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लखीमपुर के इस प्राचीन मंदिर में होती है मेंढक की पूजा, जानिए क्यों?

कानपुर 10 नवम्‍बर 2017 (महेश प्रताप सिंह). भारत में कई ऐसे मंदिर है जहाँ जानवरों की पूजा की जाती है। आज हम आपको बता रहे है भारत के एकमात्र ऐसे मंदिर के बारे में जहां मेंढक की पूजा की जाती है। आइए जानते है कहां है ये मंदिर और क्यों की जाती है मेंढक की पूजा ?


भारत का एक मात्र मेंढक मंदिर (Frog Temple) उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी जिले के ओयल कस्बे में स्थित है। बताया जाता है कि ये मंदिर करीब 300 साल से ज्‍यादा पुराना है। मान्‍यता है कि सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था। यहां के शासक भगवान शिव के उपासक थे। इस कस्बे के मध्य में स्थित मंडूक यंत्र पर आधारित यह प्राचीन शिव मंदिर यहां की ऐतिहासिक गरिमा को प्रमाणित करता है। यह क्षेत्र ग्यारहवीं शताब्‍दी के बाद से 19वीं शताब्‍दी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा। चाहमान वंश के राजा बख्श सिंह ने ही इस अद्भुत मंदिर का निर्माण कराया था।

जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर ओयल कस्बे में मेंढक मंदिर है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां नर्मदेश्वर महादेव का शिवलिंग रंग बदलता है। यहां खड़ी नंदी की मूर्ति है, जो आपको कहीं देखने को नहीं मिलेगी। मंदिर के बारे में इतिहासकारों का मानना है कि मंदिर राजस्थानी स्थापत्य कला पर बना है और तांत्रिक मण्डूक तंत्र पर बना है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर शव साधना करती उत्कीर्ण मूर्तियां इसे तांत्रिक मंदिर ही बताती हैं। मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी। तंत्रवाद पर आधारित इस मंदिर की वास्तु संरचना अपनी विशेष शैली के कारण मनमोह लेती है। मेंढक मंदिर में दीपावली के अलावा महाशिवरात्रि पर भी भक्‍त बड़ी संख्‍या में आते हैं।

 
पहले मंदिर का छत्र भी सूर्य की रोशनी के साथ घूमता था, पर अब वो छतिग्रस्त पड़ा है। मेंढक मंदिर की एक खास बात इसका कुआं भी है। जमीन तल से ऊपर बने इस कुएं में जो पानी रहता है वो जमीन तल पर ही मिलता है। इसके अलावा खड़ी नंदी की मूर्ति मंदिर की विशेषता है। मंदिर का शिवलिंग भी बेहद खूबसूरत है और संगमरमर के कसीदेकारी से बनी ऊंची शिला पर विराजमान है। नर्मदा नदी से लाया गया शिवलिंग भी भगवान नर्मदेश्वर के नाम से विख्यात हैं। बेहद खूबसूरत और अदभुत मेंढक मंदिर को यूपी की पर्यटन विभाग ने भी चिह्नित कर रखा है। दुधवा टाइगर रिजर्व कॉरीडोर के माध्‍यम से इस मंदिर को भी विश्व मानचित्र पर लाने के प्रयास जारी हैं।