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हुक्‍का बार - हर फिक्र को धुंये में उडाता चला गया

कानपुर 15 जून 2017 (सूरज वर्मा). गांव की पंचायत में बड़े बुजुर्ग तंबाकू से भरा हुक्का गुडगुड़ाते हैं, लेकिन आधुनिक शहरी युवाओं की हुक्के के प्रति बढ़ती रुचि को भांप नशे के कारोबारियों ने इसे भुनाने के लिए सांकेतिक नामों से हुक्का बार खोलकर अपनी जेब भरना शुरू कर दिया है। कानपुर के कई पॉश इलाकों में खुले इन हुक्का बारों में हुक्के की कश से हवा में धुएं के छल्ले बनाने वालों की भीड़ लगी रहती है। 


हुक्का बार खोलना इन दिनों मुनाफे का सौदा बन गया है। सूत्रों के अनुसार रेस्टोरेंट मालिकों द्वारा खुलेआम नियमों का उल्लंघन कर नशे का कारोबार किया जा रहा है। पुलिस-प्रशासन से बचकर शहर में कई अवैध हुक्का बार धड़ल्ले से चल रहे हैं। हुक्के के आदी हो चुके लोग इसके लिए अपराध करने से भी नहीं चूकते हैं। इलाकाई लोगों को नशेडिय़ों से खतरा रहता है। नाबालिक युवाओं को दिग्भ्रमित कर नशे की तरफ धकेला जा रहा है, जबकि म्‍युन्सिपल एक्ट के अनुसार ईटिंग प्वॉइंट के अंदर हुक्का बार नहीं चलाया जा सकता। कई जगह हुक्का बार की आड़ में नाबालिग युवा अन्य नशीले पदार्थो का भी सेवन कर रहे हैं। हालांकि पुख्ता सबूत के अभाव में ये लोग पुलिस की पकड़ से बच निकलते हैं। 

नाम न छापने की शर्त पर काकादेव निवासी एक छात्र ने बताया कि हम लोग व्हाट्स एप के जरिए अपने दोस्तों को हुक्का बार में एकत्रित होने का मैसेज देते हैं। कई बार इसके लिए कोड वर्ड का प्रयोग किया जाता है, तो कई बार इसके लिए सिर्फ हुक्के का फोटो भेजकर जगह का नाम लिखकर मैसेज किया जाता है। छात्र ने बताया कि कोड वर्ड में हुक्के को शीशा कहा जाता है। शीशे तक युवाओं की पहुंच बहुत आसान है। रेगुलर शीशे के लिए उन्हें 300 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। प्रीमियर शीशे के लिए 425 रुपये और पर्ल काम्‍बो शीशे का रेट 555 रुपए है। 

यही नहीं कुछ युवाओं में हुक्के में इस्तेमाल होने वाली फ्लेवर्ड टिकिया खासी चर्चित है। कुछ लोग तो इस टिकिया की जगह नशे वाली टिकियों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते हैं। ज्‍यादातर शहर के एैसे इलाके जहां छात्र-छात्रायें बहुतायत में पाये जाते हैं वहां इस तरह के अवैध धन्‍धे तेजी से फल-फूल रहे हैं। एैसा नहीं है कि पुलिस-प्रशासन को इनके कारनामों की भनक नहीं है, परन्‍तु संचालकों की ऊंची सेटिंग के चलते सख्‍त कार्यवाही सम्‍भव नहीं हो पा रही है।