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कानपुर में खुला देश का पहला महिला दारुल कजा

कानपुर 06 अगस्‍त 2018 (महेश प्रताप सिंह). देश का पहला महिला दारुल-कजा (शरई कोर्ट) रविवार को कानपुर में खुल गया। हिना जहीर और मरिया फजल यहां आने वाले मामलों का निपटारा करेंगी। हिना जहीर के मुताबिक, इस्लाम में औरतों को बराबर का हक दिया गया है। मौलानाओं ने चीजों को सही संदर्भ में पेश नहीं किया है। इस शरई अदालत की औपचारिक शुरुआत के कुछ ही देर बाद ही एक युवती अपने शराबी पति की शिकायत लेकर वहां पहुंची। 


ऑल इंडिया मुस्लिम ख्वातीन बोर्ड ने 2016 में हिना जहीर को कानपुर की शिया महिला शहर काजी और मरिया फजल को सुन्नी महिला शहर काजी नियुक्त किया था। तब इस नियुक्ति के विरोध में कुछ स्वर उठे थे। हालांकि, बीते दो साल में दोनों महिला शहर काजियों के पास पति-पत्नी के बीच अनबन समेत कई घरेलू मामले पहुंचे। कुछ दिन पहले ख्वातीन बोर्ड और सुन्नी उलमा काउंसिल ने महिला दारुल कजा खोलने की स्वीकृति दे दी और रविवार को इसका औपचारिक उद्घाटन हुआ। 

पीएचडी और आलिमा की डिग्री रखने वाली हिना जहीर ने कहा, 'इस्लाम में बेटों को नेमत और बेटियों को रहमत कहा गया है। रहमत का हिसाब देना पड़ता है। कहा गया है कि कितने भी इल्जाम लगाए जाएं लेकिन औरतों को अपना अस्तित्व बनाए रखना है। निकाह के बाद वे किसी मर्द की दासी नहीं बराबर की लाइफ पार्टनर होती हैं। मौलानाओं ने पवित्र कुरआन में लिखी बातों को अपने हिसाब से बोलना शुरू कर दिया है। हलाला पर वे कुरआन की बातें मानते हैं लेकिन तीन तलाक में तीन महीने के अंतर को मानने से इनकार करते हैं। 

इस दारुल कजा में महिलाएं वे सारी बातें खुलकर कहेंगी, जो वे मर्द काजियों के सामने बोलने से हिचकिचाती हैं। यहां औरतों को सही दिशा दी जाएगी। उन्हें कौशल विकास के लिए भी प्रेरित किया जाएगा, ताकि वे ठीक से कमाकर अपने शौहर से मुकाबला कर सकें।' वहीं सांइस ग्रैजुएट और आलिमा मारिया फजल के मुताबिक, संविधान के दायरे में रहते हुए औरतों को उनके अधिकार बताए जाएंगे। बिना औरतों के देश आगे नहीं बढ़ेगा।