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कांग्रेस निष्कासित राय ने आरोपों से छेड़ा नया तराना, मुखिया के बचाव में छोटी मछलियों पर साधा जा रहा निशाना

छत्तीसगढ़  28 अक्टूबर 2016 (जावेद अख्तर).  पूर्व कांग्रेसी व गुंडरदेही विधायक आर.के. राय ने रायपुर मेें प्रेसवार्ता के दौरान ताड़मेटला मामले पर प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल व नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव पर जमकर निशाना साधा और कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि जब रिपोर्ट मेें मामला साबित हो रहा तो अब इस पर राजनीति की जा रही है और मात्र एक पुलिस अधिकारी को ही दोषी ठहराने का प्रयास किया जा रहा।

जबकि अत्यंत प्रमुख तथ्य ये है कि 'पुलिस अधिकारी को फ्रीहैण्ड देने वाले और इस मामले में पांच साल तक कार्यवाही न कर, उल्टा उस पुलिस अधिकारी को प्रमोशन देने वाले असली दोषी तो प्रदेश मुख्यमंत्री हैं, तो उनका इस्तीफ़ा क्यों नहीं मांग रहे हैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष?
   
क्या हुआ था ताड़मेटला में -
- सुकमा जिले के ताड़मेटला, तिम्मापुर व मोरपल्ली में 11 से 16 मार्च 2011 के बीच जवानों ने गश्त की थी।
- फोर्स पर तीन गांवों के तीन सौ घरों को आग लगाने, 03 आदिवासी महिलाओं से बलात्कार करने और 03 लोगों की हत्या के आरोप लगे। 
- आरोप के मुताबिक ताड़मेटला में 160, तिम्मापुर में 59 और मोरपल्ली में 33 घर जले।
- सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी अग्निवेश की याचिका पर इस घटना की जांच सीबीआई को सौंपी थी, दरअसल आगजनी की घटना के बाद राहत सामग्री ले जा रहे सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश पर भीड़ ने हमला कर दिया था। इस भीड़ में विशेष पुलिस बल और सलवा जुडूम के सदस्य शामिल बताए गए थे।
- सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2011 को मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए। 
- 17 अक्टूबर 2016 को सीबीआई ने स्वामी अग्निवेश पर हमले को लेकर सीबीआई की रायपुर स्थित विशेष काेर्ट में 07 एसपीओ के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए।
- सलवा जुडूम के 26 लोगों के खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल किए गए।

ताड़मेटला घटना का सच आया सामने -
ताड़मेटला मामले में सीबीआई की जांच में जो खुलासा हुआ है उससे साफ़ हो गया है कि सुकमा जिले के ताड़मेटला, तिम्मापुर व मोरपल्ली में 11 से 16 मार्च 2011 के बीच सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच जो मुठभेड़ हुई, उस दौरान सुरक्षा बलों ने वहां रहने वाले गरीब आदिवासियों के ताड़मेटला, तिम्मापुर और मोरपल्ली में कुल 252 घरों को ख़ाक कर दिया गया। लगभग 05 साल पूर्व हुई इस घटना का सच सीबीआई की रिपोर्ट द्वारा आज हम सबके सामने है।
  
कार्यवाही की बजाए राजनीति -
इसमें कोई दो मत नहीं है कि सीबीआई की जांच रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो चुका है तो रिपोर्ट के आधार पर दोषी पुलिस अधिकारियों एवं एसपीओ जवानों के खिलाफ तत्काल कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए, उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए परंतु यह अत्यंत खेदपूर्ण व दुर्भाग्यपूर्ण है कि सीबीआई के इस खुलासे के बाद एक सोची समझी रणनीति के तहत, प्रभावित आदिवासी परिवारों के हितों से परे, इस अत्यंत गंभीर और संवेदनशील मामले को अहम की निजी लड़ाई तक सीमित किया जा रहा है। 
  
आदिवासियों की चिंता किसी को नहीं -
ये चल क्या रहा है? प्रभावित और पीड़ित आदिवासी तो इसमें कहीं है ही नहीं। न सत्ता और न विपक्ष, बेघर हुए गरीब आदिवासियों के विषय में कोई बात ही नहीं कर रहा है। इस पूरे मामले में अगर कोई दोषी है, तो वो है स्वयं मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह। राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराने, मुख्यमंत्री के उत्तरदायित्व और उनकी नाकामी को घेरने की बजाय, एक बड़बोले पुलिस अधिकारी और जिम्मेदार पदों पर बैठे विपक्ष के दो नेता केवल एक दूसरे के विरूद्ध कोरी और बेतुकी बयानबाज़ी कर रहे, एक दूसरे को नीचा दिखा रहे हैं। यह परिपक्व और संवेदनशील राजनीति कतई नहीं है।
    
एक दूसरे को सिखाने पर तुले -
एक तरफ पुलिस अधिकारी कहता है दोषी कहना है तो मुझे कहो, वहीं नेता उसे औकात में रहने की बातें कर रहा है। बड़ी चतुराई से इस मामले का रूख ही बदल दिया गया है। एक पुलिस अधिकारी को नेता प्रतिपक्ष से कैसे बात करनी चाहिए, विपक्ष के नेता के साथ किस तरह व्यवहार करना चाहिए, यह सब एक दूसरे को याद दिलाया जा रहा है। दोषी मुख्यमंत्री से ध्यान हटाने इस पूरे मामले को एक पुलिस अधिकारी तक सीमित कर दिया गया है। उसके विरूद्ध कार्यवाही की मांग की जा रही है, पुलिस अधिकारी ने बिना अनुमति के इतनी बड़ी घटना अंजाम नहीं दी होगी। अगर बिना अनुमति के घटना को अंजाम दिया गया होता तो छग शासन मुख्यमंत्री घटना के समय ही पुलिस अधिकारी पर कार्यवाही कर देते और प्रमोशन तो किसी भी हाल मेें नहीं दिया जाता। अब सारी तस्वीर साफ हो चुकी है तो राज्य सरकार की बजाए पुलिस अधिकारी पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा हैं।

इस्तीफा मांगे कैसे, राजनीतिक सांठगांठ जो है -
कांग्रेस से अभी हाल ही मेें निष्कासित किए गए विधायक राय ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को घेरते हुए आरोप लगाया कि यह मुख्यमंत्री से इस्तीफा कैसे मांगेंगे क्योंकि राजनीतिक सांठगांठ जो है। इसीलिए तो ऐसा प्रपंच किया जा रहा क्योंकि यह सब एक सुनियोजित रणनीति के तहत बड़े मुद्दे और बड़ी मछली को बचाने के लिए खेल खेला जा रहा है। बेतुकी व अहम की लड़ाई और छोटी मछली के साथ उलझा जा रहा है ताकि किसी तरह दो चार दिन बीत जाए और लोगों का ध्यान इस मुद्दे से हट जाए। लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे। मैं सरकार और विपक्ष में, सांठगांठ कर निजी राजनैतिक स्वार्थ के लिए काम कर रहे कुछ नेताओं को याद दिलाना चाहता हूं कि यह मामला 252 गरीब आदिवासी परिवारों के घरों को जलाये जाने का है केवल एक पुलिस अधिकारी के बड़बोलेपन और विपक्ष के दो नेताओं के बीच का नहीं है। यही वजह है कि आज मैं आप सभी के समक्ष उपस्थित हुआ हूँ। पांच वर्ष तक यही पता नहीं लग पा रहा था कि आखिर ताड़मेटला में हुआ क्या था। कौन दोषी और कौन निर्दोष। लेकिन अब सीबीआई की जांच से प्रमाणित हो चुका है कि आग के लिए नक्सली नहीं बल्कि प्रशासन-शासन संयुक्त रूप से जिम्मेदार है।
   
मुख्यमंत्री बच नहीं सकते जवाबदेही से -
मुख्यमंत्री अपनी नैतिक जिम्मेदारियों, दायित्व और फर्ज़ से बच नहीं सकते हैं। सीएम चतुराई से इस मामले में केवल एक पुलिस अधिकारी को केंद्रबिंदु बनाकर बच नहीं सकते। बस्तर के गरीब आदिवासियों के घरों को आग लगा देना बहुत बड़ी घटना है। यह छत्तीसगढ़ की अस्मिता पर काला दाग है। छत्तीसगढ़ के इतिहास में आदिवासियों के साथ यह सबसे बड़ा अत्याचार और अन्याय है। इसलिए कुछ ऐसा बेहतर करें जिससे पीड़ित परिवारों का जीवन सुधरे और समाज में आदिवासियों पर अत्याचार करने सरकार और उसके नुमाइंदों को एक कड़ा और बड़ा सन्देश जाए। 
   
48 घंटे का अल्टीमेटम -
इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री को 48 घंटे का अल्टीमेटम दे रहे हैं, अगर वो बस्तर के सच्चे हितैषी व आदिवासियों का हित चाहते हैं, तो प्रभावित 252 आदिवासी परिवारों को अगले 48 घंटे के अंदर उनके जलाये घरों के बदले उन्हें पक्का मकान बना कर देने का आदेश जारी करें। दोषी शासन-प्रशासन का सच्चा और न्यायपूर्ण प्रायश्चित यही होगा। अभी से 27 अक्टूबर के दोपहर एक बजे तक यानि अगले 48 घंटे हम सरकार के आदेश का इंतज़ार करेंगे। अगर सरकार अपनी जिम्मेदारी से भागती है और मुख्यमंत्री जी मामले को लटकाकर अगले 48 घंटों में आदेश नहीं निकालते तो हम देश और प्रदेश के आदिवासी नेताओं, जनप्रतिनिधियों, आदिवासी अधिकारियों, कर्मचारियों, संस्थाओं एवं आदिवासी हितैषी लोगों से सहयोग राशि लेकर 252 आदिवासी परिवारों को घर बना कर देने का प्रयास करेंगे। इस पहल में मेरे साथ पूर्व गृह मंत्री एवं आदिवासी नेता माननीय श्री ननकी राम कँवर जी हैं। मुझे उनका समर्थन मिल चुका है। हम, और आदिवासी नेताओं को इस मुहीम से जोड़ रहे हैं। यह दलगत निष्ठा और राजनीति से ऊपर उठकर प्रदेश में आदिवासी उत्थान के लिए किये जाने वाला प्रयास है।

* मुख्यमंत्री जी ने अगले 48 घंटे में मकान बना कर देने का आदेश नहीं निकाला तो, हम सुकमा से लेकर सरगुजा तक सभी आदिवासी विधायकों और नेताओं से मिलेंगे और उनसे मिलकर आग्रह करेंगे कि वो अपनी स्वेच्छा से अपने एक माह के वेतन का कुछ भाग पीड़ित 252 आदिवासी परिवारों के घर स्थापित करने के लिए दें। ऐसा कर ही हम इस सरकार को उसके द्वारा किये जा रहे आदिवासियों के विरुद्ध अत्याचार और आदिवासियों के प्रति उसकी जिम्मेदारी का एहसास करा सकेंगे।   - वैभव तिवारी, विधायक प्रतिनिधि गुंडरदेही

* ताड़मेटला आगजनी से गरीब आदिवासियों की मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना पर अपनी निजी राजनीतिक रोटियां सेकना बंद करे नेता, अगर कुछ करना ही है तो, सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएं।जिम्मेदारी लेकर प्रभावित आदिवासियों के लिए कुछ सकारात्मक करें। - आरके राय, विधायक गुंडरदेही
   
आईजी कल्लूरी ने किया पलटवार -
इसके दूसरे दिन जगदलपुर मेें बस्तर आईजी कल्लूरी ने भूपेश बघेल पर हमला करते हुए कहा कि भूपेश लिखकर दे सकतें हैं क्या कि मेरे जाने से नक्सलवाद खत्म होगा, मैं 24 घंटे में बस्तर छोड़ दूंगा। उन्होंने दावा किया कि 2017 के बाद बस्तर में नक्सली नहीं रहेंगे, मैं उन्हें खदेड़ दूंगा। हमने नक्सलियों को बैकफुट होने पर विवश कर दिया, बड़ी संख्या मेें हार्डकोर नक्सलियों ने आत्म समर्पण कर दिया, सुरक्षा बलों से आए दिन मुठभेड़ हो रही है उनके बड़े इलाके को नक्सलमुक्त कराने मेें सफल हुए जिसमें हमारे सैकड़ों जवान शहीद हो गए। क्या उन जवानों की शहादत का कोई मोल नहीं। आईजी ने आगे कहा कि भूपेश बघेल व अन्य नेताओं को दलगत राजनीति से ऊपर उठना चाहिए। बस्तर से पहले सरगुजा में जब नक्सलियों ने इनकी ही पार्टी के नेताओं को मारा, तब पुलिस ने ही सरगुजा को नक्सलमुक्त करवाया। झीरम में भी कांग्रेस पार्टी के 31 लोगाें को नक्सलियों ने मौत के घाट उतारा, जिसके बाद से सुरक्षा बल ने नक्सलियों पर नियंत्रण करने के लिए प्रयासरत हैं ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति भविष्य मेें न हो।
   
आखिरकार सरकार ने की कार्यवाही -
छत्तीसगढ़ सरकार ने 2011 में आदिवासी गांवों को जलाने की घटना में आरोपित पुलिसकर्मियों को निलंबित करने की बात कही है। बुधवार को जारी आधिकारिक बयान के अनुसार डीजीपी ने सीबीआई की चार्जशीट में शामिल आठ पुलिसकर्मियों को निलंबित करने और नियमों के तहत उन्हें लाइन हाजिर करने का निर्देश दिया है। सीबीआई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई रिपोर्ट में दंतेवाड़ा और सुकमा जिले में विशेष पुलिस बल के आठ सदस्यों और 27 अन्य लोगों पर आदिवासी गांवों में आगजनी व हिंसा का आरोप लगाया गया है। रमन सिंह सरकार ने 24 अक्टूबर को विशेष पुलिसकर्मियों के प्रदर्शन की भी जांच करने का आदेश दिया है। सोमवार को बस्तर में पुलिसकर्मियों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के पुतले जलाए थे। पुलिसकर्मियों का कहना था कि वे विपरीत परिस्थितियों में माओवादियों से लड़ रहे हैं और नक्सल समर्थक उन पर आरोप लगाते रहते हैं। हालांकि, इस घटना को पुलिसकर्मियों की अनुशासनहीनता माना गया और पुलिस कर्मियों पर कार्यवाही की गई। 

* ताड़मेटला घटना पर अब राजनेता अपनी राजनैतिक रोटी सेकना चाहते हैं यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार सदैव से आदिवासियों के प्रति समर्पित व हितैषी रही है, हमें किसी को प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है। सीबीआई की रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के विरूद्ध सख्त कार्यवाही का आश्वाासन दिया जाता है, विधिवत कार्यवाही करने की कार्यवाही की जा रही है, जिन जवानों ने उल्लंघन किया उन पर कार्यवाही कर दी गई है। सीएम ने कहा कि राज्य सरकार नक्सलियों से बातचीत करने के लिए तैयार है। - डा. रमन सिंह, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन