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प्रशासन की लापरवाही के चलते कड़कड़ाती ठण्ड में मौत से लड़ने को मजबूर हैं बेघर

कानपुर 23 जनवरी 2016 (मो0 नदीम). अभी तक ठण्ड से वंचित शहर वासियों को ठण्ड ने अपने आ जाने का अहसास कराना शुरू कर दिया है। शाम होते ही लोग लिहाफ और कम्बलों में दुबक जाते हैं। अधिकाँश शहरों में तो पारा शून्य तक पहुंचने के आसार हो गए हैं, पहाड़ी क्षेत्रों में तो बर्फबारी भी शुरू हो चुकी है। ऐसे मौसम में बर्फ का मज़ा लेने वाले पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है लेकिन इसके विपरीत ठण्‍ड का एक चेहरा और भी है जिसके माथे पर परेशानी और चिन्ता साफ़ देखी जा सकती है।

हम बात कर रहे हैं झोपड़पट्टियों में रहने वाले गरीब और बेसहारा लोगों की। जैसे जैसे ठण्ड अपने पाँव पसारती है झोपड़पट्टियों में रहने वाले गरीब और बेसहारा लोगों की परेशानियां बढ़ जाती हैं, आखिर कैसे इस ठण्ड से अपनी जान बचाये। आज से कुछ साल पहले के मुकाबले दिसंबर से जनवरी में पड़ने वाली ठण्ड में तीव्रता आई है। जनवरी में कंपकपाने वाली ठण्ड उन लोगों के लिए काल बन जाती है जो बेसहारा होते हैं जिनके तन पर ढकने के लिए कोई कपडा नहीं होता है जो प्लेटफार्मो, पार्को, फुटपाथों, और खुले आसमानों के नीचे जीवन बिताने पर मजबूर हैं। इन बेघर और बेसहारा लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। करोड़ों अरबों रूपए विकास की राह पर खर्च करने वाली केंद्र और राज्य सरकारें ठण्ड रूपी आपदा को लेकर क्यों गंभीर नहीं हैं। शेल्‍टर होम, अलाव कम्‍बल आदि पर सरकार लाखों खर्च करती है पर शीत लहर के शिकार पीड़ित व्यक्तियों को वास्‍तविक सहायता मिलना नामुमकिन सा लगता है। इस सवाल का जवाब शायद सरकार के पास भी न हो, बहरहाल अगर सरकार जल्द ही इन बेघर, बेसहारा और मजबूर इंसानों को लेकर सचेत न हुई तो पिछले साल के मुकाबले इस साल ठण्ड से मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है और इसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी।