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अवैध खनन का खेल है जारी, देखो सोती पुलिस हमारी

शाहजहांपुर 24 नवम्बर 2018. अल्हागंज थाना क्षेत्र समापुर वेलाखेडा इलाके में इन दिनों मिट्टी व बालू का अवैध खनन जोरों पर चल रहा है। शाम ढलते ही क्षेत्र के गांवों में खनन माफ़ियाओं के ट्रैक्टर एवं ट्रालियां गरजने लगती हैं। क्षेत्रीय पुलिस के गठजोड़ से सरकारी खजाने को चूना लगाकर माफिया मालामाल हो रहे हैं।



बताते चलें कि मिट्टी व बालू रेती की खुदाई के लिए खनन विभाग से अनुमति लेकर रायल्टी जमा करने का प्रावधान है। पर, इसके विपरीत क्षेत्र में इलाकाई पुलिस से साठगांठ कर माफिया मिट्टी व बालू का अवैध खनन रात के अंधेरे में  कर रहे हैं। ग्रामीणों की मानें तो क्षेत्र के कुडरी, मंझा बेलाखेडा, नदी आदि गांवों में इन दिनों सूरज अस्त होते ही माफियाओं का खेल शुरू हो जाता है। माफिया अवैध खनन कर ट्रैक्टरों की मदद से रात भर नगर व क्षेत्र में मिट्टी बालू की सप्लाई करते हैं। सूत्रों का कहना है कि माफियाओं के इस गोरखधंधे में यूपी-100 के कुछ सिपाही भी बराबर के भागीदार रहते हैं। विभागीय बेखबरी से माफिया मिट्टी व बालू का अवैध खनन करके सरकारी खजाने को लाखों रुपये की चपत लगा रहे हैं।

माफियाओं ने फैला रखा है मुखबिरों का जाल
अवैध खनन के दौरान कोई बाधा न हो इसके लिए माफियाओं ने अपना खुद का मुखबिर तंत्र सक्रिय कर रखा है। नेटवर्क के सदस्य रात भर खेत रखा रहे किसानों को प्रमुख स्थानों पर बैठाकर उनसे अफसरों की मुखबिरी कराते हैं। ऐसे में शिकायतों की जांच के लिए पहुंचने वाले अफसरों को मौके पर सब कुछ ओके मिलता है।
 
शिकायत पर बंद हो जाता है खनन
कभी -कभार किसी ने अवैध खनन की शिकायत की तो इलाकाई पुलिस के इशारे पर खुदाई रोक दी जाती है। एक-दो दिन बाद माहौल शांत होने पर माफिया दोबारा गोरखधंधे में जुट जाते हैं। वहीं इन गांवों की कई सडकों की हालत इनकी ट्रैक्‍टर ट्राली की लगातार आवाजाही की वजह से बेकार हो गई है। यही नहीं इनकी वजह से ग्रामीणों की रात की नींद भी हराम हो गई है।

तिलहर तहसील बनी खनन माफियाओं की बनी शरण स्थली
सूत्रों के अनुसार निगोही क्षेत्र के गांव ऊनकलां निवासी भट्ठा मालिक सईद खां जठियुरा गांव में और पतराजपुर स्थित गरीब नवाज ब्रिक फिल्ड भट्ठा मालिक हाजी शमीम खां संडा गांव निवासी दिनेश कुशवाहा के खेत में मिट्टी का अवैध खनन कर सरकार को रॉयल्टी का तगड़ा चूना लगा रहे हैं। साथ ही वह जिस जगह पर खुदाई कर रहे है वहां की भूमि भी किसी योग्य नहीं बचती है। इसको न रिहाशयी जरूरत के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और न खेती के काम। दरअसल भट्ठा मालिकों को ईंट बनाने के लिए जिस मिट्टी को इस्तेमाल कराना होता है उसकी रॉयल्टी जमा करनी पड़ती है। इसके लिए नियम तो यह है कि संबंधित एसडीएम या तहसीलदार को सर्वे कराना पड़ता है और उसी आधार पर रॉयल्टी तय की जाती है। जिस जगह की रॉयल्टी तय की जा रही है, उस भूखंड के मालिक और ईंट भट्ठा स्वामी के बीच लिखित करार होता है। इसमें यह भी मानक तय रहता है कि मिट्टी की खुदाई इतनी गहराई से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके बावजूद मानकों की अनदेखी करते हुए दोनों ईंट भट्ठा मालिक मिट्टी का जबरदस्त खनन कर रहे हैं| 
 
अवैध तरीके से मिट्टी की खुदाई होने से ईंट भट्ठों के पास पड़ी जमीनें काफी नीचे हो गई हैं। ऐसे में वे न तो रहने लायक रह गई हैं और खेती के लिए इसलिए नहीं उचित मानी जाती, क्योंकि वहां बरसात में जबरदस्त जलभराव हो जाता है। इस ओर न तो संबंधित एसडीएम व तहसीलदार कोई रिपोर्ट दे रहे हैं और न ही इससे जुड़े जिला स्तर के अधिकारी इस ओर ध्यान दे रहे हैं। 
 
अवैध खनन रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिये जा रहे हैं| शीघ्र ही परिणाम देखने को मिलेंगे - मोइनुल इस्लाम, एसडीएम, तिलहर


सेहरामऊ थाना क्षेत्र में भट्ठा मालिक कर रहे पर्यावरण के साथ खिलवाड़
सेहरामऊ दक्षिणी में कृषि योग्य भूमि की मिट्टी का इस्तेमाल ईट भट्ठा स्वामी की ओर से किया जाना खतरे का सूचक है। बेशक सरकार ने कृषि भूमि पर भट्ठा लगाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। लेकिन सेहरामऊ दक्षिणी क्षेत्र स्थित भट्ठा स्वामी इसका दुरुपयोग करने से बाज नहीं आ रहे हैं। विडंबना यह है कि सेहरामऊ थाना क्षेत्र स्थित दर्जनों भट्ठा स्वामी ईट बनाने के लिए मिट्टी की जरूरत को पूरा करने के लिए लगातार कृषि भूमि की खुदाई करवा रहे है। जिससे उत्पादन पर तो असर पड़ ही रहा है। पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है। जाहिर सी बात है कि रिहायशी इलाकों के विस्तारीकरण के साथ नए आशियाने बनाने के लिए ईट की मांग लगातार बढ़ रही है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इस मांग को पूरा करने के लिए कृषि भूमि को ही दांव पर लगा दें। 

ईंट-भट्ठों से निकलने वाला कोयला और इसकी राख जमीन को तो बंजर बना ही रही है साथ ही कोयले से निकलने वाली कार्बन मानोऑक्साइड गैस भी लोगों की सेहत के लिए घातक साबित हो रही है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी भट्ठों में अपनाए जाने वाले प्रदूषण नियंत्रण मानकों को चेक नहीं कर रहा है। जिससे आबोहवा में जहर घुल रहा है। सरकार को चाहिए कि कृषि योग्य भूमि पर लगे प्रतिबंध को सख्ती के साथ लागू करे।