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खरी खरी – ये तो जाने माने हैं, झोलाछाप पुराने हैं

कानपुर 12 जनवरी 2018. भाई हम तो खरी खरी कहते हैं, आपको बुरी लगे तो मत सुनो, कोई जबरदस्‍ती तो है नहीं। यदि मेरे कुछ कहने से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो मैं आपको बता दूं कि मेरा आशय पूरी तरह से यही है, आपसे जो बन पडे कर लेना। हां तो भाई लोगों जब से पत्रकारिता में झोलाछापों का चलन बढा है, तब से खालिस कलमकारों की तो मार्केट में कोई इज्‍जत ही नहीं रह गयी है। ये झोलाछाप मुंह के इतने मेहनती होते हैं कि इनको कलम चलाने की तो जरूरत ही नहीं पड़ती है।

एैसे ही एक झोलाछाप, महान मुखयोद्धा, दलाल शिरोमणि,‍ परमवीर पत्रकार महोदय से बीते दिनों कचहरी परिसर में मुलाकात हुयी तो मेरे तो ज्ञानचक्षु ही खुल गये। उस दिन मैंने जाना कि पत्रकारिता क्‍या होती है। लगा कि पिछले 20 सालों में हमने तो केवल घास ही खोदी है पत्रकारिता तो ये श्रीमान कर रहे हैं। जिले का एैसा कोई थाना नहीं है जहां का थानेदार इनके साथ कंचा न खेला हो और सीओ, एसपी और डीएम के साथ तो ये रोज ही ब्रेकफास्‍ट करते हैं। इतना ही नहीं ये श्रीमान डीजीपी और मुख्‍य सचिव के साथ लंच करते हैं, हां डिनर करने में च्‍वाइस होती है कि योगी के साथ करें कि मोदी के साथ। वैसे अमरीका वाले ट्रम्‍प अंकल से भी इनकी अक्‍सर फोन पर वार्ता होती रहती है।

चलिये भाई जी की तारीफ तो बहुत हो गयी अब पूरी घटना बताते हैं। तो हुआ यूं कि मैं कचहरी में किसी काम से जा रहा था कि इन भाई जी से मुलाकात हो गयी। भाई जी ने तुरन्‍त ही चाय का न्‍यौता दे दिया तो हम भी लालच में आ गये और चाय पीने इनके साथ चल दिये। यहीं हमसे भारी गलती हो गई, अगले 15 मिनट इतने भयंकर बीते की सोच कर आज भी हालत पतली हो जाती है। भाई जी ने अपने मुख से शब्‍दों के इतने तीर बरसाये कि हमारी खोपडी पन्‍चर हो गयी।

भाई जी चाय की चुस्कियों के बीच हमसे कहने लगे कि काहे दिन भर आफिस में बैठ कर कलम घिसते रहते हो, थोड़ा बाहर निकलो, अधिकारियों के पास अपनी पैठ बनाओ। थोड़ा स्‍टाइल से रहा करो, फाइनेन्‍स करा कर एक एसयूवी खरीद लो और दो चार चेलों को साथ लेकर भोकाल से चलना शुरू कर दो। हमने प्रतिवाद किया कि भाई जी हमको नेतागिरी नहीं करनी है जो भोकाल बनाते घूमें, तो उन्‍होंने हमको अनमोल ज्ञान देते हुये कहा कि केवल कलम चलाने से आप पत्रकार नहीं बन जाते हैं, आपको डग्‍गेमारी की कला में भी पारंगत होना चाहिये। हमको देखो हम शहर के हर बडे अधिकारी के पास सेटिंग रखते हैं। कोई भी काम हो, कैसा भी काम हो, हम तत्‍काल करवा देंगे।

बात बदलने के उद्देश्‍य से हमने भाई जी से पूछा कि आप तो मूलत: पत्रकार नहीं थे काहे अपना पेशा छोड़ कर पत्रकारिता में कूद पड़े। इस पर वो बोले कि हमारे पेशे में इन दिनों बडी भीड़ हो गयी है, कोई क्‍लाइन्‍ट जल्‍दी फंसता ही नहीं है, और पत्रकारिता में बड़ा भोकाल है। वैसे दोनों पेशों को मिला कर अपनी दुकान आजकल बढिया चल रही है। तुम काहे पीछे हो तुम भी तो दोनों पेशों में हो, आओ हमारे साथ तुम्‍हारी भी दुकान चलने लगेगी। हमने पूछा कि भाई जी किस मीडिया हाउस में हो आप, प्रिन्‍ट देख रहे हो इलेक्‍ट्रानिक। तो वो बोले कि हमने कौन सा सचमुच में खबर लिखनी है, हमसे तो ससुरी एक लाइन लिखी न जाती है। अपन को तो प्‍योर दलाली करनी है और वो करनी हमें अच्‍छे से आती है, सेटिंग करके किसी भी संस्‍थान का कार्ड बनवा लेते हैं, बस उसी से हमारा काम चल जाता है।

इतनी देर में चाय खत्‍म हो गयी थी और हमारे अंदर भाई जी के प्रवचन सुनने की क्षमता भी समाप्‍त हो रही थी इसलिये हमने भाई जी से इजाजत ली और पत्रकारिता की अकाल मृत्‍यु पर आंसू बहाते हुये वहां से निकल लिये। ये घटना सुनने के बाद यदि आप हमें गालियां दे रहे हों तो पडे देते रहिये, काहे कि भाई हम तो खरी खरी कहते हैं, आपको बुरी लगे तो मत सुनो, कोई जबरदस्‍ती तो है नहीं।