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छग में एस्ट्रोसिटी एक्ट पर लागू किया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बिना जांच दर्ज नहीं होंगे मामले

रायपुर 16 अप्रैल 2018 (जावेद अख्तर). एडीजी ने सभी पुलिस अधीक्षकों को पत्र भेजते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन करें, वरना कार्रवाई होगी।छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर अमल शुरू कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि बिना पर्याप्त जांच के एट्रोसिटी एक्ट का जुर्म दर्ज नहीं होगा। इस फैसले पर 2 अप्रैल को देशभर में दलितों ने आंदोलन किया था और कई राज्यों में हिंसा हुई थी।

राज्य पुलिस मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अअवि) आर.के. विज ने रेल एसपी समेत सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को पत्र भेजकर कहा है कि वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का कड़ाई से पालन करें वरना उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई तो होगी ही, सुप्रीमकोर्ट के आदेश की अवमानना के दोषी भी होंगे। 

अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश -
सुप्रीम कोर्ट की क्रिमिनल अपील नंबर-416, 2018 डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन विरूद्ध महाराष्ट्र राज्य व अन्य में एससी एसटी अधिनियम के दुरूपयोग पर रोक लगाने के लिए दिशा निर्देशों के पालन करने पुलिस अधीक्षकों से कहा गया है। 

प्रमुख बिंदु -
1). इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च 2018 के फैसले का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च अदालत द्वारा अजा-जजा अत्याचार निवारण अधिनियम 1989) के प्रावधानों का दुरूपयोग रोकने के संबंध में निर्देश दिए गए हैं।

2). अत्याचार निवारण अधिनियम के मामलों में अग्रिम जमानत स्वीकार करने में कोई रोक नहीं है। अगर प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है या जहां न्यायिक स्क्रूटनी पर शिकायत प्रथम दृष्टया झूठी पाई जाती है।
3). अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामले में केवल नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी की लिखित अनुमति से और गैरसरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की अनुमति के बाद हो सकती है।
4). स्वीकृति के दिए जाने के कारणों का उल्लेख प्रत्येक मामले में किया जाना आवश्यक है। मजिस्ट्रेट के उक्त कारणों की स्क्रूटनी किए जाने के बाद ही आगामी अभिरक्षा का आदेश देगा।

5). एक निर्दोष को झूठा फंसाने से बचाने के लिए प्रारंभिक जांच हो सकती है। जो संबंधित उप-पुलिस अधीक्षक के द्वारा यह पता लगाने के लिए कि आरोपों में अत्याचार निवारण अधिनियम का अपराध बनता है या नहीं और वह आरोप तुच्छ या उत्प्रेरित तो नहीं है। 

पत्र में कहा गया है कि इस निर्देश की कंडिका 2 व 3 का पालन नहीं किए जाने पर संबंधित दोषी (पुलिस अधीक्षक) पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई भी होगी।