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छत्तीसगढ़ में रोज़गार का जबरदस्त अभाव, घोंघीबाहरा में पलायन से आधा गांव खाली

छत्तीसगढ़ 22 दिसंबर 2016 (छत्तीसगढ़ ब्यूरो). छत्तीसगढ़ में स्थानीय लोगों को काम नहीं मिल पाने के कारण कई कई गांव आधे से अधिक खाली हो गए हैं। केवल बड़े बुजुर्ग ही घर की रखवाली करने के लिए गांव में बाकी रह गए हैं। बेरोज़गारी के कारण हो रहे पलायन का खामियाज़ा स्‍थानीय बच्चों को झेलना पड़ रहा है।


जिला मुख्यालय महासमुंद से 14 किमी दूर ग्राम घोंघीबाहरा (लोहारडीह) में खेतिहर श्रमिक परिवारों में बेरोज़गारी के कारण पलायन करने की विवशता हो गई जिसका खामियाज़ा बच्चों को झेलना पड़ रहा है। हालात यह है कि 510 की जनसंख्या में से आधी आबादी पलायन कर गई, इस वजह से शालाओं में छात्र-छात्राओं की संख्या भी करीब आधी ही रह गई है। प्राथमिक शाला घोंघीबाहरा व आसपास के कई गांवों में यह स्थिति दिखाई दी, पहली कक्षा में केवल दो छात्र ही पढ़ने आए थे, वहीं कक्षा दो तीन व चार में भी पांच से पंद्रह छात्र-छात्राएं ही उपस्थित हुए थे। एकाएक बच्चों की इतनी कम संख्या से शिक्षक भी हैरान हैं। कुछेक शिक्षकों ने गांव के लोगों से पता किया तब उन्हें भी असलियत पता लगी।

गांव के एक जागरूक निवासी ने फोन पर जानकारी भेजी और बताया कि यहां पर केंद्र व राज्य शासन की किसी भी योजनान्तर्गत स्थानीय निवासियों को विगत आठ माह से कोई रोज़गार मुहैय्या नहीं कराया गया और कुछ समय पूर्व भी रोज़गार के अभाव की जानकारी जिला पंचायत मेें दी गई थी परंतु किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया जिसके चलते आज सत्तर फीसदी गांव खाली पड़े हुएं हैं। यहां पहली कक्षा में 14 बच्चों की दर्ज संख्या है। इनमें से पालकों के साथ 10 बच्चे पलायन कर गए हैं। दो बच्चों के अनुपस्थित होने से केवल 2 बच्चे ही कक्षा में पढ़ते हुए मिले। स्कूल रिकार्ड के अनुसार यहां पहली से पांचवी तक कुल दर्ज संख्या 66 है, जिनमें से 35 बच्चे पलायन कर गए हैं। इस तरह दर्ज संख्या में से 60 प्रतिशत बच्चों के पलायन कर जाने से इनका भविष्य अंधकारमय हो गया है। शिक्षा गुणवत्ता और रोजगार गारंटी के दावे खोखले साबित हो रहे हैं । स्कूल के अलावा आंगनबाड़ी में पढ़ने वाले छोटे बच्चे भी बड़ी संख्या में अपने माता-पिता के साथ पलायन कर गए हैं। आंगनबाड़ी की दर्ज संख्या 31 है । इनमें 18 बच्चे पलायन कर गए हैं। यह संख्या भी 58 प्रतिशत है।

पलायन से गांव खाली - 
गांवों से पलायन की वजह से गांव वीरान हैं। बड़ों की नासमझी से बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। शिक्षक पलायन करने से रोकने का प्रयास किए तो कुछ पालक झगड़ने लगे। अंतत: शिक्षकों भी बच्चों को पलायन कर ईट भठ्ठा उप्र जाने से नहीं रोक सके। गांव में भयंकर अकाल की स्थिति है। रोजी-रोटी का संकट होने से विवश होकर गांव के किसान-मजदूर पलायन कर चले गए। शिक्षण सत्र के बीच में स्कूल छोड़ देने से इन बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है।

मासूम बच्चे परिजन के बिना मायूस - 
गांव की बुजुर्ग महिला फूलबाई ने बताया कि अवर्षा की स्थिति के कारण गांव में भयंकर अकाल है। इस साल जिस तादाद में पलायन हुआ है, उतना कभी नहीं हुआ था। काम करने में सक्षम सभी युवा दंपति पलायन कर दूसरे प्रांत उप्र के ईट भठ्ठा में चले गए हैं। कुछ स्कूली बच्चे अपने मां-बाप के बिना दादी-दादा के पास रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। उनके चेहरे पर मायूसी स्पष्ट झलक रही है। बड़े बुजुर्ग ही घर की रखवाली करने गांव में शेष रह गए हैं।

* किसी भी एक गांव से इतनी बड़ी संख्या में स्कूली बच्चों के पलायन की जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। माता-पिता के पलायन करके अन्य प्रांतों में रोजी-रोटी की तलाश में जाने पर बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय, डायमेट्री स्कूल की व्यवस्था की जाती है। बागबाहरा में ऐसा स्कूल संचालित है। फिर भी मैं स्वंय गांव की स्थिति का जायज़ा लेने जाऊंगा। - के.एस. तोमर, जिला शिक्षा अधिकारी, महासमुंद