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छत्तीसगढ़ - प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने भारतीय प्रेस परिषद से कर डाली मुख्यमंत्री की शिकायत

छत्तीसगढ़ 15 जून 2017 (जावेद अख्तर). प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल ने छग के सी.एम डॉ. रमन सिंह के खिलाफ चेयरमैन भारतीय प्रेस परिषद को लिखित शिकायत की है। उन्होंने अपनी शिकायत में कहा है कि समाचार-पत्रों सरकार दबाव बना रही है। विदित हो कि भारतीय प्रेस परिषद भारत सरकार की एक ऐसी बॉडी है जिसके निर्णयों को भारत के किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।


विदित हो कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 8- 10 जून तक छत्तीसगढ़ के दौरे पर आये हुए थे और श्री बघेल एक प्रमुख विपक्षी राजनैतिक दल के नेता व पदाधिकारी होने के नाते प्रदेश की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के भ्रष्टाचार से जुड़े सवाल उठाते हुये राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह से कुछ सवाल पूछना चाहते थे, इसके लिये उन्होंने गत 7 जून 2017 को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से विभिन्न समाचार-पत्रों में विज्ञापन देने का फैसला किया था और यह विज्ञापन 'शाह' के आगमन के दिन 08/06/2017 को प्रमुखता से प्रकाशित होना था। पर प्रदेश के पांच प्रमुख समाचार-पत्रों व दैनिक समाचार ने विज्ञापन प्रकाशित करने से इंकार कर दिया और अधिकारिक तौर पर समाचार-पत्रों ने इसकी कोई वजह नहीं बताई। श्री बघेल के अनुसार कुछ समाचार-पत्रों के प्रमुख व प्रबंधकों ने बातचीत में स्वीकार किया कि इस तरह के विज्ञापन प्रकाशित होने से संस्थान को सरकार की ओर से काफी दिक्कतें का सामना करना पड़ सकता है। 
   
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ने शिकायत-पत्र में आगे कहा कि वो इस पत्र के माध्यम से बताना चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार अब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर भी दबाव बनाकर विपक्षी पार्टी को अपनी बात कहने से रोकना चाह रही है। उन्होंने चेयरमैन से स्वयं संज्ञान में लेते हुये पूरे मामले की जांच करवाकर लोकतंत्र के हित में चौथे स्तंभ को दबाव से मुक्त कराते हुये समुचित कदम उठाने की मांग की है। 


देखना अब यह है कि सरकार व समाचार-पत्रों की शिकायत को भारतीय प्रेस परिषद संज्ञान में लेता है कि नहीं?
अगर शिकायत को प्रेस परिषद संज्ञान में लेते हुए विचार और सुनवाई करता है तो निश्चित तौर पर कई बड़े व नामी दैनिक समाचार-पत्रों के लिए जवाब देना बहुत मुश्किल हो जाएगा।विदित हो कि भारतीय प्रेस परिषद भारत सरकार की एक ऐसी बॉडी है जिसके निर्णयों को भारत के किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।