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हैंडीक्रॉफ्ट आइटम बनाने वाले सरायतरीन के कारीगर हो रहे हैं टीबी के शिकार

सम्‍भल 4 जुलाई 2016. हैंडीक्रॉफ्ट आइटम बनाने वाले सरायतरीन के कारीगर इन दिनों संकट में हैं। सींग की घिसाई के दौरान निकल रहे कण इन्हें बीमार बना रहा है। ये टीबी का शिकार बन रहे हैं, कारीगरों से यह उनके दूसरे परिजनों में फैल रहा है। हाल यह है कि, जिले में सामने आने वाले नए टीबी के रोगियों में 25 फीसदी सरायतरीन के ही हैं।

संभल तहसील क्षेत्र और आसपास के इलाके के लोगों को टीबी होने के अंदेशे में जांच के लिए संभल के जिला अस्पताल भेजा जाता है। यहां पर जून के 30 दिनों में 20 नए मरीज टीबी पॉजिटिव निकले हैं, जिसमें पांच सरायतरीन के हैं। इससे स्पष्ट हो रहा है कि, टीबी के नए रोगियों में 25 प्रतिशत केवल सरायतरीन के होते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सरायतरीन में छह डॉट्स सेंटर स्थापित किए गए हैं, जहां 35 मरीजों को सप्ताह में तीन दिन क्षय रोग से लड़ने के लिए दवा दी जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि, यहां से महीने में आठ-दस नए केस आ ही जाते हैं। जिनकी प्रमुख वजह सींग की घिसाई के दौरान निकले कणों का फेफड़े में जाना ही है। ये बारीक कण लोगों को बीमार बना रहे हैं। पूरा सरायतरीन ही टीबी की चपेट में है। सरकारी अस्पतालों और डाट्स सेवा केंद्रों पर नि:शुल्क उपचार किया जाता है।

राष्ट्रीय स्तर पर क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम संचालित है। संभल जिले में भी यह लागू है। इसके तहत सरायतरीन में छह डाट्स सेवा केंद्र हैं। नगरीय स्वास्थ्य केंद्र भी है। जिला अस्पताल में भी उपचार की सुविधा है। जिले के किसी भी अस्पताल में उपचार करा सकते हैं - डॉ. उमराव सिंह, सीएमओ

क्या बोले एक्सपर्ट-
क्षय रोग विशेषज्ञ डा. प्रवेंद्र सिंह ने बताया कि, केवल हड्डी-सींग की घिसाई से ही नहीं बल्कि विभिन्न प्रोडक्ट तैयार करने में केमिकल का इस्तेमाल होने से भी बीमारी फैलती है। केमिकल और हड्डी सींग के कण श्वांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचने से संक्रमण हो जाता है। इसके साथ ही श्वांस नलियों में सूजन आ जाती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। आमतौर पर हैंडीक्राफ्ट के करीगर बेहद गरीब और अनपढ़ जो अपनी सेहत के प्रति कतई जागरूक नहीं है, वे इलाज में लापरवाही करते हैं। बलगम की जांच तक नहीं कराना चाहते। जबकि टीबी का इलाज तभी संभव है जब प्रॉपर जांच कराएं और उसके बाद नियमित दवा खाएं। भोजन भी समय से लें, लेकिन ऐसे तमाम कारीगर हैं, जो टीबी होने के बाद भी समय पर दवाई नहीं ले रहे हैं।