश्न मना रहे हैं।