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आदिवासियों के पक्ष में न्यायालय का निर्णय मगर जब अधिकारी मेहरबान तो भू माफिया पहलवान

रायगढ़/छत्तीसगढ़ 22 मार्च 2016 (जावेद अख्तर). आदिवासियों की जमीन हड़पने के मामले में विभागीय अधिकारियों द्वारा राजस्व मंडल बिलासपुर और रायगढ़ कलेक्टर के आदेशों के बावजूद भी तहसीलदार ने आज दिनांक तक इस मामले पर कोई कार्यवाही नहीं की है और न ही किसी भी प्रकार का आपराधिक मामला ही दर्ज किया है।

     
ऊपर वाला मेहरबान तो गधा पहलवान
यहां पर भ्रष्ट अधिकारियों की मेहरबानियां ही बरस रही है अन्यथा आदिवासियों की भूमि पर फर्जीवाड़े द्वारा हड़पने का षड्यंत्र रचने का प्रयास किया गया, मामला जब खुला तो असलियत सबके सामने आई कि यह भूमि आदिवासियों की है, जिसके चलते राजस्व मंडल बिलासपुर ने दोषियों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया इसके बावजूद भी भू माफिया व कंपनी पर मामला दर्ज नहीं हो पाया है।

ऐसे में आम नागरिक कानून व सरकारी व्यवस्था पर विश्वास कैसे करे?
जहां एक ओर प्रदेश में राज्य सरकार खुद को आदिवासियों का हितैषी बताने से नहीं थकती है वहीं दूसरी ओर आदिवासियों की जमीन हड़पने की साजिश करने वालों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने का प्रयास तक नहीं किया जा रहा है। जबकि छत्तीसगढ़ प्रदेश में बने नियमों के अनुसार आदिवासियों की जमीन पर किसी भी प्रकार से कोई भी भू माफिया या बिल्डर या अन्य कोई भी कब्जा तक नहीं कर सकता है।

मगर इन्हीं नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए, 30 सितंबर 2015 को आदेश जारी किए जाने के बाद भी 15 फरवरी 2016 तक में मामले को दबाए रखने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है। इस मामले पर रायगढ़ के विभागीय अधिकारियों द्वारा मामला दर्ज नहीं किया जा रहा है। इस पर राजस्व मंडल बिलासपुर द्वारा आदेश पत्र जारी कर कारवाई करने की बात कही गई और की गई कार्रवाई की जानकारी भी देने का आदेश दिया गया है। आदेश पत्र कलेक्टर से एसडीएम और एसडीएम से तहसीलदार तक तो पहुंच गया है मगर इस मामले पर एसडीएम ने भी कोई खास रूचि नहीं लेते हुए मात्र औपचारिकतावश आदेश की प्रति आगे तहसीलदार को बढ़ा कर जिम्मेदारी पूरी कर ली है, क्योंकि एसडीएम ने तहसीलदार ने क्या कार्यवाही की है, इसकी जानकारी लेना एसडीएम ने जरूरी नहीं समझा है।

कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर ने आदिवासियों की जमीन के प्रकरणों पर गंभीरता दिखाते हुए कई बार पत्र जारी किया है परंतु अभी तक कोई उत्तर प्राप्त नहीं हो सका है। भर्राशाही देखिए कि उत्तर प्राप्त न होने के चलते ही डिप्टी कलेक्टर को पुनः से स्मरण पत्र तक भेजना पड़ रहा है। इससे समझ सकते हैं कि तहसीलदार की मंशा क्या है। तहसीलदार पूरी तरह से आलोक इंफ्रा.प्रा.लि. के लिए बिछ गया है और भारतीय संविधान व नियमों की ऐसी की तैसी करने पर उतारू है, वहीं राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों के हितों की रक्षा व सुरक्षा के मद्देनजर बनाए गए नियमों का भी खुला उल्लंघन कर रहा है। सबसे हैरानी वाली बात यह है कि रायगढ़ कलेक्टर व एसडीएम द्वारा आदेश प्रतियां भेजने के बावजूद भी तहसीलदार आलोक इंफ्रा.प्रा.लि. के प्रति वफादारी निभा रहा है, चाटुकारिता का नमूना तो देखिए कि राजस्व मंडल बिलासपुर, रायगढ़ कलेक्टर, रायगढ़ डिप्टी कलेक्टर व रायगढ़ एसडीएम तक के आदेशों को तत्कालीन तहसीलदार व वर्तमान तहसीलदार दोनों ने ही मजाक बना कर रख दिया है।

काबिलेगौर यह भी है कि रायगढ़ के विधायक व नेतागण खुद को आदिवासियों का हितैषी बताते हैं मगर यहां पर यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है और समझ भी आ रहा है कि रायगढ़ के विधायक रौशन लाल अग्रवाल प्रदेश के आदिवासियों के कितने बड़े हितैषी है और इनकी रक्षा व सुरक्षा के प्रति कितने गंभीर है? जुबानी भाषण में लंबी लंबी बातें करने वाले नेता प्रदेश के आदिवासियों की भूमियों की जब सुरक्षा तक नहीं कर सक रहे हैं तो वह आदिवासियों के प्राणों की रक्षा कैसे करेंगे? यह बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा होता है रायगढ़ विधायक रौशन लाल अग्रवाल के समक्ष।

क्या इसका उत्तर विधायक दे सकते हैं?
संभवतः इस मामले पर वह इधर उधर के बयान देकर खुद से खुद की पीठ थपथपा सकते हैं मगर वास्तविकता में देखा जाए तो वह आदिवासियों के साथ छल कपट कर रहें हैं क्योंकि जब जनता का प्रतिनिधि ही जनता की भूमि के प्रकरणों पर मौन धारण किए हुए चुपचाप दुबक कर बैठा है, जबकि भूमि के प्रकरणों में राजस्व मंडल व कलेक्टर तक के आदेश जारी हुए हैं।विधायक शायद भूल गएं है परंतु याद दिलाते हैं कि उन्होंने चुनावी समय में आदिवासियों से कई वादे किए थे। मगर चुनाव जीतने के बाद भूले बिसरे गीतों की तरह ही विधायक ने आदिवासी समाज को किनारे कर दिया है। लगता है रायगढ़ विधायक भाजपा के आलाकमान के कुछ नेताओं से काफी प्रभावित हो गए हैं इसीलिए इन्होंने भी चुनावी समय के दौरान जो भी वादे किए थे, चुनाव जीतने के पश्चात, वह सभी चुनावी जुमले बन गए हैं और वादों से पलटी मार दिए हैं। वैसे भी केन्द्र की भाजपा सरकार के कई बड़े नेताओं ने इस बार जोरदार पलटी मारी है और यह देखकर ही रायगढ़ के विधायक भी काफी अधिक प्रभावित हुए जान पड़ते हैं। मगर क्या करें क्योंकि सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे जो ठहरे। जब बड़े नेता पलटी मार सकते हैं, छोटे नेताओं का तो हक बनता है।

वहीं कांग्रेस व आप पार्टी भी आदिवासियों की हितैषी होने का खूब ढोल नगाड़ा पीटती है मगर यहां पर दोनों ही पार्टियों के नेता गुमनाम से दिखाई दे रहें हैं या शायद रायगढ़ में प्रदूषण अधिक होने से व थोड़ी सी दूरी होने पर स्पष्ट दिखाई नहीं देता होगा। इसीलिए आजकल दूर की चीजें दिखाई नहीं देती है।बहरहाल आदिवासियों के हितों की रक्षा व सुरक्षा के लिए राज्य सरकार दावा करती है कि हम आदिवासियों की रक्षा व सुरक्षा के लिए पानीपत का युद्ध तक करने को तैयार है तो इस प्रकरण में राज्य की भाजपा के ही विधायक नदारद हैं, या गुमशुदा है या गुमनाम है। जो भी हो मगर आदिवासी लोग अपनी ही भूमि पाने के लिए तरस रहें हैं मगर इन गरीब आदिवासियों के लिए आज किसी के भी पास समय नहीं है। छत्तीसगढ़ प्रदेश आदिवासियों का बाहुल्य क्षेत्र है मगर अफसोस कि यह आदिवासी अपना हक पाने के लिए शासन प्रशासन का मुंह ताकते बैठें हैं कि शायद किसी दिन इन सभी को गरीब आदिवासियों की स्थिति देखकर तरस या रहम आ जाए तो शायद भूमि पर वास्तविक भूस्वामी का कब्जा दिला दिया जाए। फिलहाल काफी अधिक समय से न ही सरकार को और न ही विधायक को इन गरीब आदिवासियों पर रहम आया है और न ही तरस इसीलिए आदिवासी आज भी अपनी भूमि पाने के लिए तरस रहें हैं। इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि प्रदेश में आदिवासी समाज की हालत कितनी अच्छी है? और इन्हें कितना न्याय मिलता है?

राज्य सरकार आदिवासियों के प्रति कितनी गंभीर है?
खुद के प्रदेश में खुद की जमीन पाने के लिए दूसरों के भरोसे बैठना पड़ रहा है और स्थानीय विधायक जाने कहाँ हैं? आदिवासियों ने कहा है कि क्या इश्तिहार छपवाना पड़ेगा कि रायगढ़ के विधायक अगर कहीं मिल जाएं तो उन्हें रायगढ़ के आदिवासियों से मिलने की सूचना दे देंवे। हद खत्म हो गई है अत्याचार की। इसके आगे बाकी ही क्या रह गया। ऐसे में प्रदेश के आदिवासी लोग आत्महत्या नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे। जो आत्महत्या नहीं करतें हैं वो बंदूक उठा लेतें हैं, ऐसे ही समाज के सताए लोग ही सबसे ज्यादा नक्सलवाद की राह पकड़ लेतें हैं। नक्सल बढ़ने का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है।सरकार जब संवेदनशीलता शब्द ही भूल जाए, विधायक गायब हो जाएं, सरकारी अधिकारी अपना कर्तव्य भूल जाएं, तहसीलदार अपने पद का दुरुपयोग करने पर उतारू हो जाए, तो आदिवासी लोग जाएं भी तो कहां जाएं?यह भी एक अजीबोगरीब बात है कि आदिवासियों के भूमि फर्जीवाड़े के प्रकरणों में तत्कालीन तहसीलदार मुख्य गवाह बने थे और वर्तमान में संभवतः राज्य सरकार को तहसीलदार की इन्हीं क्रियाकलापों के चलते ही प्रमोशन दिया गया है और अब वह डिप्टी कलेक्टर बन गए हैं। धन्य हैं।
       
अंधेर नगरी चौपट राजा
जो करे गड़बड़ी वही खाए खाजा

अपनी खुद की जमीन के लिए ऐसी बेबसी के मामले जब सामने आना शुरू हो जाए तो इसे समय का इशारा ही समझें कि बहुत जल्द ही बहुत बड़ा परिवर्तन होना तय है।आदिवासीयों की जमीन के फर्जीवाड़े के संबंध में आलोक इन्फ्राटेक प्रा.लि. के संचालक अमित रतेरिया के ऊपर कार्यवाही करने का आदेश 07 जनवरी 2016 को राजस्व विभाग द्वारा जारी किया गया है, आदेश में स्पष्ट लिखा हुआ है कि दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध अपराधिक प्रकरण दर्ज करें तथा की गई कार्यवाही से माननीय राजस्व मंडल बिलासपुर को अवगत करायें।मगर आज दिनांक 15 फरवरी 2016 तक में रायगढ़ के विभाग द्वारा अपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं किया गया है। जबकि 13/02/16 को मुख्यमंत्री ने रायगढ़ का दौरा किया और 11 फरवरी 2016 को मुख्य सचिव विवेक ढांड ने भी रायगढ़ का दौरा किया। मगर न ही मुख्य सचिव और न ही मुख्यमंत्री द्वारा इस मामले को संज्ञान में लेते हुए जानकारी मांगी गई।डिप्टी कलेक्टर श्रीमती निष्ठा पाण्डेय तिवारी से स्थानीय संवाददाता ने इस मामले पर चर्चा की, जिसमें संवाददाता द्वारा आलोक इंफ्रा.प्रा.लि. के ऊपर राजस्व मंडल बिलासपुर के कुल 5 आदेशों का पत्र व उनके द्वारा अनुविभागीय अधिकारी को जारी किये गये पत्र की कापी प्रस्तुत करते हुए जानकारी चाही गई।

प्रश्न 1 : आलोक ईंफ्रा.प्रा.लि. के मामले में कार्यवाही की गई है? अपराधिक प्रकरण दर्ज किये गये?

रायगढ़ डिप्टी कलेक्टर श्रीमती निष्ठा पाण्डेय तिवारी का जवाब :- अनुविभागीय अधिकारी सीधे राजस्व मंडल बिलासपुर को प्रतिवेदन भेजेंगे। इस मामले में अभी तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। आज पुन: से अनुविभागीय अधिकारी को इस संबंध में स्मरण पत्र जारी कर रहें हैं। मामले की प्रक्रिया आगे बढ़ा दी गई है, जल्द ही नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।कलेक्टर कार्यालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक आलोक इंफ्रा.प्रा.लि. के विरुद्ध कुल 6 प्रकरणों में कलेक्टर रायगढ़ ने एसडीएम को पत्र जारी किया है। मगर कलेक्टर के पास एसडीएम द्वारा आज तक जवाब नहीं पहुंचा है।

एसडीएम प्रकाश कुमार सर्वे से भी स्थानीय संवाददाता ने 5 प्रकरणों के आदेशों की प्रतियों को दिखाते हुऐ बातचीत की।

1. आलोक इंफ्राटेक प्रा.लि. के मामले में कार्यवाही हुई या नहीं?
एसडीएम :- मामले की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया गया है।

2. क्या अपराधिक प्रकरण दर्ज किये गये?                                         
एसडीएम :- अपराधिक प्रकरण दर्ज करने के लिये तहसीलदार को भेजे हैं कार्यवाही करने के लिये।

3. मामले पर अभी क्या चल रहा है?                              
एसडीएम :- तहसीलदार से जानकारी ले सकते हैं।

4. किस दिनांक को कार्यवाही करने का आदेश आपने जारी किया है?
एसडीएम :- दिनांक का याद नहीं है।

5. आपने राजस्व मंडल बिलासपुर को मामले की जानकारी भेज दी है?
एसडीएम :- अभी तक हमें तहसीलदार ने जानकारी नहीं दी है इसलिये हम भी जानकारी नहीं भेज पाएं हैं।

6. तहसीलदार ने अभी तक क्या कार्यवाही की है?
एसडीएम :- अभी मैं नहीं बता सकता हूं कि तहसीलदार ने इस मामले में कार्यवाही की है या नहीं और कब तक कारवाई करेंगे।

इस मामले पर स्थानीय संवाददाता ने रायगढ़ एसपी संजीव शुक्ला को कलेक्टर के आदेश की नकल व उक्त मामले से संबंधित राजस्व मंडल बिलासपुर के कलेक्टर को दिये निर्देश की कापी दिखाते हुए चर्चा की।

प्रश्न 1. मामले में कार्यवाही हुई या नहीं?
एसपी :- कलेक्टर द्वारा एसडीएम को आदेश जारी किया गया है।

प्रश्न 2. क्या अपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया?
एसपी :- पहले ही कहा था कि मेरे पास एफआईआर करने के निर्देश आऐंगे तो मैं तुरंत कर दूंगा।

प्रश्न 3. मामले पर क्या हो रहा है? इसकी जानकारी तो आप ले सकते थे?
एसपी :- मैं कैसे जानकारी ले सकता हूं। आदेश का पत्र तो भेज दिया गया है और वर्तमान में क्या चल रहा है इसकी जानकारी मेरे पास नहीं है।

प्रश्न 4. कारवाई नहीं की गई इसीलिए तो यह आदेश पत्र आपको दिखाया हूं, तो क्या इस मामले पर अब आप जानकारी लेंगे?
एसपी :- नहीं, और मैं क्यों जानकारी लेना चाहूंगा।
    

तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा -
भू माफिया, एसडीएम व तहसीलदार की इन अवैधानिक करतूतों को देखकर ऐसा प्रतीत होने लगा कि "तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा'' राजस्व मंडल बिलासपुर द्वारा दिए आदेशों को मानने के लिए बाध्यता नहीं है, जब कभी हमारा मन करेगा तब कारवाई जैसी खानापूर्ति कर राजस्व मंडल को भी सूचित कर देंगे। जिसको जो भी करना है कर लो क्योंकि हमारी तिकड़ी संविधान, कानून, केन्द्र व राज्य के नियमों से ऊपर है और राजस्व मंडल द्वारा दिए आदेश को हम क्यों माने, हमारा राज है। चाहे जितने भी आदेश भेजो और चाहे जहाँ से आदेश भेजो मगर हम करेंगे वही जो हमारा मन करेगा। शासन और प्रशासन व अन्य किसी के आदेशों को मानना जरूरी नहीं है। प्रशासनिक अधिकारियों ने जैसे जवाब दिए हैं उससे तो ऐसा ही लग रहा है। ऐसे में एसडीएम व तहसीलदार से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह इस मामले पर आपराधिक मामले दर्ज करेंगे। सभी प्रशासनिक अधिकारी अपनी जवाबदेही से खुद को बचाना चाहते हैं। जबकि आम जनता के द्वारा दिए गए टैक्सों से ही इन अधिकारियों को प्रतिमाह मोटी तनख्वाह दी जा रही है। आम जनता का नमक खाकर आम जनता का ही शोषण कर रहें हैं, तो इन्हें नमकहराम की उपाधि से नहीं नवाजा जा सकता है?

आम जनता की रक्षा व सुरक्षा व उनके हितों को ध्यान में रखते हुए तथा समाज में होने वाली गलत गतिविधियों पर रोकथाम करने के लिए प्रशासन व अधिकारियों को नियुक्त किया गया है मगर यही अधिकारी आम जनता के लिए ही काल बने हुए हैं, मुसीबतों से बचाने की बजाए मुसीबतों में ही पहुंचा दे रहें हैं। इस कदर भू माफिया के तलुवे चाटने वाले मामले कम ही देखने में आतें हैं मगर इस मामले को देखकर समझ सकते हैं कि कानून, नियम, कायदे सिर्फ किताबों में ही अच्छे लगते हैं क्योंकि वास्तविक स्थिति में कानून के रखवाले ही कानून व नियमों का मर्दन कर रहें हैं। लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र की हत्या प्रशासनिक अधिकारी ही कर रहें हैं और अपनी जिम्मेदारियों से मुंह चुरा रहें हैं। किसी बेगुनाह या गरीब व्यक्ति को झूठे मामलों में फंसाने के लिए कानून व नियमों का बलात्कार पर बलात्कार करने से चूकते नहीं है और जब किसी भू माफिया पर कार्रवाई करने की बात आती है तो यह पंगु हो जाते हैं, इनके हाथ पैर कांपने लगते हैं, आंखों से दिखाई देना बंद हो जाता है व कानों से बहरे हो जातें हैं, और न ही ऊपर से दिए गए आदेश का मान सम्मान रखते हैं बल्कि एक दूसरे अधिकारियों के बीच, इस कार्यालय से उस कार्यालय, उस कार्यालय से इस कार्यालय को पत्र  आदान प्रदान करने का खेल खेलने लगते हैं। हास्यास्पद है कि नगर का पुलिस अधीक्षक कहे कि इस मामले पर क्या चल रहा है इसकी जानकारी मुझे नहीं है और न ही मैं जानकारी लेना चाहता हूं।

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