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संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर छग हाईकोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार को भेजा नोटिस

छत्तीसगढ़ 14 दिसंबर 2016 (जावेद अख्तर). हाईकोर्ट ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति के मामले में राज्य और केंन्द्र सरकार के साथ ही राज्यपाल को नोटिस जारी करते हुए मामले की जानकारी देने को कहा है। इस संबंध में राकेश चौबे ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई मंगलवार को हाईकोर्ट में हुई थी। नोटिस जारी होने के बाद संसदीय सचिवों की नियुक्ति खतरे में पड़ गई है।

छत्तीसगढ़ सरकार के दिन फिलहाल ठीक नहीं चल रहे हैं, एक के बाद एक करके एक महीने मेें हाईकोर्ट से तीसरी नोटिस तामीली की गई है। ज्ञात हो कि देश के चार राज्यों में हाईकोर्ट के निर्देश पर संसदीय सचिवों की नियुक्तियां रद्द होने के बाद छत्तीसगढ़ के भी 9 सचिवों के भविष्य खतरे में पड़ गया था। इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी। पिछले साल मई में मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए भाजपा सरकार ने 11 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया था। राज्य में इस पद के लिए कोई कानून नहीं है।

मामले में राकेश चौबे ने जनहित याचिका दायर कर संसदीय सचिवों की नियुक्ति रद्द करने की मांग की थी। अविभाज्य मध्यप्रदेश में 1967 में बने कानून के तहत पिछली तीनों ही सरकारों में संसदीय सचिव बनाए गए। हालांकि साल 2008-13 के कार्यकाल में विपक्ष के बड़े विरोध के बाद सरकार ने इन पदों को लाभ का पद न मानते हुए जस्टीफाई कर दिया था। इसमें उन निगम-मंडलों के अध्यक्ष पद को भी शामिल किया गया, जिनमें विधायकों की नियुक्ति की जाती है। इस मामले की सुनवाई मंगलवार को हाईकोर्ट में हुई। राकेश चौबेे के वकील आशीष श्रीवास्तव ने पैरवी करते हुए नियुक्ति रद्द करने को लेकर अपने तर्क प्रस्तुत किए। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य और केंन्द्र सरकार समेत राज्यपाल को भी नोटिस जारी कर जानकारी देने के निर्देश दिए हैं।

संसदीय सचिवों को मिल रही ये सुविधाएं -
– राज्यमंत्री का दर्जा
– मंत्रालय में पृथक कमरा
– विधायक के वेतन 73 हजार के अतिरिक्त 11 हजार रुपए
– घर/दफ्तर में दूरभाष
– विधायकों को विधायक विश्रामगृह में सुविधा, मगर इन्हें राजधानी में मंत्री जैसी सुविधाओं वाला बंगला
– मंत्रियों की तर्ज़ पर सफारी गाड़ी
– डीजल शासकीय राजकोष से
– सुरक्षा के लिए 1-4 गार्डस

कानून के दायरे में आ सकता है मामला -
* संविधान के अनुच्छेद 102 (1)(ए) के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं हो सकता, जहां वेतन, भत्ते या अन्य फायदे मिलते हों।
* अनुच्छेद 191 (1)(ए) और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9(ए) के तहत भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में सांसदों-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकता है।

छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को इसी कानूनी के तहत आसानी से चुनौती दी जा सकती है। पिछले साल जून में कोलकाता हाईकोर्ट ने इस बारे में ममता बनर्जी सरकार के लाए गए विधेयक को असंवैधानिक ठहरा दिया था।

एक माह मेें तीन मामलों मेें नोटिस जारी -
छग राज्य सरकार, ब्यूरोक्रेट्स एवं प्रशासन को एक महीने मेें तीसरी नोटिस की तामीली से पूरे प्रदेश मेें हंगामा मच गया है एवं सरकार की कार्यप्रणाली पर कई तरह के प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं -

1. यह अब तक एकलौता प्रकरण बन गया है जिसमें 360 आदिवासी पुरूष एवं महिलाओं ने हाईकोर्ट मेें उपस्थित होकर रिट पिटीशन दायर किया गया, बलरामपुर जिले के मनोहरपुर मेें फर्जी एनकांउटर प्रकरण मेें डीजीपी, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव,संभाग आईजी सहित दस को नोटिस भेजे जाने से पूरा प्रशासन हिल गया है।
2. यह प्रकरण तो और भी शर्मसार करने वाला है क्योंकि कचरे के डिब्बों पर महात्मा गांधी का चित्र एवं चश्मे का उपयोग शुलभ शौचालयों मेें करने को लेकर नोटिस की तामीली की गई और हाईकोर्ट ने टिप्पणी कर पूछा कि क्या मंत्री, संत्री एवं अधिकारी अपनी या अपने पूज्यनीय माता पिता के चित्र का ऐसे स्थानों पर लगा सकतें हैं।
3. इस मामला मेें अब संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को लेकर नोटिस की तामीली की गई है। जिसमें भी हाईकोर्ट ने कटाक्ष कर कई प्रश्न किया है। 


  
अभी हाल ही मेें मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह द्वारा दिए बयान 'भूख पर जीत दर कर अब विकास की ओर अग्रसर' पर जमकर मजाक बनाया गया। सीएम द्वारा गरीबी, भूख और कुपोषण पर नियंत्रण करने का दावा किया गया मगर इस बयान के चंद घंटे पश्चात ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल एवं प्रदेश कांग्रेस सचिव मोहम्मद अकबर ने प्रेसवार्ता कर मुख्यमंत्री के बयान पर सवाल खड़ा कर दिया। पीसीसी अध्यक्ष एवं सचिव ने जानकारी देते हुए कहा कि प्रदेश मुख्यमंत्री को अपने शासनकाल के दौरान जो भी आंकड़े विभागीय वेबसाइटों पर दिए गए हैं, एक बार उन आंकड़ों को देखकर बयान जारी करना चाहिए क्योंकि छग शासन की विभागीय वेबसाइटों पर दिए आंकड़े दर्शा रहे कि प्रदेश मेें विगत दस वर्षों के दौरान मात्र 2.5% लोगों की भूख मिटाई जा सकी है, गरीबी मेें 0.91% की कमी आई है तथा कुपोषण मेें महज़ 1.9% की कमी दर्ज की गई है। दस वर्षों के बजट के आधार पर आंकड़ों को देखने से समझ आता है कि गरीबी, भूख एवं कुपोषण पर विकास दर नीचे की तरफ जा रही है, यानि सुधार न के बराबर हुआ है। सरकार की विभागीय वेबसाइट ही जब ऐसा दर्शा रही हो तो किस बात को सही व सत्य माना जाए, 'विभागीय आंकड़ों की या फिर सीएम के बयान को' जबकि विभागीय वेबसाइटों की अपडेशन 11 दिसंबर 2016 दिखा रही है। इस बयान के बाद से मुख्यमंत्री डा रमन सिंह  विभागीय अधिकारियों से सख्त नाराज़ दिखाई दिए जबकि सोशल मीडिया एवं अखबारों मेें कटाक्ष, व्यंग्य व कार्टूनों की बाढ़ आ गई, और  जमकर खिल्ली उड़ी और कई चुटकले तक पोस्ट किए। 

* छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिवों की नियुक्ति अविभाजित मध्यप्रदेश में चले आ रहे एक पुराने नियम के तहत ही होती रही है। इस नियम में यह उल्लेखित है कि संसदीय सचिव का पद लाभ का नहीं है। - एम.डी. दीवान, संयुक्त सचिव, संसदीय कार्य विभाग, छग शासन 

* प्रदेश में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए किसी तरह का कोई विधेयक नहीं लाया गया है। पुराना ड्राफ्ट है, जिसके आधार पर उनकी नियुक्ति होती है, जो संसदीय सचिव बनाए जाते हैं। उनका प्रकाशन राजपत्र में अवश्य किया जाता है। - निधि छिब्बर, सामान्य प्रशासन विभाग, छग शासन 

* संसदीय परम्पराओं के हिसाब से नियुक्ति की जाती है। प्रदेश में इसके लिए कोई विधेयक नहीं है। यहां इन्हें मंत्रियों के कामकाज में सहायता के लिए बनाया जाता है। उन्हें मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं। - अजय चंद्राकर, संसदीय राज्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री